संत कबीर जी कहते हैं कि-
" काल करे सो आज करै, आज करे सो अब ।
पल में परलय होएगी, बहुरि करैगो कब।।"
अर्थात कल का नाम काल है, इसलिए मनुष्य को जो भी काम करना है, उसे कल पर नहीं टालना चाहिए। क्योंकि कालचक्र बड़ा बलवान होता है। आजकल-आजकल करते-करते यदि काल ने अपना काम कर दिया तो, फिर कुछ भी हाथ नहीं आने वाला। काल कभी किसी को पूछ के नहीं आता है। वह किसी की स्थिति का ध्यान भी नहीं रखता। वह कब और किसके सामने उसका काल बनकर खड़ा हो जाय, कोई नहीं जानता। उसके लिए " न जाने कित मारिहै, क्या घर क्या परदेश" अर्थात जब वह अपना चक्र चलाता है तो वह न बच्चा, न जवान, न बूढ़ा और न घर या परदेश देखता है। वह कब एक ही झपट्टे से जैसे बाज को बटेर और घास चरती हुई भेड़ को बाघ दबोच लेता है, वैसा कर बैठे, कोई न जान पाता है न समझ सकता है।
कालचक्र कभी रुकता नहीं है वह निरंतर चलता रहता है। वह पीछे मुड़कर नहीं देखता। तभी तो सतयुग, त्रेता, द्वापर बीते लेकिन लौट के नहीं आये। महाभारत में भगवान श्रीकृष्ण के मुख से गीता का उपदेश अर्जुन ने सुना लेकिन उसके पश्चात् कोई नहीं सुन सका। स्पष्ट है बीता हुआ कल जो काल बन जाता है उसे वर्तमान बनाना न नर के वश में है न दैव के। अतः व्यक्ति को काल चक्र को समझकर समय का सदुपयोग करना चाहिए और जिस प्रकार समय पर बीज बोने से समय पर फल आता है उसी प्रकार समय पर कार्य कर फल प्राप्त कर लेना चाहिए, अन्यथा समय बीत जाने पर कुछ भी हाथ न लगने से जीवन व्यर्थ चला जाता है।
काल का भेद पाना मनुष्य के वश में नहीं है। उसकी न किसी से कोई जात-बिरादरी, भाई-बंधुता और न दोस्ती-यारी होती है। उस पर किसी का जोर नहीं चल पाता है। इसीलिए अथर्ववेद में- "कालो हि सर्वस्येश्वर:" कहकर कालचक्र को विश्व का स्वामी बताया गया है।