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बदलाव

नवलपाल प्रभाकर दिनकर

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बदलाव वह औरत जिसका नाम कमला था । आज तो मुझे किसी भी किमत पर नही छोड़ने वाली थी । क्योंकि सुबह से ही हर किसी इंसान से या गली से गुजरने वाले बच्चे, बूढ़े या जवान से मेरा पता पूछती, फिर रही है क्योंकि अभी तीन दिन पहले ही मैं उस गली से गुजर रहा था, जिस गली में उसका बड़ा-सा एक मकान था । उस रही है, क्योंकि यह मैं भी जानता था कि-कमला उस मोहल्ले में सबसे ज्यादा मकान में एक कमरा ऐसा था, जिसमें उसके सास-ससुर लेटे हुए थे । बस उन्हीं से मिलकर मैं आया था। खडे़-खड़े ही उनसे उस दिन बस मिनट भर से ज्यादा बात नही हो पाई थी कि-वे चिल्ला उठे और मैं वहां से भाग निकला । उस वाकये को याद करके आज मेरा दम निकला जा रहा था, क्योंकि मैं सोच रहा था कि-शायद उनके चिल्लाने से कमला को कोई तकलीफ हुई होगी और उसका बदला लेने के लिए आज वह मुझे सुबह से ही पूछ झगड़ालू औरत थी । गुस्सा तो उसकी नाक पर हमेशा धरा रहता था । कोई दिन ऐसा नही होगा जिस दिन कमला किसी से भी झगड़ा ना करती । जिस दिन कमला किसी से झगड़ा ना करती उस दिन उसे भोजन भी नही पचता था । सुबह से शाम तक यदि कोई झगड़ा ना होता, तो शाम को जब उसका पति ऑफिस से घर आता तो उसी के साथ किसी बात पर झगड़ पड़ती । जिस किसी से पूछती वो सीधा मेरे पास आता और उसके विषय में आकर बताते ओर कहते भाई साहब आप इस शहर में शायद नये आये हैं । इसलिए आप उसके विषय में कुछ भी नही जानते। इसलिए आपने उससे बिना वजह ही झगड़ा मोल ले लिया हैं । आप अच्छे इंसान लगते हैं । इसलिए हमारी मानें तो यहां से भाग जाइये। मैं भी उनकी बातों से घबरा गया, क्योंकि मुझे लगा कि आज मेरी खैर नही । मैं वहां से निकल लिया । शहर से बाहर जाने वाली गली के रास्ते बाहर आ गया । शहर के बाहर एक पार्क सा बना हुआ था । जिसमें मैं जब कभी समय मिलता तो घुमने निकल आया करता था। मौसम तो मस्त था ही, और साथ में हरा भरा वह पार्क। जिसमें तरह-तरह के फूल भी खिले थे सो उन्हें देखकर मैं पिछली सारी बातें भूलकर वहीं टहलने लगा, मगर ना जाने उस औरत को उस पार्क का पता किसने दिया । वह वहीं आ पहुंची । जब उसे अपने पास आते हुए देखा तो मैं नजर बचाकर वहां से खिसक लिया । परन्तु वह औरत कहां मेरा पिछा छोड़ने वाली थी । मुझे पकड़ने के लिए वह मेरे पिछे दौड़ी। मैं दौड़ता रहा । वह भी मेरे पिछे रूको-रूको की आवाज करती हुई दौड़ती रही । आखिर मैंने सोचा कि कब तक मैं भागता रहूंगा। आज भागूंगा, कल भागूंगा। परन्तु कभी तो इसके हाथ आऊंगा ही। फिर ना जाने ये मेरे साथ क्या करें सो जो कुछ करेगी। आज ही कर लेगी । यह सोच कर अचानक मैंने अपनी रफतार धीमी कर ली। और उसने पिछे से आकर मुझे पकड़ लिया । आते ही दो तमाचे मेरे मुंह पर जड़ कर कहने लगी - “मुझे देखकर तू भागा” “मैं डर गया था काकी, मुझे माफ कर दो” “तुझे माफ कर दूं ? क्या सोचा था तूने मैं तुझे माफ कर दूंगी । मुझसे ऐसे तो आंख चुरा तेरे काका भी आज तक नही भाग सके फिर तू क्या चीज है । और कहता है डर गया था मैं कोई डायन हूं जो तु मुझसे डर गया । आज तो मैं तुझे नही छोडूंगी । चल मेरे घर । मैं डरता क्या ना करता सो उसके आगे-आगे ऐसे चलने