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बदलते मौसम का अहसास

27 अप्रैल 2022

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27 अप्रैल 2022

50
रचनाएँ
मन मंथन
4.9
इस पुस्तक में विभिन्न विषयों पर कविताएँ लिखीं हैं। कुछ प्रेरक प्रसंग है। कुछ शिक्षाप्रद कविताएँ हैं। * * * * काव्य के अंकुर को, शब्दों से सींचना है। कलम की धार से, किस्मत की लकीर खींचना है। होना है कामयाब, लेखन के क्षेत्र में। कविताओं के जादू से, सबके मन को जीतना है। छोटी-छोटी कोशिशों को, कविता में पिरो लिया। मन के जज़्बात को, भावों से भिगो लिया। कुछ खट्टी कुछ मीठी, यादों को समेटा है। कुछ यथार्थ मुद्दों को, शब्दों में लपेटा है। कहीं टूटते रिश्तों की, जताई फिक्र है। कहीं रूठे हुए को, मनाने का जिक्र है। कभी खुद की खोज का, बुना ताना बाना है। कभी कैद हुनर को, पंख लगाना है। * * * * उम्मीद है आपको मेरी कविताओं का संग्रह पसंद आएगा। 😊
1

करयुग

1 अप्रैल 2022
48
37
12

कलयुग नहीं यह करयुग है, कर्म प्रधान आया युग है।जैसा करोगे पाओगे वैसा,कर्म फल का यह युग है।किसी के लिए करोगे अच्छा,दुर्बल की करोगे रक्षा।होगा तुम्हारा भी भला,परमात्मा देते यही शिक्षा।संस्कारों का

2

चार दीवारी में कैद हुनर

1 अप्रैल 2022
26
25
6

ना जाने कितने हुनर,चार दीवारी में कैद रहते हैं। बंद दरवाजों के पीछे,खिलते मुरझाते रहते हैं।खुलकर जीने की उनको,आजादी होती है पूरी।लेकिन आजाद होकर भी,उड़ने की हसरतें रहतीं हैं अधूरी। चाह

3

बिखरता जा रहा है

4 अप्रैल 2022
26
19
8

क्यूँ नफरतों का सिलसिला, बढ़ता जा रहा है। मानव ही मानव के लिए, जहर उगलता जा रहा है।। कहीं जाति धर्म तो कहीं, अमीरी गरीबी का भेदभाव।

4

बदलने लगी हूँ....

4 अप्रैल 2022
29
23
14

खुद को मैं थोड़ा बदलने लगी हूँ।जाने क्यों लोगों को अखरने लगी हूँ।।रहती थी अस्त-व्यस्त जीवन जंजाल में।आईने को देखकर सँवरने लगी हूँ।।नहीं झांकती थी खिड़कियों से बाहर। अब सुबह शाम जाकर टहलने लगी हूँ

5

ऑनलाइन दोस्ती

5 अप्रैल 2022
18
14
6

हमेशा ऑनलाइन दोस्ती,होती नहीं खराब।कुछ दोस्त ऐसे मिल जाते हैं,जो होते हैं हीरा नायाब। ऐसे दोस्त जब मिल जाते हैं, तो हो जाता है सफर आसान।पथ प्रदर्शक बन कर वो,रखते हैं हमेशा ध्यान।मतलब क

6

पहेली हूँ मैं

7 अप्रैल 2022
16
12
4

दुनिया की भीड़ में, अकेली हूँ मैं। बेहद सुलझी हुई सी, पहेली हूँ मैं।। अपने दिल का हाल, सुनाऊँ मैं किसे। सभी तो अपने हैं, बेगाना कहूँ तो किसे।। जख्म दिए अपनों ने, गैरों की क्या कहूँ। दफन सीने में करके

7

गजल

8 अप्रैल 2022
11
8
1

मुट्ठी में जज्बात, दबा के बैठी हूँ। पलकों में अवसाद, छुपा के बैठी हूँ।।ना नजर मिलाओ कि, ये आँसू बरस जाएंगे।बड़ी मुश्किलों से इन को, संभाले बैठी हूँ।। उमड़ते सैलाब को यूँ ही, दफन रहने दो।दर्द ए एहस

8

कोरोना का मंजर

9 अप्रैल 2022
9
8
0

दौड़ रही थी दुनिया, अपनी रफ्तार में। लगे हुए थे सब, खुद के विस्तार में।। नहीं थी किसी को, पल भर की फुर्सत। आराम को तो जैसे, कर दिया था रुख़सत।। फिर अचानक, आया था कौन। आगाज़ से उसके, सब हो गए मौन।। थम

9

पापा बाहर मत जाना

9 अप्रैल 2022
14
10
1

चॉकलेट बिस्किट आइसक्रीम, कुछ भी मत लाना। कोरोना आ गया है, पापा बाहर मत जाना। गुड़िया मेरी हो गई पुरानी, टूटा मेरा खिलौना। नई साइकिल के लिए, पापा बाहर मत जाना है। गर्मियों में आ गए, मैंगो और बनाना। हमक

10

टूटता हुआ तारा....

