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प्रेम-1

4 मार्च 2022

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सोचती हूं सब कुछ भूल कर, फिर से,
अनंत काल तक बस, उसकी ही होकर रहूं ,

करीब उसके जाकर, अपना सारा जीवन यापन,
सारा दर्द, तड़प, सारे अश्क, उस पर वार दूं ,

सीने से लगकर, भिगो दूं उसकी अंतरात्मा को,
बताऊं, प्रेम की परकाष्ठता क्या होती है,

कमर से नीचे का प्रेम तो नहीं चाहा तुझसे कभी,
उससे ऊपर, तूने मुझें देखा ही नहीं, अभी,


कैसा होता है प्रेम, उस स्त्री का, जिसको तू बस छल ही रहा है,
मार रहा है उसके सुंदर मन को, दिन प्रति दिन,

क्यों, बस हवस के लिए, तू बिछा देता है, खुद को,
बन जाता है, एक नर वेश्या, मिटा देता है, सम्पूर्ण गुरुर मेरा, पूरी हस्ती, पूरा ही अस्तित्व मेरा,

मेरी आँखों की लालिमा तू क्यों नहीं देख पाता,
सम्पूर्ण रातें मेरी, रोज ही, नमी से गीली हो जाती है,

और मैं भीगे मन के साथ, खुद को, टटोल कर, कि,
हां, जिन्दा तो हूं, अभी मैं, सुकून से सो जाती हूँ ।



::::शालिनी(अंजी)::::::
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अनोखा प्यार !
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मैंने तुरंत दुकान बन्द की और अपनी साईकिल उठा कर तेज़ रफ़्तार से चलाते हुए दूसरी दुकान की तरफ भागा । थोड़ी देर में मैं वापस आ गया। वो नीचे अभी तक नहीं आई थी । मै बैठ कर उसका इन्तजार करने लगा। थोड़ी देर में वो भागती हुई आई और बोली-अब तो दे दो आइसक्रीम मेरी । मैंने उसको आइसक्रीम की कटोरी दी। देखकर वो बहुत बहुत खुश हो गयी।और मैं उसके चेहरे की चमक को देखकर बहुत खुश हो गया ।

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