लगा जैसे कोई पशु मालिक की मार से बचने के लिए चुपचाप ईधर-ऊधर बिना देखे चलने लगा, मगर कभी-कभी कनखियों से जो ईधर-ऊधर देखता तो मुझे लोगों के डरे हुए चेहरे और मेरे प्रति सहानुभूति दर्षाते हुए दिखाई दे रहे थे । वे कुछ ना बोलते हुए बस टकटकी लगाये हुए देख रहे थे । क्योंकि उन्हें पता था कि जो उन्होंने टोका तो आफत उनके गले पड़ जायेगी । अब भी कमला के मन में जब आता तो वह मुझे लात-घुस्से जड़ देती थी । उसके घर तक पहुंचते-पहुंचते मुझे बीस-तीस थप्पड़ और बहुत-सी लातें खानी पड़ी थी। बड़ी मुष्किल से मैं उसके घर पहुंचा । उसके घर पहुंचकर दरवाजे के अन्दर दाखिल होकर उसने मुझे बड़े से चौक में एक तरफ बैठने का इषारा किया सो मैं बहुत जल्दी वहां बैठ गया । तू ही है ना, जो उस दिन मेरे घर आया था, चिल्लाते हुए कहा । हां मैं ही था काकी, मुझे माफ कर दो । मैं इस शहर में अंजान हूं । मुझे पता नही था, मैंने डरते हुए हाथ जोड़कर कहा । क्या नही पता था तुझे । यही कि मेरे आने से आप नाराज होंगी । तूने मेरे सास-ससुर को बहकाया है, मैं तुझे नही छोडूंगी । सच-सच बता तूने इनसे ऐसा क्या कहा था । मैनें कुछ नही कहा इनको । कुछ तो कहा होगा इनको, जो ये इतने खुश नजर आ रहे हैं । पहले तो कभी इनको, खुश नही देखा था । मैं इन्हें तड़फ-तड़फ कर और जल्दी से मरता हुआ देखना चाहती थी मगर इनकी खुशी ने तो इनकी उम्र और ज्यादा बढ़ा दी है । मैं अब भी वहां नीची गर्दन किये कांप रहा था मेरे ना बोलने पर उसने दो-चार तमाचे ओर मेरे गालों पर जमा दिये । मेरी आंखों से आंसू बहने लगे । सच-सच बता तूने इन्हें ऐसा क्या कहा जो ये खुश नजर आ रहे हैं । मेरे जोर से चिल्लाने पर भी ये हंसकर चुप हो जाते हैं । बता नही तो आज तेरी खैर नही । अब ये सुनकर मैं चुप हो गया और उस समय को याद करने लगा जब मैं यहां इनकी सास-ससुर के कमरे में घुसा था तो मुष्किल से दो मिनट भी नही रूका फिर उन दो मिनट में मैंने ऐसा क्या कहा जो ये इतने खुष हो गये और इनकी बहू ने मेरी ऐसी हालत कर दी । चुप क्यों है ? तू बताता क्यों नही या दूं खींचकर फिर से कान के नीचे । बताता हूं काकी, बताता हूं । उस समय मैनें क्या कहा था । उस समय खैर इनसे तो मेरी बात भी नही हो पाई थी । मुझे देखते ही आपकी सास चिल्ला पड़ी मैं वहां से भाग लिया । इन्हें देखकर बस मेरे मुंह से इतना जरूर निकला था कि इतनी जगह अर्थात जमीन होने पर जब इनका ऐसा हाल है तो फिर इनकी बहुंओ का हाल कैसा होगा, उनके पास तो इतनी जमीन भी नही होगी । कैसा होगा ? कमला ने एक और जोर का थप्पड़ मेरे गाल पर जड़ दिया । वो......।वो तुम्हारी जगह कम होने के कारण काकी । जगह कम होने की वजह से, वो कैसे ? विस्मय के साथ कमला ने पूछा। अबकी बार मुझे थप्पड़ ना पड़ने की वजह से थोड़ा साहस बढ़ा और मैं बोला । अब तुम्हारे पास चार सौ गज जगह है । जिसमें तुम्हारे देवर-जेठ चार भाई इकट्ठे रहते हैं । तुम्हारे सास-ससुर के लिए कोने में एक बैठक बना रखी है । कल को तुम्हारे चार हिस्से होंगे तो सौ-सौ गज जमीन ही बांटे आयेगी । तुम्हारे सास-ससुर कुछ दिन के हैं । अब आपके कितने पुत्र हैं । वो....।