राकेश कुमार पंवार चानी
बचपन की रेलगाड़ी
आज विदेशियो की सवारी गाड़ी को राजस्थान ले जाने के लिए कोई ड्राईवर नही मिल रहे थे क्योंकि आधे से ज्यादा छुट्टी पर थे बाकी जो थे वे नई भर्ती मे आने की वजह से उन ड्राईवर को राजस्थान के बारे में जानकारी नही थी।जब ड्राईवरो की सूची में देखा तो एक नाम आगे आया वो था मि.महेश शर्मा जो कि राजस्थान के एक छोटे से गांव में उनकी पढ़ाई-लिखाई व बचपन के तराने बीते।जब उसे आॅफिस बुलाया गया तो पहले तो उसने सोचा की न जाने क्या आदेश देगें। जब किसी से 15 वर्ष बाद राजस्थान के बारे में सुना तो बचपन की यादे सामने घूमने लगी। जैसे किसी ने सच्चाई में धकेल दिया हो। तभी किसी आवाज आई,क्या सोचने लगे।और मै वर्तमान स्थिति में आ गया आदेश का पालन करने के लिए आदेश यह था कि राजस्थान में विदेशियो की सवारी गाड़ी लेकर जानी है।यह सुनते ही मै इस तरहा से खुश हो गया कि जैसे किसी छोटे बच्चे की मन पसंद वस्तुु मिल गई हो। इसी तरह मि. महेश की भी यही हालत हो रही थी।जब उसने पुछा कि जान कब है तो उसे जवाब मिला कि कल दोपहर 1ः30मिनट पर।एसी स्थिति में वह सो भी नही सका।क्योंकि उसे अपनी मातृभूमि के जो दर्शन होने वाले थे।उसके लिए अगर दुःख था तो बस केवल मात्र अपनी माँ का।क्योकि उसकी माँ ही तो पंखो को संजोए रखे थे।जब 12 वर्ष का था। तब उसकी माँ का साया उठ गया था।उसकी सोच थी कि वह बड़ा होकर रेल ड्राईवर बनकर उसके सामने आए। इसी तरह पूरे उमंग साथ बचपन के सिलसिले बीतने लगे,जब खाली समय मिलता तो माचिस डिब्बियो को एकत्रित करता और खेलता।जब भी स्कुल के बाद समय मिलता तो वह और उसकी बहन भी घर का सारा काम पूरा हो जाने के बाद दोनो साथ में खेलने लग जाती थी। जब बहुत सारी माचिस की खाली डिब्बियाँ एकत्रित हो जाने के बाद रेलगाड़ी बनाते और इसी समय व्यतित करते थे। इस हरकत को देखकर माँ कहती अरे साहब जरा ध्यान से चलाना पिताजी तो पूरे दिन नशे में पड़े रहते थे। माँ हमेशा कहती कि तू बड़ा होकर अगर बने तो रेल ड्राईवर बनना ताकि मैं तेरे साथ चार धाम यात्रा कर सकू।जिससे मेरी आत्मा को शांति मिलेगी।
लेकिन जैसे ही 8वी कक्षा में आया तो पढ़ाई के दौरान ही माँ को कैंसर की बीमारी की वजह से मौत हो गई।जिससे मेरे पढ़ाई को बीच में छोड़नी पड़ी।अब तो एसा लग रहा था। कि उम्मीदो की दुकान बन्द होने वाली थी।लेकिन एक दिन मामाजी शहर से आए। और पिताजी से मेरी पढ़ाई के सिलसिले में बात चली तो दिपक की दूर से रोशनी नजर आती दिखी यानि मामाजी ने कहा कि मेरे साथ चल वहाॅ तेरे को पढ़ाऊँगा। लकिन सफलता भी बन्दे की ठोक परीक्षा लेती है।महेश अपने मामाजी के साथ शहर चला गया। लेकिन पांच-छः महिने बाद मामीजी परेशान करने लगी।वह सुबह से देर रात तक काम फिर भी पढाई करना। एक दिन गलती से मामीजी साड़ी धूलवाने को दी हुई थी। लेकिन मै भूल जाने की वजह से मामीजी ने रात को खाना भी नही दिया।और परीक्षा की तैयारी फुटपाथ पर करनी पड़ी।जब परिणाम आया तो अच्छे नंबरो से पास आने की वजह से सारे दिन घर का काम करवाया।