नई दिल्ली : दिल्ली के महत्वकांशी मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने रिटायर्ड इंटेलिजेंस अफसरों की मदद से एक स्पेशल यूनिट बना रखा है. इसकी भनक कुछ महीने पहले लेफ्टिनेंट गवर्नर को लगी है. इस यूनिट में बीस से ज्यादा रिटायर्ड ख़ुफ़िया अधिकारी काम कर रहे हैं.
यही नही एक अजीबो गरीब योजना के तहत दिल्ली सरकार, अफसरों की जासूसी और पड़ताल कराने के लिए, एक बड़ी फौज भी खड़ी करना चाह रही थी. इस गोपनीय योजना के दस्तावेज़ी सबूत अब सामने आये हैं. दस्तावेजों से ज़ाहिर होता है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल आम आदमी पार्टी के प्रति वफादार रिटायर्ड इंटेलिजेंस अफसरों को भर्ती करना चाह रहे थे. इस यूनिट के लिए उन्होंने अलग से दफ्तर, 68 मोटर गाडी, 70 कंप्यूटर और बाकी उपकरणों की खरीद के लिए अलग से बजट का प्रावाधान किया था. ये यूनिट सरकारी अफसरों के बहाने विपक्षी नेताओं पर भी ख़ुफ़िया निगाह रखता.
जासूसी के लिए 15 गुना बढ़ा दिया सीक्रेट सर्विस फंड
दिल्ली में सरकार बनाने के साल भर के अंदर, 1 अप्रैल 2015 को, कैबिनेट बैठक में केजरीवाल ने फैसला लिया की एंटी करप्शन शाखा में 259 अतिरिक्त नियुक्तियां की जाएंगी. इस बैठक में केजरीवाल ने ये भी फैसला लिया की 1.50 लाख रूपए के सीक्रेट सर्विस फण्ड को 20 लाख रूपए कर दिया जायेगा. सीक्रेट सर्विस फंड का कोई ऑडिट नही होता और सरकार चाहे तो इस पूरे फंड को मुखबिरों पर ख़र्च सकती है.कुछ महीने बाद ही ,यानी 29 सितम्बर को एक और कैबिनेट बैठक में केजरीवाल ने एक और अहम फैसला लिया. इस फैसले के तहत उन्होंने सतर्कता बढ़ाने के लिए सरकार के अधीन एक नया यूनिट खोलने के प्रस्ताव को मंज़ूरी दे दी. केजरीवाल का मकसद सरकार में एक मज़बूत जासूसी और निगरानी का यूनिट खड़ा करना था जो उनके लिए हर तरह के सीक्रेट काम करे.
फरवरी 2016 से चल रहा है जासूसी का यूनिट
दिल्ली से प्रकाशित 'ओपन' पत्रिका के मुताबिक केजरीवाल ने बिना लेफ्टिनेंट गवर्नर नजीब जंग की मंज़ूरी से इस सीक्रेट यूनिट को स्थापित किया जिसमे 20 रिटायर्ड वफादार अफसर थे. ये यूनिट फरवरी 2016 से चल रहा है और ओपन पत्रिका का कहना है की इसमें कई और अफसरों की भर्ती भी की गयी है. इस ख़ुफ़िया यूनिट को सतर्कता विभाग के नीचे रखे जाने का प्रस्ताव था . सतर्कता विभाग कायदे से मुख्य सचिव के अधीन आता है लेकिन इस ख़ुफ़िया यूनिट की मुख्य सचिव को जानकारी नही थी. यहां तक कि लेफ्टिनेंट गवर्नर को भी इस ख़ुफ़िया यूनिट के बारे में अगस्त 2016 को पता लगा. सूत्रों के मुताबिक इस ख़ुफ़िया यूनिट को लेफ्टिनेंट गवर्नर ने मंज़ूरी नही दी थी इसलिए इसका काम करना गैर कानूनी माना जायेगा. बहरहाल ख़ुफ़िया यूनिट के बारे में अब लेफ्टिनेंट गवर्नर ने केंद्रीय गृह मन्त्रालय को जानकारी दी है. उधर ओपन पत्रिका ने जब इस मांमले में केजरीवाल का जवाब जानना चाहा तो केजरीवाल चुप रहे.कहने वाले यहाँ तक कह रहे हैं कि ये ख़ुफ़िया दिल्ली सरकार के मंत्री और अफसर के अलावा मोदी के करीबी लोगों की भी निगरानी कर रहा है.