बेफिक्र निकल पड़ता हूं उन रास्तों पर
जिन रास्तों पर अक्सर मिला करते थे हम,
की काश किसी शाम वो नज़रों के सामने आए
और डर तो इस बात का भी है कि
कहीं वो मेरी आखिरी शाम ना बन जाए।।
उसे देखते ही भूल जाता था सब कुछ
माना सालो गुजर गए तुमसे मिले हुए,
क्या पता इस बार तुम्हे देखूं तो
कही ये दिल धड़कना ही भूल जाए।।
दुआ करूंगा ऊपरवाले से अच्छा ही है
कि उसका चेहरा नजरो के सामने ना ही आए
लेकिन दिल के कोने में एक ख्वाहिश ये भी है कि
मेरे आखिरी पालो में मेरा सर उसकी गोद में हो
और वो अपने अपने हाथो से मेरे सर को सहलाए
और उस पल में मेरी आखिरी सांस भी थम जाए।।
✍️ Onkar Kumar....