11 अप्रैल 2022
8
9
1

टूटता हुआ, तारा हूँ दोस्तों। रोशनी जीतकर, जिंदगी से हारा हूँ दोस्तों।। टूट कर भी मैंने, छोड़ा नहीं चमकना। एक छूटी हुई आस, का सहारा हूँ दोस्तों।। जो कर रहे थे दुआ, टूटने का मेरा। उनकी नजरों की चितवन का

11

प्रकृति फिर से हर्षाये....

14 अप्रैल 2022
8
5
2

कोरोना के समय पर, लगा था लॉकडाउन। बंद हो गए थे, क्या शहर क्या टाउन। कारखाने हो गए थे बंद, रुक गए थे वाहन चलना। घरों में सब कैद हुए, बंद हुआ बाहर निकलना। चारों तरफ हाहाकार मचा था, हर आदमी डरा हुआ था।

12

इंटेलिजेंट कौआ

14 अप्रैल 2022
1
2
1

सुबह सबेरे छः बजे, छत पर टहल रही थी मैं। प्राकृतिक नजारों का, लुफ्त उठा रही थी मैं। चिड़ियाँ चहचहा रहीं थीं, कौआ कर रहे थे कांव-कांव। किट किट करती हुई गिलहरी, बैठी थी टंकी की छांव। मैं यह सब देखकर उनक

13

विडंबना

14 अप्रैल 2022
1
2
0

दोपहर का समय था, दरवाजे पर आवाज आई। दरवाजा खोल के बोली, क्या काम है भाई।। दस बारह साल का लड़का, हाथ जोड़कर बोला। दस रुपये दे दो, शक्ल से दिख रहा था भोला।। मैंने कहा तुम, स्कूल क्यूँ नहीं जाते। पढ़ने

14

मैं डरपोक हूँ....

14 अप्रैल 2022
2
2
1

हाँ मैं डरपोक हूँ, डरती हूँ जमाने से। खुद को कैद कर लिया है, बचती हूँ बाहर जाने से। लेकिन घर के अंदर भी, रह ना पाती सुरक्षित। रिश्तों का नकाब ओढ़े, दरिंदों से होती भक्षित। घूरतीं हुईं निगाहें, हर जगह

15

बन के मोबाइल मैं.....

14 अप्रैल 2022
2
2
1

बन के मोबाइल मैं, तुम्हारे साथ रहूँ। वक्त, बेवक्त, हर वक्त, तुम्हारे पास रहूँ।। ढूंढ़े नजर तुम्हारी, तरसे दीदार को मेरे। एक पल की भी दूरी, तुम्हारी ना सहूँ।। सुनकर आवाज मेरी, दौड़कर तुम आओ। तुम चुपचाप

16

कौन है वो.....

17 अप्रैल 2022
2
1
1

दुकान के किसी कोने में, रखा रहता था। माॅल की कोई रैक पर, सजा रहता था। लोग सामान लेते, उसे कर देते थे अनदेखा। टुकुर टुकुर वह देखा करता, कैसी उसकी भाग्य रेखा।कोई नहीं पूछता उसको, रहता था

17

खुद के लिए.....

19 अप्रैल 2022
1
2
1

उधार की ये जिंदगी, मिली है कुछ दिनों के लिए। काटो नहीं रो रो कर, जी लो खुद के लिए। गम तो हर तरफ, छाए हैं बादलों की तरह। उनकी बारिश में, भीगो खुद के लिए। ना दिखाओ जख्मों को, रो रो कर दूसरों को। मुस्कुर

18

बड़े कब होऐंगे

19 अप्रैल 2022
0
1
0

बचपन में सोचते थे, हम बड़े कब होऐंगे। तब हमें नहीं पता था, जीवन झमेले की। उलझन में उलझ कर, सिर पकड़कर रोऐंगे। बड़े होकर कुछ बड़ा करेंगे, सबसे आगे हम रहेंगे। जो चाहेंगे हासिल होगा, सपने सच पूरे होऐंगे।

