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भगतसिंह / नागार्जुन

26 अप्रैल 2023

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अच्छा किया तुमने
भगतसिंह,
गुजर गये तुम्हारी शहादत के
वर्ष पचास
मगर बहुजन समाज की
अब तक पूरी हुई न आस
तुमने कितना भला चाहा था
तुमने किनका संग-साथ निबाहा था
क्या वे यही लोग थे—
गद्दार, जनद्वेषी अहसान फरामोश ?
हकूमत की पीनक में बदहोश ?
क्या वे यही लोग थे,
तुमने इन्हीं का भला चाहा था ?
भगतसिंह,
तुम्हारी वे कामरेड क्या लुच्चे थे, लवार थे ?
इन्हीं की तरह क्या वे आप पब्लिक की गर्दन पे सवार थे ?
अपनी कुर्सी बचाने की खातिर
अपनी जान माल की हिफाजत में
क्या तुम्हारे कामरेड
इन्हीं की तरह
कातिलों से समझौता करते ?
क्या वे इन्हीं की तरह
अपना थूक चाट-चाट कर मरते ?
हमने तुम्हारी वर्षगाँठ को भी
धंधा बना लिया है, भगतसिंह
हमने तुम्हारी प्रतिमा को भी
कुर्बानी का प्रमाण पत्र थामे रहने के लिए
भली भाँति मना लिया है !
भगतसिंह, दर-असल, हम बड़े पाजी हैं
तुम्हरी यादों के एक-एक निशान
हम तानाशाहों के हाथ बेचने को राजी हैं
दस-पाँच ही बुजुर्ग शेष बचे हैं
वे तुम्हारे नाम का कीर्तन करते हुए
यहाँ वहाँ दिखाई दे जाते हैं
वे उनके साथ शहीद स्मारक
समारोहों के अगल-बगल मंचस्थ
होते हैं उन्हीं के साथ
जिनकी जेलों के अन्दर हजार-हजार
तरुण विप्लवी नरक यातना भोग रहे हैं
और वे उनके साथ भी
शहीद-स्मारक-समारोहें में अगल-बगल
मंचस्थ होते हैं
जिनकी फैक्टरियों के अन्दर-बाहर
श्रमिकों का निरंतर बध होता है
भगतसिंह, क्या वे सचमुच तुम्हारे साथी थे ?
नहीं, नहीं, प्यारे भगतसिंह, यह झूठ है !
ऐसा हो ही नहीं सकता
कि तुम्हारा कोई साथी इन
मिनिस्टरों से, इन धनकुबेरों से
हाथ मिलाये !
दरअसल वे कोई और लोग हैं
उनरी जर्जर काया के अन्दर
निश्चय ही देश-द्रोही-जनद्रोही
दुष्टात्मा प्रवेश कर गयी है
भगतसिंह, अच्छा हुआ तुम न रहे !
अच्छा हुआ, फाँसी के फन्दे पर झूल गये तुम ?
ठीक वक्त पर शहीद हो गये,
अच्छा किया तुमने
बहोऽऽत अच्छा ! बहोऽऽत अच्छा ! ! 

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रचनाएँ
पुरानी जूतियों का कोरस
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नागार्जुन के काव्य संग्रह पुरानी जूतियों का कोरस का संकलन।
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भारतेन्दु / नागार्जुन

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सरल स्वभाव सदैव, सुधीजन संकटमोचन व्यंग्य बाण के धनी, रूढ़ि-राच्छसी निसूदन अपने युग की कला और संस्कृति के लोचन फूँक गए हो पुतले-पुतले में नव-जीवन हो गए जन्म के सौ बरस, तउ अंततः नवीन हो ! सुरपुरवास

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भगतसिंह / नागार्जुन

26 अप्रैल 2023
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अच्छा किया तुमने भगतसिंह, गुजर गये तुम्हारी शहादत के वर्ष पचास मगर बहुजन समाज की अब तक पूरी हुई न आस तुमने कितना भला चाहा था तुमने किनका संग-साथ निबाहा था क्या वे यही लोग थे— गद्दार, जनद्वेषी

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