मेरे तो दो पुत्र हैं । तो फिर ये समझो दोनों के हिस्से 50-50 गज जगह ही आयेगी, उसमें उनका ही गुजारा मुष्किल से होगा, फिर आपकी जगह किसी वृद्धाश्रम में होगी । आज आप अपने सास-ससुर को बुरा समझती हैं । कल को आपको भी सास-ससुर बनना है । यही देखकर ही मैंने आपके सास-ससुर से कहा था कि आप तो बहुत सुखी हैं । जो अपने ही घर के एक कोने में रह रहे हैं । आपके बाद तो यहां पर होने वाले वद्धों को वृद्धाश्रम में ही जाना पड़ेगा । कमला यह सुने जा रही थी । उसकी आंखों से अश्रुधार फूट पड़ी थी । आंखों से बहता पानी गालों से होता हुआ ठोडी के नीचे की ओर बहने का सहारा ना मिलने के कारण असहाय होकर टपकने लगा । मेरे चुप होने के बहुत देर बाद कमला अपने कांपते हुए होठों को धीरे-धीरे हिलाने लगी, शायद वह कुछ बोलने की कोषिश कर रही था मगर उसकी जुबान उसका साथ देने से इंकार कर रही थी । कुछ देर तक उसके होंठ ऐसे ही मरते हुए फड़फड़ाते पंछी की भांति कांपते रहे । अंत में खुले ओर कमला ने बोलना शुरू किया - आज तुमने मुझे बहुत बड़ी सीख दी है । आज तक मैंने अपने आस-पड़ोस और अपने घर में दबदबा बना कर रखा है । किसी से झगड़ा करना मेरा एक रोजमर्रा का काम हो गया था । इस कार्य से मैं अपने आने कल को बिल्कुल ही भूल गई थी । मैं तो यही सोच रही थी कि - आने वाले समय में भी मेरा ऐसा ही दबदबा बना रहेगा । मुझे नही पता था कि ये दिन कभी किसी के एक समान नही होते । आज मेरा समय है कल को मेरी औलाद मुझे देखकर मेरे साथ भी ऐसा ही व्यवहार करेगी । यदि मैं अपने बुजुर्ग सास-ससुर की सेवा करूंगी तो हो सकता है कि मेरी औलाद भी मेरी सेवा करे, अन्यथा बुरी दषा तो होनी ही है । नही-नही मैं आज के बाद अपने सास-ससुर की मन से सेवा करूंगी ओर हां आज के बाद कभी किसी से झगड़ा भी नही करूंगी । अब आप मुझे माफ कर दो । मुझसे गलती हुई है । उसकी आप जो सजा मुझे देना चाहें वो मुझे स्वीकार है । नही - नही आप तो मेरी मां के समान हैं । मां तो अपनी औलाद को कभी-कभी बेवजह भी पीट देती है तो क्या मैं आपको उसकी सजा दूं । नही-नही मैंने आपको माफ किया । अच्छा तो अब मैं चलता हूं । नही-नही तुम ऐसे नही जा सकते । आओ अन्दर आओ । क्या अब अन्दर ले जाकर फिर से और पीटना चाहती हैं । यह सुनकर कमला खिल-खिलाकर हंस पड़ी और कहने लगी- अरे नही, आप अन्दर तो चलिये मुझे सेवा का मौका दो । मैं खाना बनाती हूं, खाकर जाना और हो सके तो माफ कर देना और हां इसे अपना ही घर समझना आते-जाते रहना । हां-हां जरूर । आपका खाना भी खाता मगर मेरा बहुत सारा समय बर्बाद हो गया । मुझे कई काम करने थे । इसलिए अब तो जाने दो फिर कभी जरूर आऊंगा । माफ तो आपको पहले ही कर दिया था । अब बार-बार माफी मांग कर मुझे शर्मिंदा मत करो । यदि आप अन्दर नही आये तो मैं समझूंगा कि आपने मुझे माफ नही किया । चलो मैं आपके घर के अन्दर चलता हूं, मगर खाना नही खाऊंगा । खाना ना सही, मगर चाय या कॉफी तुम्हें जो पसन्द हो कहें मैं वही बनाकर दूंगी । यदि आप नही मानती तो एक गिलास पानी ला दो । क्मला ने एक गिलास पानी लाकर दिया । मैंने पानी पिया और वहां से चलने लगा । मैं जब उनके घर से निकला और पिछे मुड़कर देखा तो कमला अब भी मुझे ही देख रही थी । उसके बाद मैं कई बार उनके घर गया । अब तक कमला बिल्कुल बदल चुकी थी । सारे मोहल्ले वाले इसी अचरज में थे कि इसमें इतना बदलाव भला आया तो आया कहां से ? 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