मुम्बई : सरकार की नोटबंदी ने ग्रामीण भारत और किसानों की रीड कहे जाने वाले को-आपरेटिव बैंकों को ठप कर दिया है। इन बैंकों के ठप होने से किसान तो डरे हुए हैं वहीँ राजनीति भी इससे प्रभावित हुई है। इसका अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को अहमदाबाद में बीजेपी के को-ऑपरेटिव बैंक के नेताओं से अपनी मीटिंग की तारिख बदलनी पड़ी। वह अमित शाह तीन दिन के गुजरात दौरे पर को-ऑपरेटिव के नेताओं से मिलने वाले थे।
कॉओपरेटिव बैंकों ने आरबीआई से शिकायत की है कि कमर्शियल बैंक उन्हें करेंसी नही दे रहे हैं। महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश केरल, गुजरात तमिलनाडु और कर्णाटक जैसे कृषि वाले राज्यों की अर्थव्यवस्था इससे बुरी तरह प्रभावित हुई है। आरबीआइ को आशंका थी कि काला धन रखने वाले लोग इन बैंकों की अपारदर्शी व्यवस्था का फायदा उठाकर अपना काला धन खपा सकते हैं। इसलिए केंद्रीय बैंक ने यह कदम उठाया है। पुराने नोट स्वीकार करने की छूट नहीं होने से जिला सहकारी बैंकों का पूरा ढांचा चरमरा गया है। नगदी की कमी से पंजाब के 800 को-ऑपरेटिव बैंकों पर ताला लग गया है।
देशभर में जिला सहकारी बैंकों की संख्या 3,571 और इनके 25 करोड़ से अधिक सदस्य हैं। अधिकांश जिला सहकारी बैंक सीबीएस यानी कंप्यूट्रीकृत बैंक सिस्टम नहीं होने की वजह से इनकी कार्यप्रणाली अपारदर्शी है। साथ ही इनके कामकाज में स्थानीय नेताओं का दखल भी रहता है। विगत में इन बैंकों में धांधली के आरोप भी लगे हैं। शायद यही वजह है कि आरबीआइ ने जिला सहकारी बैंकों के माध्यम से काला धन खपाने की कोशिशों को नाकाम करने के लिए इन्हें पुराने नोट स्वीकारने की इजाजत नहीं दी है। किसानों का प्रमुख राज्य पंजाब के किसान बुवाई में देरी से डरे हुए हैं जबकि बैंक कर्मचारी फैसले के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं।