नई दिल्लीः जौनपुर शहर से पांच किमी दूर पड़ता है मल्हनी विधानसभा का खलीलपुर गांव। दलित बस्ती से सटे बगीचे में गांववालों को जुटाकर विधानसभा प्रत्याशी धनंजय सिंह गांव वालों से बातचीत कर रहे हैं। गांववाले बिजली, पानी, पानी का दुखड़ा सुना रहे हैं। धनंजय भी उन्हीं की जुबान यानी गंवई भाषा में बोल रहे हैं-..... तोहरे सब का जो भी दिक्कत है, ऊ सब हम दूर कर देबै। बस एकजुट होकै आठ मार्च को वोट डाला। एक-एक समस्या हम दूर करबै। यही नजारा था जब इंडिया संवाद की टीम जौनपुर से गुजरते हुए इस गांव में पहुंची। यूपी के बाहुबलियों में शुमार व जौनपुर के पूर्व सांसद धनंजय सिंह इस बार जौनपुर मल्हनी सीट से ताल ठोंक रहे हैं। बसपा से टिकट न मिलने पर निषाद पार्टी से ही अपने चिर प्रतिद्वंदी व सपा सरकार के कद्दावर मंत्री पारसनाथ यादव को चुनौती दे रहे हैं। भाजपा से सतीश सिंह तो बसपा से विवेक यादव चुनाव लड़ रहे। दो ठाकुर और दो यादव के उतरने से चुनाव दिलचस्प है। इलाके के लोग बताते हैं कि कई चुनाव लड़ चुके धनंजय सिंह अब किसी पार्टी के सिंबल के मोहताज नहीं है। इलाके में कराए कार्यों और राबिनहुड की छवि से उन्होंने 30 से 40 हजार का वोटबैंक बना लिया है, जो विरोधी दलों की नींद हराम करने के लिए काफी है। 2012 में जेल में रहते धनंजय ने पत्नी जागृति को चुनाव लड़ाया था तो निर्दल 50 हजार वोट मिले थे, जिससे निजी वोटबैंक के दावे को बल मिलता है।
धनंजय के इलाके में क्यों सभा करने को मजबूर हैं मोदी-मुलायम
रारी विधानसभा सीट परिसीमन बदलने के बाद मल्हनी बन चुकी है। धनंजय के चुनाव में उतरने के बाद मोदी और मुलायम ने जौनपुर की आठ अन्य विधानसभा सीटों को नजरअंदाज कर मल्हनी में ही सभा तय की है। चार मार्च को मोदी कुद्दूपुर में तो मुलायम भी पांच मार्च को यादवेश इंटर कॉलेज में सभा करेंगे। इस बीच अखिलेश की भी चुनाव प्रचार के आखिरी दिन सभा होनी है। धनंजय सिंह का कहना है कि उनके कद से विरोधी दल बेचैन हैं। यही वजह है कि खुद मोदी को भी इलाके में सभा करनी पड़ रही है। बसपा का सिंबल हटने के बाद कैसे चुनाव जीतेंगे। क्योंकि अब दलितों का थोक वोबैंक तो रहा नहीं जो निजी वोटबैंक में जुड़कर 2009 में संसद पहुंचे थे। इस पर धनंजय मुस्कुरा कर जवाब देते हैं। कहते हैं कि 2009 में बसपा से सांसद हुआ, दलितों के लिए काम करने का मौका मिला। उस समय का जो रिश्ता जुड़ा था, वह अब भी बरकरार है। धनंजय का दावा है कि उन्हें सबका समर्थन मिल रहा। सवर्ण, ओबीसी हों या दलित।सबकी गोलबंदी से वे आसानी से चुनाव जीत लेंगे। पूर्व ब्लॉक प्रमुख ब्रजेश सिंह प्रिंशू कहते हैं कि सबको साथ लेकर चलने की धनंजय की क्षमता ही उनकी सबसे बड़ी पूंजी है।
वन बूथ सौ यूथ के फार्मूले पर अमल
