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स्वतंत्रता आन्दोलन में साहित्यकारों की भूमिका

15 अगस्त 2022

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यह सभी जानते हैं कि 15 अगस्त 1947 को हमारा देश स्वतंत्र हुआ। यह हमारे राष्ट्रीय जीवन में हर्ष और उल्लास का दिन तो है ही इसके साथ ही स्वतंत्रता की खातिर अपने प्राण न्यौछावर करने वाले शहीदों का पुण्य दिवस भी है। देश की स्वतंत्रता के लिए 1857 से लेकर 1947 तक क्रांतिकारियों व आन्दोलनकारियों के साथ ही लेखकों, कवियों और पत्रकारों ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी गौरव गाथा हमें प्रेरणा देती है कि हम स्वतंत्रता के मूल्य को बनाये रखने के लिए कृत संकल्पित रहें।

          प्रेमचंद की 'रंगभूमि, कर्मभूमि' उपन्यास, भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का 'भारत -दर्शन' नाटक, जयशंकर प्रसाद का 'चन्द्रगुप्त, स्कन्दगुप्त' नाटक आज भी उठाकर पढि़ए देशप्रेम की भावना जगाने के लिए बड़े कारगर सिद्ध होंगे। वीर सावरकर की "1857 का प्रथम स्वाधीनता संग्राम" हो या पंडित नेहरू की 'भारत एक खोज' या फिर लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक की 'गीता रहस्य' या शरद बाबू का उपन्यास 'पथ के दावेदार' जिसने भी इन्हें पढ़ा, उसे घर-परिवार की चिन्ता छोड़ देश की खातिर अपना सर्वस्व अर्पण करने के लिए स्वतंत्रता के महासमर में कूदते देर नहीं लगी।

          राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्ता ने “भारत-भारती“ में देशप्रेम की भावना को सर्वोपरि मानते हुए आव्हान किया-

“जिसको न निज गौरव तथा निज देश का अभिमान है।

वह नर नहीं, नर-पशु निरा है और मृतक समान है।।“

देश पर मर मिटने वाले वीर शहीदों के कटे सिरों के बीच अपना सिर मिलाने की तीव्र चाहत लिए सोहन लाल द्विवेदी ने कहा-

“हो जहाँ बलि शीश अगणित, एक सिर मेरा मिला लो।“

          वहीं आगे उन्होंने “पुष्प की अभिलाषा“ में देश पर मर मिटने वाले सैनिकों के मार्ग में बिछ जाने की अदम्य इच्छा व्यक्त की-

“मुझे तोड़ लेना बनमाली! उस पथ में देना तुम फेंक।

मातृभूमि पर शीश चढ़ाने, जिस पथ जायें वीर अनेक।।“

          सुभद्रा कुमारी चौहान की “झांसी की रानी" कविता को कौन भूल सकता है, जिसने अंग्रेजों की चूलें हिला कर रख दी। वीर सैनिकों में देशप्रेम का अगाध संचार कर जोश भरने वाली अनूठी कृति आज भी प्रासंगिक है-

“सिंहासन हिल उठे, राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,

बूढे़ भारत में भी आई, फिर से नई जवानी थी,

गुमी हुई आजादी की, कीमत सबने पहिचानी थी,

दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी,

चमक उठी सन् सत्तावन में वह तनवार पुरानी थी,

बुन्देले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी की रानी थी।“

  “पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं“ का मर्म स्वाधीनता की लड़ाई लड़ रहे वीर सैनिक ही नहीं वफादार प्राणी भी जान गये तभी तो पं. श्याम नारायण पाण्डेय ने महाराणा प्रताप के घोड़े ‘चेतक’ के लिए "हल्दी घाटी" में लिखा-

“रणबीच चौकड़ी भर-भरकर, चेतक  बन गया निराला था,

राणा प्रताप के घोड़े से, पड़ गया हवा का पाला था,

गिरता न कभी चेतक  तन पर, राणा प्रताप का कोड़ा था,

वह दौड़ रहा अरि मस्तक पर, या आसमान पर घोड़ा था।“

          देशप्रेम की भावना जगाने के लिए जयशंकर प्रसार ने "अरुण यह मधुमय देश हमारा" सुमित्रानंदर पंत ने "ज्योति भूमि, जय भारत देश।" निराला ने "भारती! जय विजय करे। स्वर्ग सस्य कमल धरे।।" कामता प्रसाद गुप्त ने "प्राण क्या हैं देश के लिए के लिए। देश खोकर जो जिए तो क्या जिए।।" इकबाल ने "सारे जहाँ से अच्छा हिस्तोस्ताँ हमारा" तो बालकृष्ण शर्मा 'नवीन' ने 'विप्लव गान' में 

''कवि कुछ ऐसी तान सुनाओ, जिससे उथल-पुथल मच जाये

एक हिलोर इधर से आये, एक हिलोर उधर को जाये

नाश ! नाश! हाँ महानाश! ! ! की

प्रलयंकारी आंख खुल जाये।" 

           कहकर रणबांकुरों में नई चेतना का संचार किया। इसी श्रृंखला में शिवमंगल सिंह ‘सुमन’, रामनरेश त्रिपाठी,  रामधारी सिंह ‘दिनकर’ राधाचरण गोस्वामी, बद्रीनारायण चौधरी प्रेमघन, राधाकृष्ण दास, श्रीधर पाठक, माधव प्रसाद शुक्ल, नाथूराम शर्मा शंकर, गया प्रसाद शुक्ल स्नेही (त्रिशूल), माखनलाल चतुर्वेदी, सियाराम शरण गुप्त, अज्ञेय जैसे अगणित कवियों के साथ ही बंकिम चन्द्र चटर्जी का देशप्रेम से ओत-प्रोत “वन्दे मातरम्“ गीत-

वन्दे मातरम्!

सुजलां सुफलां मलयज शीतलां

शस्य श्यामलां मातरम्! वन्दे मातरम्!

शुभ्र ज्योत्स्ना-पुलकित-यामिनीम्

फुल्ल-कुसुमित-दु्रमदल शोभिनीम्

सुहासिनीं सुमधुर भाषिणीम्

सुखदां वरदां मातरत्। वन्दे मातरम्! “

...........................जो आज हमारा राष्ट्रीय गीत है, जिसकी श्रद्धा, भक्ति व स्वाभिमान की प्रेरणा से लाखों युवक हंसते-हंसते देश की खातिर फांसी के फंदे पर झूल गये। वहीं हमारे राष्ट्रगान "जनगण मन अधिनायक" के रचयिता रवीन्द्र नाथ ठाकुर का योगदान अद्वितीय व अविस्मरणीय है।

          स्वतंत्रता दिवस के सुअवसर पर बाबू गुलाबराय का कथन समीचीन है - "15 अगस्त का शुभ दिन भारत के राजनीतिक इतिहास में सबसे अधिक महत्व है। आज ही हमारी सघन कलुष-कालिमामयी दासता की लौह श्रृंखला टूटी थीं। आज ही स्वतंत्रता के नवोज्ज्वल प्रभात के दर्शन हुए थे। आज ही दिल्ली के लाल किले पर पहली बार यूनियन जैक के स्थान पर सत्य और अहिंसा का प्रतीक तिरंगा झंडा स्वतंत्रता की हवा के झौंकों से लहराया था। आज ही हमारी नेताओं के चिरसंचित स्वप्न चरितार्थ हुए थे। आज ही युगों के पश्चात् शंख-ध्वनि के साथ जयघोष और पूर्ण स्ततंत्रता का उद्घोष हुआ था।"
ऐ मेरे वतन के लोगों ज़रा आंख में भर लो पानी गीत को याद करते हुए सभी देशवासियों को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं सहित

जय हिन्द! जय भारत! 


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sayyeda khatoon

sayyeda khatoon

कविता जी आपने बहुत अच्छा लिखा है👌

15 अगस्त 2022

Dharmendra Kumar manjhi

Dharmendra Kumar manjhi

बहुत सुन्दर लेखन जय हिन्द!

15 अगस्त 2022

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रचनाएँ
लोक पर्व व सामयिक चिंतन (दैनन्दिनी-अगस्त, 2022)
5.0
इस माह की दैनन्दिनी में आपको विविध विषयों के अंतर्गत जहाँ एक ओर हमारे सामाजिक चिंतन में मित्रता और आज़ादी के गर्व और खेलों के महत्व को समझने-पढ़ने को मिलेगा वहीँ दूसरी ओर सनातन धर्म की महानता के साथ ही लोक जीवन में रक्षाबंधन, स्वतंत्रता दिवस और गणेशोत्सव जैसे लोक पर्वों की झलक देखने को मिलेगी। इसके साथ ही आपको देश व समाज में फैली जातिगत, शरणार्थी, सांस्कृतिक बहिष्कार, भड़काऊ भाषण व जल संरक्षण जैसी समस्याओँ का सामयिक चिंतन पढ़ने और विचार करने को मिलेगा।
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मित्रता के मायने

