दोस्ती एक अनमोल गहना है। इस बारे में विचार करने से पहले हमें दोस्ती क्या है, दोस्त कौन है, कैसा है, इसे अनिवार्य रूप से परखने और समझने की आवश्यकता है। बड़े-बुजुर्गों का कहना है कि हमें अपने मित्रों का चयन अपनी पुस्तकों की तरह थोड़े लेकिन चुनिंदा तरीके से करनी चाहिए। जिसके जितने कम मित्र होंगे, वह मित्रता के महत्व को उतना अधिक अनुभव करेगा। सच्चा मित्र सदा-सर्वथा मित्र रहता है। सुख-समृद्धि के समय मित्र बनाये जाते हैं , लेकिन विपत्ति के समय परखे जाते हैं। एक सच्चे मित्र के पहचान संत रहीम दास जी ने बड़े ही सरल ढंग से बताया है-
" सब कोउ सब सौ करे, राम, जुहार सलाम।
हित रहीम तब जानिहौं, जा दिन अटके काम।।"
अर्थात वैसे तो सब किसी से राम-राम या दुआ सलाम करके मित्र बनने का नाटक कर लेते हैं, मगर मित्र वही है, जो कठिन समय में राम-सुग्रीव की तरह मित्रता निभाता है। मित्र ऐसा नहीं होना चाहिए जो केवल ऐश्वर्य और वैभव होने पर तरह-तरह से रिश्तेदारी या पारिवारिक सम्बन्ध गांठकर मित्र बने, अपितु सच्चा मित्र तो वह है जो सुख में अगर साथ न भी हो तो विपत्ति में हर हाल में साथ निभाए। इस बात को रहीम ने बहुत ही प्रभावपूर्ण ढंग से समझाया है -
"कहि रमीम संपत्ति सगे, बनत बहुत बहु रीति।
विपत्ति कसौटी जे कसे, ते ही साँचे मीत।।"