औरते पागल होती है
फिर भी घर को घर रखती है
पागलखाना नही बनाती है
तुम घर को घर कह सको
इसलिए घर सजाती है
तुम तो ऐसी ( एयरकंडीशनर )
मे बैठ कर करमचारी पर हुकुम चलाते हो
मै आंच मे तपकर तुम्हारे लिए खाना बनाती हूँ
तुम तो घर मे पैसे खर्च करके रौब जमाते हो
मै तो खुद को खर्च करके चुप रह जाती हूँ
तुम्हारा सबके सामने मुझे पागल कहना हड़ जाता है
पर मै ये बात भी सह जाती हूँ
तुम्हारे घर को अपना जाना
हर रिश्ते को अपना माना
इतना ही तो चाहती हूँ तुमसे
गर आए मेरे मायके वाले
उनको तुम अपना कह डालो
जब कही जाना हो हम दोनो को
तुम्हारा घर से पहले निकल कर गाड़ी का हार्न बजाना
अच्छा नही लगता है
जब तुम मुझे डाटते हो मेकअप तो रह जाता है
पर भाव कही खो जाता है
छोटी सी गलती पर तुम्हारा यह कह जाना हड़ जाता है
निकल मेरे घर से यहा तेरी जरूरत नही है
यह शब्द सुनकर मै टूट कर बिखर जाती हूँ
बिन गलती की सजा मे माफी मै ही मांगती हूँ
तुम्हारा यूं अकड़कर रहना तभी संभव हो पाता है
मै सहती हूँ तुम्हारी हर वो जागती जिसे माफ करना संभव
नही हो पाता है
क्योंकि तुमही तो कहते हो औरते पागल होती है
हाँ वो पागल होती है, अपने रिश्ते के लिए अपने घर संसार
के लिए अगर वो भी तुम पुरुषो के जैसे समझदार हो जाए
तो घर घर नही जंगल बन जाएगा और यह संसार शमशान
बन जाएगा
औरते बरदाश्त करती है ताकि तुम अपने पुरुष होने पर
इतरा सको ...........!!