19

कितनी भोली थी मैं

19 अप्रैल 2022
0
1
0

जब छोटी थी मैं, घर घर खेला करती थी मैं। आँखों में काजल लगा कर, माथे पर बड़ी सी बिन्दी। गहरी गहरी लगा के लिपस्टिक, पाउडर पोत लेती थी मैं। मम्मी की चुनरी को, साड़ी की तरह लपेट कर

20

हम गृहणियाँ

20 अप्रैल 2022
3
3
1

हम गृहणियाँ होतीं बड़ी कमाल, रखते पूरे घर का ख्याल। चाहे हो खुद की साड़ी, या पति का रुमाल।रहती है हर चीज पर नजर, हर सदस्य की रहती खबर। होते घर के हर कोने से वाकिफ, इसी में बीत जाती है उमर। बन जाए दोस

21

सफलता की पहली सीढ़ी

20 अप्रैल 2022
3
3
3

कामयाबी का स्वाद जरा, चख कर तो देख। सफलता की पहली सीढ़ी, चढ़कर तो देख। मन होकर प्रफुल्लित, आत्मसम्मान से भर जाएगा। जब इस दुनिया में तू, अपनी पहचान बनाएगा। ढूंढ़ना पड़ेगी, तुझको ही अपनी राहें। फि

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टेंशन

20 अप्रैल 2022
1
2
0

दिन, महीने, साल बीत गए, उमर निकल गई टेंशन में। बचपन में पढ़ाई की और, बुढ़ापा गुजरा पेंशन में। गरीब को खाने की और, अमीर को खोने की टेंशन। आम आदमी को रहती, हमेशा महंगाई की टेंशन। शादीशुदा को बीवी की, कु

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नोट और वोट

21 अप्रैल 2022
1
2
1

नोट वोट का है बोलवाला,सत्ता का है खेल निराला।जिसके जेब में होते नोट,साथ में जिसके ज्यादा वोट।कुछ भी करके साफ बच जाए,साथ उसके सब हो जाए।चाहे कितनी भी करें करतूत काली,गवाह सबूत बन जाते जाली।नोट वोट का ल

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कोरोना का खौफ

23 अप्रैल 2022
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पैरों तले जमीन खिसक गई, जब सुना उसे हुआ है कोरोना। मौत को नजदीक आता देख, आ गया उसे रोना। कुछ लोग कहते हैं मौत से डरता है कौन, लेकिन जब दिखती है सामने। तो उड़ जाते हैं होश और, ईश्वर के चरणों को लग जाते

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किशोरावस्था

24 अप्रैल 2022
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1
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किशोरावस्था में सिर्फ लड़कियों पर नहीं, लड़कों पर भी ध्यान देना चाहिए जरूरी है। बढ़ती उम्र के शारीरिक और मानसिक, परिवर्तन से अवगत कराना जरूरी है। मन में उठते हुए सवालों और जिज्ञासाओं का,

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समय

24 अप्रैल 2022
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दिन, महीने, साल ऐसे निकलता है। जैसे बर्तन से दूध उबल कर, बाहर गिरता है।। समय जैसे पंख, लगाकर उड़ता है। बढ़कर आगे फिर, पीछे नहीं मुड़ता है।। जितना मिले समय उसमें, नेक काम कर लो। &nb

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गर्मियों की रातें

24 अप्रैल 2022
0
1
0

गर्मियों का मौसम, रात का समय। कूलर की हवा में, नींद आए गहरी। कि अचानक चली गई लाइट। एक तो तेज गर्मी, ऊपर से मच्छरों की फाइट। थोड़ी देर तक, करते हैं इंतजार। फिर छत पर जाते, वहाँ बिस्तर लगाते। और जैसे ही

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यूज एंड थ्रो

24 अप्रैल 2022
1
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0

पहले एक इंक पेन लाते थे, और एक इंक पोट। रिफिल का पैकेट लाते थे, और एक डोट। कई दिनों तक, यूज़ करते थे। रिफिल बदलते, लेकिन डोट नहीं बदलते थे। अब यूज एंड थ्रो का, जमाना आ गया है। नई नई चीजों को, आ

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हमारी पीढ़ी

24 अप्रैल 2022
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बड़ी अनोखी हमारी पीढ़ी, दो पीढ़ियों की बीच की सीढ़ी। परंपराओं को भी निभाते, आधुनिकता को भी आजमाते। मिट्टी के चूल्हे की रोटी, पिज्जा, बर्गर, आइसक्रीम, फ्रूटी। ठंडा पानी मटके का पीते, बिसलेरी की बोतल