3 अगस्त 2022
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आज का समय आभासी दुनिया में डूबी दोस्ती–यारी का है। आज दुनिया में एक दिन फ्रेंडशिप डे का हो-हल्ला मचाकर दोस्त बनाने का समय है, जो साल भर में एक दिन आकर हमें भूले-बिसरे, नए-पुराने दोस्तों की याद दिलाता

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आज़ादी के गर्व का महोत्सव

4 अगस्त 2022
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  इन दिनों पूरे देश में हमारी स्वत्रंत्रता के 75 वर्ष पूरे होने पर उसे 'अमृत महोत्सव' के रूप में मनाने की धूम मची हुई है। यह महोत्सव विविध उद्देश्य पूर्ति के लिए देश भर में मनाया जा रहा है।  जहाँ ए

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काल विश्व का स्वामी है

5 अगस्त 2022
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संत कबीर जी कहते हैं कि- "  काल करे सो आज करै, आज करे सो अब । पल में परलय होएगी, बहुरि करैगो कब।।" अर्थात कल का नाम काल है, इसलिए मनुष्य को जो भी काम करना है, उसे कल पर नहीं टालना चाहिए।  क्योंकि क

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दोस्ती-यारी के मायने

6 अगस्त 2022
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दोस्ती एक अनमोल गहना है। इस बारे में विचार करने से पहले हमें दोस्ती क्या है, दोस्त कौन है, कैसा है, इसे अनिवार्य रूप से परखने और समझने की  आवश्यकता है। बड़े-बुजुर्गों का कहना है कि हमें अपने मित्रों का

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मित्र के घर का रास्ता कभी लम्बा नहीं होता है

7 अगस्त 2022
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मित्र के घर का रास्ता कभी लम्बा नहीं होता है।। मित्रों का भला करने वाला अपना भला करता है।। बिना विश्वास कभी मित्रता चिर स्थाई नहीं रहती है। मैत्री में महज औपचरिकता अधूरेपन को दर्शाती है।। दूसर

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खेलों का महत्व

8 अगस्त 2022
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मेरे मत से समय बिताने के लिए, शरीर को स्वस्थ रखने के लिए तथा मन को सुदृढ़ करने के लिए जिन खेलों को खेलने के लिए राष्ट्रमंडल देश मिलकर आयोजन करते हैं, उसे कॉमनवेल्थ गेम्स कहना उचित होगा। इंग्लैंड के बर्

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भाई-बहन का स्नेहिल बंधन है रक्षाबंधन

10 अगस्त 2022
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          हमारी भारतीय संस्कृति में अलग-अलग प्रकार के धर्म,  जाति,  रीति,  पद्धति,  बोली, पहनावा, रहन-सहन के लोगों के अपने-अपने उत्सव, पर्व, त्यौहार हैं,  जिन्हें वर्ष भर बड़े धूमधाम से मनाये जाने क

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पावन पर्व रक्षाबंधन आया है

11 अगस्त 2022
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रिमझिम सावनी फुहार-संग पावन पर्व रक्षाबंधन आया है घर-संसार खोई बहिना को मायके वालों ने बुलाया है   मन में सबसे मिलने की उमंग धमा-चैकड़ी मचाने का मन है पता है जहाँ सुकूं भरी जिंदगी  वह बचपन

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स्वतंत्रता आन्दोलन में साहित्यकारों की भूमिका

15 अगस्त 2022
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यह सभी जानते हैं कि 15 अगस्त 1947 को हमारा देश स्वतंत्र हुआ। यह हमारे राष्ट्रीय जीवन में हर्ष और उल्लास का दिन तो है ही इसके साथ ही स्वतंत्रता की खातिर अपने प्राण न्यौछावर करने वाले शहीदों का पुण्

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स्वतंत्रता आंदोलन के नायक

16 अगस्त 2022
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अंग्रेजों की अन्यायपूर्ण, विश्वासघाती और अपमानजनक, राज्य-विस्तार की नीतियों के साथ ही भारतीय और अंग्रेज सैनिकों में भेदभाव का व्यवहार जब चारों ओर फैला तो जनमानस में भारी असंतोष उत्पन्न हुआ तो प्रथम स्

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जात न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान

