सावित्री तेरी तो किस्मत ही खराब दूसरी पोती का मुंह देख रहीं हैं.......!!
वो भी एक ही बेटे की दो बेटियों का......... ताना देते हुए सावित्री की सहेली पुष्पा कहती है.....!!!
अरे पुष्पा ऐसा कुछ नहीं है... हमने बेटा और बेटी में कभी भेदभाव नही किया वैसे भी मेरा बड़ा बेटा और बहु आ रहा है, उसके तीन बेटे हैं और मेरे तीन पोते हैं, अगर उस पर दो पोतियों आ गई तो किस्मत कैसे खराब हो गई..... हम्म......!!!!
ये सब कहने की बात है सावित्री बेटीयाँ बोझ ही होती है बेटीयों से वंश आगे नहीं बढ़ता . ............. ठीक कह रही हो आंटी जी आप बेटी बोझ ही होती है, भगवान का शुक्र है कि मुझे तीन बेटे हैं, क्या होगा मेरे भाई का पहले ही एक बोझ था उस पर एक और बोझ आ गया........!!!
पता नहीं उसके बुढ़ापे में सहारा कौन बनेगा..??..?????...
सुमित , भाईया आप चिंता न करें मैं अपनी बेटियों को उस मुकाम पर पहुँचा दुंगा, कि एक दिन आप भी कहेंगे कि काश भगवान ने एक बेटी मुझे भी दी होती.....!!
ये सब किताबों और कहानियों में होता है ऐसा असल जिंदगी में नहीं होता है.......!!!
दिन बीतते गए और वो साल बन गए, सुमित की दोनों बेटियां बड़ी हो गई और पढ़ लिख कर अपने मुकाम पर पहुँच गई, एक डाॅक्टर बनीं, और दूसरी बकील बनी, सुमित की जिंदगी ऐस और आराम से कटने लगी, दोनों बेटियां अपनी जिम्मेदारी भी बखूबी निभाती और अपने पिता का पूरा ख्याल रखती........!!!
वही सुमित के बड़े भाई और भाभी का जीवन वृद्धाश्रम में कट रहा था, और उसे अपने छोटे भाई सुमित की बातें याद आ रही थी, वो अपनी पत्नी से कहता है कि सुमित सही कहता था कि बेटियां बोझ नही होती, उसके पास दो बेटियां हैं और वो अपने घर में है, और एक मैं बदनसीब तीन बेटों का पिता होकर भी वृद्धाश्रम में हूँ शायद हमारे मरने पर हमारे बेटे हमें कंधा तक देने न आये....... शायद मै ही इस भ्रम में था कि बेटियां बोझ होती है........!!!