धनंजय सिंह बूथ पर यूथ के सहारे चुनाव जीतने का फार्मूला बताते हैं। कहते हैं कि उन्होंने विधायक और सांसद रहते युवाओं के लिए जितना काम किया, उतना किसी जनप्रतिनिधि ने नहीं। टीडी कॉलेज के मैदान में कई खेल प्रतियोगिताएं कराईं, ताकि युवाओं को अच्छा प्लेटफार्म मिल सके। खेल प्रमाणपत्रों से करीब ढाई से तीन हजार युवाओं को हमारे प्रयास से नौकरी मिली। टीडी कॉलेज के मैदान पर साईं सेंटर खोलने के लिए अफसरों के दौरे आदि करा दिए थे, मगर कॉलेज प्रशासन से जमीन न मिलने से यह सपना जरूर अधूरा रह सका। यही वजह है कि युवा वर्ग हमारे साथ है। देखिए वीडियो-इंडिया संवाद से क्या कह रहे धनंजय सिंह
जनता क्या राबिनहुड मानती हैं धनंजय सिंह
धनंजय सिंह की दबंग छवि है। यूपी के चर्चित बाहुबलियों में से एक हैं। दूसरे बाहुबलियों से धनंजय कई मायने में अलग हैं। जौनपुर के एक शख्स राजकिशोर कहते हैं कि लोगों से घुलने-मिलने की जो अदा धनंजय सिंह के पास है, वह पूर्वांचल के दूसरे बाहुबलियों के पास नहीं। धनंजय जनता को वोट खौफ से नहीं प्यार से पुचकार कर पाने के फार्मूले पर अमल करते हैं। मल्हनी के प्रवीण विश्वकर्मा कहते हैं कि दो बार खुद विधायक रहे और फिर पिता राजबली सिंह को विधायक बनाया। बाद में सांसद हुए। इस दौरान धनंजय सिंह ने मल्हनी इलाके में घर-घर हैंडपंप बांटे। धनंजय ने गरीबों की लिस्ट तैयार करा रखी है। बेटियों के शादी-ब्याह करने में मदद करने से नहीं चूकते। लाभ देने में कभीयादव, ब्राह्मण, ठाकुर, दलित जाति नहीं देखी। यही वजह है कि उनके साथ सभी जातियों का समीकरण फिट बैठता है। बॉस्केटबाल खिलाड़ी सिद्धार्थ सिंह कहते हैं कि जौनपुर के खिलाड़ियों के लिए जितना धनंजय ने किया है, उतना किसी ने नहीं। उनके नामांकन में भारी संख्या में युवा खिलाड़ी पहुंचे थे।
धनंजय सिंह का सियासी सफरनामा
कभी लखनऊ विश्वविद्यालय की छात्र राजनीति करते जरायम की दुनिया से नाता जुड़ गया। 2002 में लोकजनशक्ति पार्टी के समर्थन से जौनपुर के रारी से विधानसभा चुनाव में कूदे। किस्मत ने साथ दिया और 27 साल की उम्र में विधायक बने। फिर धनंजय ने जनता में खुद को लोकप्रिय बनाने पर फोकस किया। 2004 का लोकसभा चुनाव लड़े खुद तो हारे ही बाजपेयी सरकार में मंत्री रहे स्वामी चिन्मयानंद को भी हराकर छोड़े। 2007 में जदयू के समर्थन से दोबारा रारी से चुनाव जीते। इस बार बसपा में शामिल हुए और 2009 का लोकसभा चुनाव जीतकर सासंद हुए। रारी की सीट छोड़ने के बाद पिता राजदेव सिंह को चुनाव लड़ाकर विधायक बना दिया। इस बीत 21 सितंबर 2011 को तगड़ा झटका तब लगा जब बागी तेवर पर मायातवी ने पार्टी से बाहर निकाल दिया। एक साल बाद मजबूरी में बसपा ने फिर वापस लिया। मगर एक मामले में जेल जाने पर 2012 में पत्नी जागृति चुनाव लड़ीं मगर हार का सामना करना पड़ा। 2014 का चुनाव धनंजय निर्दल लड़े, मगर मोदी लहर में हार गए। अब फिर मल्हनी से किस्मत आजमा रहे हैं।
2012 में मल्हनी का जनादेश
सपा-पारसनाथ यादव जीते
कुल वोट-81602
निर्दल-जागृत पत्नी धनंजय सिंह
50100
बसपा-पाणिनि सिंह 45841
लोकदल-कांग्रेस अमित यादव-2610
मल्हनी के जातीय आंकड़े
कुल वोट-तीन लाख 4010 हजार
यादव-करीब 80 हजार
दलित-60
ठाकुर-50 हजार
मुसलमान-40