नई दिल्ली : हिंदू धर्म में भगवान शिव को संत के रुप में दर्शाया जाता है. जटा जूट वाले, शरीर पर राख लगाए वह बर्फ से ढंके पहाड़ की चोटी पर विराजमान है वे अपने आप मे मग्न है ब्रम्हांड के बारे में बिल्कुल असादसीन . उनका लिंग तीव्र है पर आंखे बंद है. ये दिखाता है कि शिव का प्रचण्ड संसारिक बातों से नहीं होता है बल्कि अंस स्थिर आत्मा की शांतचित्तता से होता है.
मौसम आते हैं जाते है . संस्कृति की उत्थान और पतन होता है . मूल्य बदल जाते है मानक परिवर्तनीय हैं संसारिक सत्याशर्तों से जुड़े दिखते है . यह स्थान . समय और लोगों के विचारों के सापेक्षित है. शिव वो भगवान है जो इन संसारिक सत्यताओं मेंयकीन नहीं रखते . वह उस सच्ची को खोजते हैं जो स्थायी है. पूर्ण है और बिना शर्ता है इसलिए वह दुनिया की ओर सेअपनी आंखें बंद रखते हैं. वह यादों इच्छाओं , विचारों औरअहम को अपने चित्त में स्तान देने से मना करते हैं. चित्त री शुध्दता ही ज्ञान ोदयकी ओर ले जाती है . ज्ञानोदय के साथ आता है , आनंद . शातिपूर्ण वरदान. ये वरदान सभी इच्छाओं के उपर है. महसूस करने और प्रतिक्रिया देने की कोई ललक नहीं है शरीर या दुनिया की भी कोई जरुरत नहीं है कोई क्रिया. प्रतिक्रिया या जवाबदेही नहीं है . कर्म नहीं है , इसलिए संसार नहीं है . विश्व का अस्तित्व नहीं है जो भी अस्तित्व में है वो है आत्मा जो खुद के लिए स्जित एकांत में है. इसलिए शिव विश्व के संहारक भगवान है.
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