आज का समय आभासी दुनिया में डूबी दोस्ती–यारी का है। आज दुनिया में एक दिन फ्रेंडशिप डे का हो-हल्ला मचाकर दोस्त बनाने का समय है, जो साल भर में एक दिन आकर हमें भूले-बिसरे, नए-पुराने दोस्तों की याद दिलाता है। समय कैसा भी हो लेकिन दोस्ती –यारी आज भी अपनी जगह चल रही है। दोस्त या मित्र शब्द सुनते ही जेहन में बहुत सी बातें आकर हलचल मचाने लगती हैं। एक बार जब किसी सी गहरी मित्रता हो जाती है, तो फिर वह भले ही हमसे कोसों दूर रहता हो, उसके घर का रास्ता लम्बा नहीं दिखता है।
आज समय के साथ मित्रता के मायने भी बदल चुके हैं। आज जब मैं बच्चों को न तो पैदल-पैदल स्कूल जाते देखती हूँ, न खेलते-कूदते और नहीं आपस में मिल-जुलकर गप्पियाते देखती हूँ, तो मन में एक कसक उठने लगती है। ऐसे में मुझे मेरे बचपन के दिन बड़े याद आते है। तब हम जब भी दोस्त मिलते तो कभी गिल्ली डंडा तो कभी छुपन छुपाई, कभी रस्सी कूद तो कभी कंचा-गोली या फिर बट्टे खेलने बैठ जाते और जैसे ही हम स्कूल या गल्ली-मोहल्ले में बहुत दोस्त मिलते तो दो टीम में बंटकर खो-खो, आंख-मिचौली, रस्सा-कस्सी, पिठ्ठू गरम, लंगड़ी टांग, चोर-सिपाही खेलते हुए धमाल मचाते हुए ख़ुश मन से घर लौटते और घर-भर को बतियाते फिरते। लेकिन आज स्थिति यह है कि आज के बच्चे इन खेलों को खेलना तो दूर इनके नाम तक को सुनना पसंद नहीं करते हैं। आज के बच्चों के लिए दोस्ती का मतलब हाथ में रिंग पहनाकर उनके साथ इंटरनेट में गेम खेलना भर रह गया है।
आज के हालातों में गुजरे समय के दोस्ती वाली बातों को देखना बेमानी है। फिर भी फ्रेंडशिप डे पर यही कहूँगी कि मित्रता वही जहाँ औपचरिकता नहीं विश्वास हो। इसलिए हमें जीवन में हमेशा मित्रों का चयन थोड़े पर चुनिंदा पुस्तकों की तरह करना चाहिए और इसके साथ ही बचपन की दोस्ती-यारी को याद कर जिंदगी की मुसीबतों से पार पाने का मंत्र सीख लेना चाहिए।