नई दिल्ली : बीजिंग के कूटनीतिज्ञों ने दिल्ली को सुझाव दिया है कि भारतीय मीडिया जिस तरह चीन की 'नेगेटिव रिपोर्टिंग' कर रही है इसके प्रभाव दोनों देशों के रिश्ते पर पड़ रहे हैं.विदेश मन्त्रालय के सूत्रों के मुताबिक भारत-तिब्बत सीमा पर जिस तरह चीन की लाल सेना ने घुसपैठ बढ़ाई है वे सीधे तौर पर मीडिया रिपोर्टिंग की प्रतिक्रिया है.
सूत्रों के मुताबिक उत्तराखंड के चमोली ज़िले में बाराहोती पोस्ट पर चीनी सैनिकों की बढ़ती घुसपैठ सिर्फ भारत पर कूटनीतिज्ञ दबाव बनाना था कि वो अपनी मीडिया को नियंत्रित करे. उत्तराखंड की सीमा पर जुलाई 2016 को हुए चीन कि घुसपैठ पर जिस तरह मुख्यमंत्री हरीश रावत ने सार्वजनिक बयान दिया था उसके जवाब में लाल सेना के हथियारबन्द सैनिकों ने जानबूझकर सीमा का उलंघन किया.
सूत्रों के मुताबिक चीन ने दिल्ली से कहा है कि उसका इरादा जान माल का नुक्सान करना नही है. पिछले दो दशक में भारत एक घटना नही बता सकता जहाँ चीन की सेना ने सीमा पर कोई बड़ी कार्रवाई की हो. लेकिन भारतीय मीडिया जिस तरह लाल सेना को पाकिस्तान की सेना जैसा गड़बड़ दिखाती है उसका रिश्तों पर गलत प्रभाव पड़ता है." चीन कोई बांग्लादेश या पाकिस्तान नही है. जिस तरह की भाषा मीडिया उनके खिलाफ इस्तेमाल करती ऐसी सनसनीखेज और भड़काऊ भाषा ना चीन की मीडिया में कभी देखने को मिली है और ना ही सरकार यहाँ बोलती है. इसलिए भारत को अपनी मीडिया को ऐसी भाषा इस्तेमाल करने से मना करना चाहिए,"विदेश मंत्रालय के सूत्र के मुताबिक ये बात चीन की तरफ से दिल्ली को बताई गयी थी. Excl: Chinese Army carrying weapons seen entering Indian border near Chamoli
सूत्रों ने बताया कि कूटनीतिज्ञ स्तर पर हाल के बॉर्डर घुसपैठ पर दोनों देशों की जो चर्चा हुई उसमे भारतीय मीडिया के रोल पर चीन ने आपत्ति ज़ाहिर की है. इस मामले में भारत ने चीन को ये बताने की कोशिश की है कि भारतीय मीडिया सरकारी नियंत्रण से बिलकुल बाहर है और कम से कम सीमा विवाद पर तो मीडिया को बिलकुल समझाया नही जा सकता. दरअसल चीन चाहता है कि सीमा विवाद सिर्फ कूटनीतिज्ञ स्तर पर हल किये जाएँ और इसकी सार्वजनिक चर्चा न हो. ध्यान रहे चीन की लाल सेना बीजिंग कि वामपंथी सरकार के काडर का अभिन्न अंग है. लाल सेना और सरकार एक विचारधारा और एक दल से जुड़े हैं. चीन में मुख्यधारा से लेकर सोशल मीडियातक वामपंथी सरकार के हाथ में है और कूटनीज्ञ या सैनिक मामलों की सार्वजनिक चर्चा सरकार की मर्ज़ी के बगैर नही की जा सकती है.
उधर गृह मन्त्रालय के अधिकारी ने बताया की यूँ तो दोनों देशों के सीमा पर कोई तनाव नही है लेकिन सीमा विवाद के चलते अक्सर दोनों पक्ष एक दूसरे के इलाके में गश्त करते रहे हैं. हालाँकि जून 2000 में दोनों देशों ने एक ख़ास अनुबंध के ज़रिये बिना हथियार सीमा पर गश्त करने का समझौता किया था. बहरहालचीनजो कुछ कहे लेकिन भारत बीजिंग पर भरोसा कम ही करता है.