9 वी से 12 वी तक पढ़ाई की।जब काॅलेज का पहला साल था। तो मामाजी ने कहा कि चल आज तेरे को स्वेटर दिला कर लाता हूॅ।हम सड़क के किनारे-किनारे चल रहे थे। तभी किसी मोटरसाइकिल वाले ने पिछे से टक्कर मार दी। मामाजी के सिर में लग जाने की वजह से मौत हो गई।उनकी मौत के कारण मुझे घर से बाहर निकाल दिया।क्योकि मामीजी कहती है। कि उनकी मौत का कारण तू।अगर तेरी स्वटर लेने बाजार नही जाते तो आज उनकी मौत काहे को होती।और मुझे भरी सर्दी में रात गुजारने को मजबुर होना पड़ा।साथ ही उस रात मेरे दोस्त कुत्ते व आवारा घूम रहेे पशुओ को बनना पड़ा।जब सुबह हुई तो चाय पीने के लिए पास ही एक होटल पर गया तो वहाॅ मेरे साथ पढ़ने वाला दोस्त मिल गया। उसने चाय पिलाई,मेरे हाल-चाल पुछे तो उसे मेने पूरी हकीकत बताई। तो उसने अपने पिताजी के बारे में बताय। कि जिस काॅलेज में पढ़ता हूॅ। उस काॅलेज मे वह पढ़ाते है। यह होटल भी उन्ही का है।तो वह मेरे को अपने पिताजी के पास ले गया और उनको मेरे बारे में सब कुछ बता दिया।तो उन्होने कहा कि ठीक है।और मेरे रहने की व्यवस्था भी हो गई। अब गाडी़ पटरी पर दौड़ने लगी।और मुझे विश्वास हो गया कि अब काम बन सकता है।आईआईटी का दुसरा साल पूरा कर तीसरे साल पूरे 82 प्रतिशत बनने पर मुझे काॅलेज में आदर्श के स्तर पर रखा। उसके बाद रेल ड्राईवरो की भर्ती निकलने पर मैं रेल ड्राईवर की परीक्षा पास कर आखिरकार वो मंजिल मिल ही गई जिसका मुझे इंतजार था। पूरा परिक्षण मिलने के बाद दोपहर 1ः30 मिनट पर रवाना किया।अब समस्या थी तो बस इतनी की गाॅव खबर कैसे पहॅुचाऊँ। तभी याद आया कि सरपंच साहब के घर पर फोन है। पूरे गांव में ही एक ही फोन था। फिर मैने कोशिश की तो वो भी पूरी हो गई। और फोन सरपंच साहब ने उठाया। तो मैने उन्हे सारी बात बता दी।सरपंच साहब ने सारे गाॅव में खबर फैला दी। जब मै वहाॅ से रवान हुआ तो एक और मेंरे साथ में रेल ड्राईवर लेके रवाना हुआ ताकि आगे की यात्रा वो करवा सके। साथ ही साहब से भी बात रखी थी कि गाॅव में थोड़ा रूकना है। जब मै गाॅव पहुॅचा तो लोग मेरे स्वागत के लिए खडे थे। मैं उतरा और मेरे साथ जो दूसरा ड्राईवर था वो आगे की यात्रा के लिए निकल पड़ा। मै तो उस भीड़ मे ंइस तरहा से खो गया था कि सब कुछ भूल गया। जब सारे कुछ शांत हुए तो मुझे मालुम चला की उस भीड़ मे भी लड़की थी जिसकी आयु करीब 22-23 वर्ष की होगी।जो सबसे पिछे खडी़ थी।जो मेरी बहन थी।मेने पास जाकर कहा कि चलो बहन माचिस की डिब्बियो को एकत्रित करते है। रेल बनाकर खेले। इतना कहते ही बचपन के दृश्य घूमने लगे।ओर उसकी आॅखो में पानी आ गया वो दोनो भाई-बहन गले मिलकर रोने लगे। उनकी एसी स्थिति को देखकर गाॅव के लोगांे के आॅखो में आसू आ गए। तब गाॅव के लागांे ने कहा की बेटा जो हुआ उसे भूल जाओ।और खुशी के साथ आगे की जिंदगी जीओ। जब मैने पूछा कि पापा कहाॅ है। तो उसने कहा कि दमा की बीमारी की वजह से उनकी मौत हो गई। फिर दोनो घर की तरफ चल दिये। और आज ऐसा लग रहा था कि कोई मिल गया।