नई दिल्ली : पूर्व केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव के. सुजाता राव का कहना है कि भारत राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 के लक्ष्यों को पूरा नहीं कर पाएगा। उन्होंने अपनी किताब में कहा है कि भारत का सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यय सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 1.16 फीसदी है, जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) जीडीपी का 5 फीसदी खर्च करने की सिफारिश करता है।
WHO की रिपोर्ट की माने तो विश्व में स्वास्थ्य पर जीडीपी का औसत 4 फीसदी खर्च होती है। जबकि भारत में स्वास्थ्य पर जीडीपी का 1.4 फीसदी खर्च होता है। जबकि अमेरिका अपनी जीडीपी का 8.3 फीसदी, चीन 3.1 फीसदी, दक्षिण अफ्रीका 4.2 फीसदी और ब्राजील अपनी जीडीपी का 3.8 फीसदी खर्च करता है।
नई नीति में 2025 तक चरणबद्ध तरीके से कुल जीडीपी का 2.5 फीसदी हिस्सा स्वास्थ्य क्षेत्र में खर्च करने का लक्ष्य हासिल करने की बात है। लेकिन हम वर्ष 2010 के जीडीपी के 2 फीसदी खर्च करने लक्ष्य को अब तक पूरा नहीं कर पाए हैं।
भारत का सार्वजनिक स्वास्थ्य खर्च तीन कारणों से कम है। पहला है राजनीति क इच्छाशक्ति की कमी और राजनीतिक दर्शन की अनुपस्थिति, जो किसी व्यक्ति के स्वास्थ्य, कल्याण और शिक्षा को विकास प्रक्रिया के केंद्र के रूप में रखती है। हमारी मानसिकता अभी भी फ्लाई ओवर और स्पीड ट्रेनों से साथ ही जुड़ी हुई है।
दूसरा है विकेंद्रीकरण की दिशा में सुधार नहीं । और धन को तेजी से जबाबदेही के साथ खर्च करने की आदत नहीं। तीसरा है मैक्रो-स्तर पर हम पर्याप्त करों का संग्रह नहीं कर रहे हैं और प्रतिस्पर्धा की मांग और देनदारियों के कारण स्वास्थ्य के लिए संसाधनों को बढ़ाने के लिए हमारे पास जगह सीमित है।
WHO की रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के देशों में जहाँ स्वास्थ्य के क्षेत्र में निजी संस्थाओं की भूमिका जहाँ औसतन 40 फीसदी है वहीं भारत में निजी क्षेत्र की फागीदारी 70 फीसदी है। जैसा कि 2016 में ब्रुकिंग्स इंडिया की रिपोर्ट में पता चला है कि देश की स्वास्थ्य आवश्यकताओं के 75 फीसदी तक निजी परामर्श प्रणाली की पहुंच है।