अभी कल रविवार की बात है सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर नोयडा स्थित अवैध निर्माण कर बनाया गया देश के सौ मीटर सबसे ऊंचे ३२ और २९ मंजिला ट्विन टावर को विस्फोट से ध्वस्त कर दिया गया। यह हमारे देश में अवैध निर्माण की पराकाष्ठा को दर्शाता है। आज भले ही ग्रामीण क्षेत्र में अवैध निर्माण छुटपुट देखने को मिलता है लेकिन शहरी क्षेत्रों में स्थिति भयावह है। इसका कारण शहर में शासकीय हो या अशासकीय कार्यालय, ओधौगिक प्रतिष्ठान हो या व्यापारिक केंद्र या फिर कल-कारखाने इनसे ग्रामीण जनता को रोजगार मिलना है, जिसके कारण वे शहरों के ओर खिंचे चले आते हैं। इससे शहरों में जनसंख्या सुरसा के मुख की तरह बढ़ती है, जिससे उनके निवास की समस्या खड़ी होती हैं। बढ़ती जनसँख्या के निवास हेतु विकास प्राधिकरण जितनी व्यवस्था करता है, वह नाकाफी होता है। मकानों की कमी, उनके किराये में वृद्धि का कारण बनती है। इस समस्या का लाभ राजनीतिज्ञ, कॉलोनाइजर और भू-स्वामी आपसी सांठ-गांठ कर उठाते हैं, जो एक ओर जहाँ अनधिकृत बस्तियां तथा झुग्गी-झोपड़ियां बसाते हैं वहीं दूसरी और शासन की उदासीनता, अधिकारियों का भ्रष्ट आचरण, उच्च अधिकारियों का कर्तव्य के प्रति राजनीतिक दृष्टिकोण तथा कर्मचारियों का कार्य के प्रति उपेक्षा भाव का लाभ उठाकर शासकीय भूमि पर कब्ज़ा कर अवैध निर्माण कर बैठेते हैं।
अवैध निर्माण का मूल भ्रष्टाचार है, जिसमें अत्यधिक पैसा कमाने की लालसा है। धन-संग्रह की व्यापक छूट है, जिसके कारण आज सरकारी चपरासी से लेकर बाबू और छोटा-बड़ा अधिकारी-कर्मचारी करोड़ों का मालिक बन जाता है। इसके साथ ही राजनीतिक संरक्षण प्राप्त आपराधिक तत्वों का जोर-जबरदस्ती कर कब्जे कर अवैध निर्माण करना हैं। लचीला कानून और प्रशासनिक शिथिलता इसकी कमजोरी है। जहाँ पैसे के बिना फाइल हिलती नहीं और कोई काम पूर्ण होता नहीं। एक बार सबसे निचले स्तर से लेकर शासन-प्रशासन में बैठे बड़े-बड़े अधिकारी और राजनेताओं तक पैसा क्या पहुँचता है कि शहरों की अवैध निर्माण वाली बस्तियां और मकान-दुकान से लेकर बड़ी-बड़ी बिल्डिंग वैध बन जाती है। जब तक राजनीतिज्ञ, कॉलोनाइजर और भू-स्वामियों की आपसी सांठ-गांठ के लिए सख्त क़ानून और व्यवस्थागत बदलाव नहीं किया जाता तब तक अवैध निर्माण पर अंकुश लगाना सम्भव नहीं रहेगा।