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न्यूज़ पेपर

24 अप्रैल 2022
3
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0

मैं न्यूज़पेपर, मेरी इतनी सी कहानी। सिमटी पूरी दुनिया मुझमें, चंद घंटों की मेरी जिंदगानी।आकर सुबह सवेरे, घर के दरवाजे पर बैठ जाता हूँ।कोई देख ले एक नजर, टकटकी लगाकर देखता हूँ।कुछ आँखें मुझे, पूरा टटोल

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पापा जल्दी घर आ जाना

24 अप्रैल 2022
4
4
1

कपड़े, जूते फुटबॉल, वीडियो गेम, कुछ भी मत लाना। इस बार मेरे बर्थडे पर, पापा जल्दी घर आ जाना। मेरे पिछले बर्थडे पर, आप आए थे इतने लेट। मुझे आपके बिना ही, काटना पड़ा था केक। पिज़्ज़ा, बर्गर, चॉकल

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स्कूल के दिन

25 अप्रैल 2022
2
2
2

स्कूल के वो दिन, अब याद आते हैं। जब हमारे बच्चे, स्कूल जाते हैं। बारह बजे का था स्कूल, साढ़े ग्यारह बजे निकलते थे। सहेलियों के साथ में, पैदल पैदल चलते थे। पहुँचकर स्कूल में, कक्षा में बैग रखते थे। प्

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बदलते मौसम का अहसास

27 अप्रैल 2022
2
3
1

पैसे वालों को मौसम बदलने से, कोई फर्क नहीं पड़ता। चाहे ठिठुरती सर्दी हो, चाहे झुलसाती गर्मी। वो इनसे नहीं डरता। घर में एसी, कार में एसी, और घर से निकले, आफिस में भी एसी। तो क्यूं होगा उसे, बदलते मौसम

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सुनूँ या कहूँ

27 अप्रैल 2022
2
3
0

मन उदास सा था, सोचा किसी से बात करूँ। बताऊँ किसी को तकलीफ अपनी, किसी को मन के जज्बात कहूँ। लगाया फोन एक सखी को, सोचा मैं एक काम करूँ। कुछ तो वह समझाएगी, मन की पूरी बात कहूँ। फोन उठाकर वो बोली, कब तक

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औरत का मजाक

27 अप्रैल 2022
1
1
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जो औरत का मजाक उड़ाते हैं।जो औरत पर जोक्स सुनाते हैं।कभी लेबर रूम में जाकर।दर्द से तड़पती हुई औरत को देखें।कितनी ही हड्डियाँ टूटने जैसा होता है दर्द।औरत की वेदना को क्या समझेगा एक मर्द।लाखों बार मर कर

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पानी बचाओ

28 अप्रैल 2022
3
2
1

जल ही जीवन है सब जपते हैं,पानी बचाएं ना कोय।जो हम सब पानी बचाएं,तो किल्लत काहे को होय।किल्लत काहे को होय,मिले पर्याप्त पानी।और गर्मियों में बिन पानी के,ना आए परेशानी।ना आए परेशानी,तो कोई उपाय सोचो।व्य

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आलसियों के बहाने

28 अप्रैल 2022
2
2
0

सर्दियों के दिन,ठिठुरन से भरे।कंपकपाती सर्दी में,आखिर कोई काम कैसे करे.....गर्मियों के दिन,तपिश से भरे। झुलसाती गर्मी में,आखिर कोई काम कैसे करे.....बारिश के दिन,कीचड़ से भरे। टिपटिपाती बारिश

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गाँव में शौचालय

28 अप्रैल 2022
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1
0

घर-घर शौचालय,हर घर शौचालय,बन गए हैं गाँव में.....होता इनका,इस्तेमाल कैसे कैसे,जाकर देखो गाँव में.....कहीं कंडे भरे हैं,कहीं लकड़ी भरीं हैं,ईंधन को रखते गाँव में.....कोई रखे सामान,कोई खोले दुकान,करते ज

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बारिश का पानी

29 अप्रैल 2022
2
2
4

कितना पानी बरसता है बरसात में, गर्मियों में कहाँ चला जाता है। बारिश के मौसम में पानी ही पानी, और गर्मियों में तरसाता है। बारिश में नदी नाले उफ़न आते हैं, और घरों में पानी भर जाता है। चारों तरफ दिखता

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दर्द-ए-दारू

29 अप्रैल 2022
6
5
3

कुछ लोग दारू पीकर,अपनों को गाली देते हैं।मैं नशे में था,अक्सर ऐसा कहते हैं।नशे की आड़ में,मन की भड़ास निकालते हैं।करते हैं मनमानी,दारू को बदनाम करते हैं।पीने की पड़ गई है लत,पीना मजबूरी बताते हैं।गम छ