17 अगस्त 2022
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हमारे हिन्दू धर्म को सनातन धर्म के नाम से जाना जाता है। इसे सृष्टि का आदि धर्म भी कहते हैं।  इस धर्म के मानने वालों को गुण और कर्म के अनुसार विभिन्न वर्णों में विभक्त कर हमारे समाज के निर्माता ऋषि-मुन

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रोहिंग्या : शरणार्थी या अवैध घुसपैठ

18 अगस्त 2022
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रोहिंग्या : शरणार्थी या अवैध घुसपैठ यह यक्ष प्रश्न है? इसका उत्तर वर्तमान परिदृश्य में स्पष्ट रूप में दे पाना किसी के लिए भी संभव नहीं होगा। फिर भी समूची दुनिया इस बात से अनविज्ञ नहीं कि हमारी भ

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सनातन धर्म की महानता

21 अगस्त 2022
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धार्मिक विचार दृटि से ईश्वर, देवी-देवता, देव-दूत (पैगम्बर) आदि के प्रति मन में होने वाले विश्वास तथा श्रद्धा के आधार पर स्थित कर्त्तव्यों, कर्मों और धारणाओं को, जो भिन्न-भिन्न जातियों और देशों में अलग

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ऑनलाइन Vs ऑफलाइन शिक्षा

22 अगस्त 2022
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ऑफलाइन Vs ऑनलाइन शिक्षा पर विचार करने से पहले हमें शिक्षा क्या होती हैं. इस पर थोड़ा विचार कर लेना चाहिए। वस्तुतः शिक्षा का अर्थ है -अधिगम, अध्ययन तथा ज्ञानाभिग्रहण। शिक्षा-शास्त्री टी. रेमांट का

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संस्कृति के बहिष्कार का प्रचलन

23 अगस्त 2022
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किसी भी देश की संस्कृति उसकी आत्मा होती है। संस्कृति हमें राह बताती है तो सभ्यता उस राह पर चलाती हैं। सभी जानते हैं कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी हैं और समाज एवं संस्कृति मानवता के विकास के

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भड़काऊ भाषण

24 अगस्त 2022
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हमारा भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्रात्मक राष्ट्र है।  लोकतंत्र की आधारशिला चुनाव है।  इसलिए यहाँ नियमित रूप से से पांच वर्ष में चुनाव होते हैं। चुनाव का अर्थ है प्रत्याशियों का जनता के दरबार में पहु

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देश के प्राण तत्व होते हैं युवा

25 अगस्त 2022
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किसी भी देश के प्राण तत्व उसके युवा होते हैं। उनकी प्रतिभा, पौरुष, तप, त्याग और गरिमा राष्ट्र के लिए गर्व का विषय होता है। युवाओं का पथ, संकल्प और कर्म राष्ट्रीय पराक्रम और प्रताप के प्रतीक होते हैं।

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जल संरक्षण

26 अगस्त 2022
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           यह सार्वभौमिक सत्य है कि जीव-जगत में ऑक्सीजन की तरह ही जल भी प्राण तत्व है। इसके बिना न तो मनुष्यों का और ना ही पृथ्वी पर पलने वाले अन्य प्राणियों का काम चलता है। इसलिए यह कहना अतिश्योक

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धार्मिक उन्माद भारत माता के भाल पर कलंक है

27 अगस्त 2022
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हमारा भारत धर्म-निरपेक्ष देश है।  विभिन्न धर्मों में पारस्परिक सहिषुण्ता धर्म-निरपेक्ष है। धार्मिक-उन्माद को रोकने का नाम है- धर्म-निरपेक्षता।  यह कार्य आदिकाल से चल रहा है।  इस सम्बन्ध में अथर्ववेद  

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अवैध निर्माण

29 अगस्त 2022
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अभी कल रविवार की बात है सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर नोयडा स्थित अवैध निर्माण कर बनाया गया देश के सौ मीटर सबसे ऊंचे ३२ और २९ मंजिला ट्विन टावर को विस्फोट से ध्वस्त कर दिया गया।  यह हमारे देश में अवैध निर्

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सामाजिक एकाकार का उत्सव है गणेशोत्सव

31 अगस्त 2022
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हमारी भारतीय संस्कृति अध्यात्मवादी है, तभी तो उसका श्रोत कभी सूख नहीं पाता है। वह निरन्तर अलख जगाकर विपरीत परिस्थितियों को भी आनन्द और उल्लास से जोड़कर मानव-जीवन में नवचेतना का संचार करती रहती है।

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