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लोकडाउन के बाद स्कूल यूनिफॉर्म

30 अप्रैल 2022
2
3
0

आज ये अचानक मेरी,याद कैसे आ गई।रंग बिरंगी ड्रेसेज में से,आज मैं कैसे भा गई। सो रही थी सुकून से,कबर्ड के किसी कोने में।गहरी नींद में थी,मजा आ रहा था सोने में।खोई थी मैं सपनों में,आकर मुझे जगा दिया

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महंगाई की आदत

30 अप्रैल 2022
0
1
0

महंगाई के बढ़ते ग्राफ को देखकर,सिर चकराने लगा है।अब तो इस महंगाई में,जीना रास आने लगा है।गैस सिलेंडर के दाम,जब से बढ़ने लगा है।चूल्हे की रोटी खाने का,मन करने लगा है।पेट्रोल, डीजल महंगा,जब से होने लगा

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अफ़साना हो गया

30 अप्रैल 2022
0
1
0

मिल गए तुम तो, सफर सुहाना हो गया।खुशियों के पल, जीने का बहाना हो गया।।मांगा था दुआओं में, तुम्हें ही रब से।अब मिले हो तो, रब का शुकराना हो गया।।नहीं थे किस्मत में, पाया है जिद से।तुम्हें पाकर, खुद पर

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प्रकृति का अनुपात

30 अप्रैल 2022
0
1
0

प्रकृति ने मानव को,सब कुछ दिया अनुपात में।दिन में उजाला दिया,अंधेरा दिया रात में।गर्मियों में तपिश दी,फिर राहत दी बरसात में।अपनों का साथ दिया,रूठना दिया हर बात में।कहने को अल्फ़ाज़ दिए,चिंतन दिया जज्ब

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उदास मुस्कराहट

30 अप्रैल 2022
0
1
0

करके विदा बेटी को एक पिता,आँसुओं को पलकों में छुपाता है।रोक नहीं पाता सैलाब को,कहीं कोने में छुपकर बहाता है।याद आता उसे वह पल,जब पहली बार गोद में उठाता है।अपनी नन्हीं सी परी को,सीने से लगाता है।ऊँगली

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टूटते-बिखरते रिश्ते

30 अप्रैल 2022
0
1
0

रिश्ते जो पल में टूट जाते हैं,वो किस काम के।नहीं है उनमें अपनापन,हैं बस नाम के।छोटी-छोटी बातों पर,क्यों रूठ जाते हैं।थोड़ी सी अनबन से,रिश्ते टूट जाते हैं।भले शिकवा शिकायत करो,पर रिश्ता तो ना तोड़ो।अनम

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वायरल बुखार

30 अप्रैल 2022
2
2
0

हो गई हूँ मैं बीमार।आ गया मुझे वायरल बुखार।ज्यादा इतना नहीं की डॉक्टर को दिखाऊँ।कम इतना नहीं की खाना मैं बनाऊँ।ओढ़ के चादर गई लेट।किया ना थोड़ा सा भी वेट।मिल गया है अच्छा मौका।पतिदेव करते चूल्हा चौका।

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कर्मों का फल

30 अप्रैल 2022
1
2
0

आज के थपे कंडे,आज ही नहीं जलते हैं। आज के किए कर्मों के फल,आज ही नहीं मिलते हैं। सूखने के बाद,कंडो को जलाया जाता है।कर्म करने के बाद,उनका फल जरूर मिलता है।कुछ कंडो को जलाकर,

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मैं अफसर बन जाऊँ

30 अप्रैल 2022
1
2
0

माँ मुझे इतना पढ़ा दो,मैं अफसर बन जाऊँ।नहीं रहूँ आश्रित किसी पर,खुद अपनी किस्मत बनाऊँ।ये घर तेरा, वह घर तेरा,अब और नहीं सुन पाऊँ।सजा के अपने सपनों को,अपना घर बनाऊँ। इसकी सुनो, उसकी सुनो,&nb

50

प्रकृति का नियम

30 अप्रैल 2022
3
2
1

सर्दियों में छत पर जाकर,धूप सेका करते थे।और धूप भी रहती नदारद,एक झलक को तरसा करते थे।गर्मियों में धूप का,छाया रहता प्रकोप है।लगता जैसे सूरज को,आता कोप है।और बारिश में मौसम का,मिलाजुला रूप है।कभी मूसला

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