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भगवती चरण वर्मा के बारे में

भगवतीचरण वर्मा का जन्म उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले में स्थित शफीपुर नामक ग्राम में सन् 30 अगस्त 1903 ई० में हुआ था। भगवतीचरण वर्मा के पिता का देहान्त प्लेग से सन् 1908 ई. में ही हो गया था। इनकी माता अत्यन्त स्नेहशील व ममतामयी थी। बालक भगवती की पढ़ाई-लिखाई आर्थिक कठिनाइयों में हुई। अपनी फीस के लिए उन्होंने विद्यार्थी संघ तक से सहायता नहीं ली। आर्थिक संघर्ष में पिसते हुये कई बार नंगे पैर स्कूल जाने पर भी हीन भावना ने कभी ग्रस्त नहीं किया। उनकी प्रतिभा ने सदैव उन्हें उत्साहित किया और वे जीवन पथ पर बढ़ते चले गये। पढ़ने-लिखने में कुशाग्र बुद्धि होने के कारण भगवती बाबू ने प्रारम्भिक कक्षायें अच्छे अंक से पास की। एम. ए. हिन्दी में प्रथम वर्ष में प्रथम श्रेणी प्राप्त की। भगवतीचरण वर्मा एक बहुमुखी प्रतिभा के धनी साहित्यकार थे। उन्होंने न केवल काव्य, कहानी और उपन्यास अपितु नाटक, निबन्ध पर भी अपनी लेखनी चलाई। ‘पतन’ वर्मा जी का प्रथम उपन्यास है। इसके पश्चात् उनकी प्रारम्भिक काव्य रचनाओं का संग्रह मधुकण 1932 में प्रकाशित हुआ। सन् 1934 में प्रकाशित चित्रलेखा उपन्यास वर्मा जी की सर्वाधिक सफल औपन्यासिक रचना है। इस उपन्यास पर फिल्म का निर्माण हुआ ‘मेरी कहानियाँ’ सन् 1974 में प्रकाशित हुई। सन् 1972 में मेरे नाटक का प्रकाशन हुआ। वर्मा जी की सभी कहानियाँ, कवितायें एवं नाटक इन संग्रहों में संग्रहीत किये गये हैं।

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भगवती चरण वर्मा की पुस्तकें

भगवतीचरण वर्मा की प्रसिद्ध कहानियाँ

भगवतीचरण वर्मा की प्रसिद्ध कहानियाँ

यह कहानी हमारे उस सामाजिक मानसिकता पर प्रकाश डालती है, जहाँ सारे रिश्ते बंधन केवल स्वार्थ और धन की डोर से बंधे हैं ।धन-संपत्ति केंद्र-बिंदु में आने पर वही रिश्ते प्रिय लगने लगते हैं और धन-संपत्ति की वजह से ही रिश्तो में दरार भी आ जाती है। यह कहानी उस

9 पाठक
29 रचनाएँ

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भगवतीचरण वर्मा की प्रसिद्ध कहानियाँ

भगवतीचरण वर्मा की प्रसिद्ध कहानियाँ

यह कहानी हमारे उस सामाजिक मानसिकता पर प्रकाश डालती है, जहाँ सारे रिश्ते बंधन केवल स्वार्थ और धन की डोर से बंधे हैं ।धन-संपत्ति केंद्र-बिंदु में आने पर वही रिश्ते प्रिय लगने लगते हैं और धन-संपत्ति की वजह से ही रिश्तो में दरार भी आ जाती है। यह कहानी उस

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भगवती चरण वर्मा के लेख

भाग 2

10 अगस्त 2022
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युवती ने पाँच रुपए का नोट मियाँ राहत को देते हुए कहा-“हाँ, अभी हाल में ही मोटर चलानी सीखी है। लो, अपने बचने की खैरात बॉँट देना।” अपने हाथ हटाकर जेब में डालते हुए मियाँ राहत ने अपना मुँह फेर लिया--“मि

वरना हम भी आदमी थे काम के भाग 1

10 अगस्त 2022
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लोग मुझे कवि कहते हैं, और गलती करते हैं; मैं अपने को कवि समझता था और गलती करता था। मुझे अपनी गलती मालूम हुई मियाँ राहत से मिलकर, और लोगों को उनकी गलती बतलाने के लिए मैंने मियाँ राहत को अपने यहाँ रख छो

भाग 4

10 अगस्त 2022
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मैंने संजीवन पांडे को डांटा - 'तुमको शर्म नहीं आती, जो अपने पिता-तुल्‍य पूज्य आचार्य को खबीस बूढ़ा कह रहे हो! अच्‍छा, मैं आठवां अनुच्‍छेद पढ़ता हूं - 'मैं चूड़ामणि मिश्र अपने भतीजे जगत्‍पति मिश्र राज-

भाग 3

10 अगस्त 2022
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ज्ञानेन्‍द्रनाथ पाठक की ओर सब लोगों की निगाहें उठ गईं और सहसा ज्ञानेन्‍द्रनाथ पाठक उठ खड़े हुए, 'यह बूढ़ा हमेशा का बदमिजाज और बदजबान रहा है, मरने के पहले पागल भी हो गया था!' और उन्‍होंने अपनी पत्‍नी स

भाग 2

10 अगस्त 2022
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अब मुझे आचार्य चूड़ामणि मिश्र की वसीयत में दिलचस्‍पी आने लगी थी, लेकिन आचार्य की आज्ञा मुझे शिरोधार्य करनी थी, इसलिए वसीयत को तहकर मैंने अपनी जेब के हवाले किया। आचार्य प्रवर का भौतिक शरीर अगले चौबीस घ

वसीयत भाग 1

10 अगस्त 2022
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जिस समय मैंने कमरे में प्रवेश किया, आचार्य चूड़ामणि मिश्र आंखें बंद किए हुए लेटे थे और उनके मुख पर एक तरह की ऐंठन थी, जो मेरे लिए नितांत परिचित-सी थी, क्‍योंकि क्रोध और पीड़ा के मिश्रण से वैसी ऐंठन उन

भाग 2

10 अगस्त 2022
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"क्या कहीं से कुछ फरमाइश तो नहीं हुई है... ?" मैंने भेदभरी दृष्टि डालते हुए पूछा। "नहीं, फरमाइश नहीं हुई है, इसका मैं तुम्हें यकीन दिलाता हूँ।" सकपकाते हुए चौधरी साहब ने कहा। मैं ताड़ गया कि दाल में

इंस्टालमेंट भाग 1

10 अगस्त 2022
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चाय का प्याला मैंने होंठों से लगाया ही था कि मुझे मोटर का हार्न सुनाई पड़ा। बरामदे में निकल कर मैंने देखा, चौधरी विश्वम्भरसहाय अपनी नई शेवरले सिक्स पर बैठे हुए बड़ी निर्दयता से एलेक्ट्रिक हार्न बजा रह

भाग 9

10 अगस्त 2022
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रामगोपाल को एक दिन नौकरी मिली, दूसरे दिन उसकी नौकरी छूट गई। कल एक हीरोइन मिली जिसके साथ में रहकर उसने लखपती होने के सपने बनाए थे, आज वह हीरोइन हाथ से निकल गई। उसने जेब से अपना पर्स निकाला - अब उसमें क

भाग 8

10 अगस्त 2022
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उस दिन मिस्टर वर्मा ने पंजाब के एक बहुत बड़े व्यापारी को फाँसा था और उसे वे ताजमहल होटल में डिनर खिलाने को ले गए थे। रामगोपाल को एक स्त्री के साथ ताजमहल होटल में बैठा देखकर स्वाभाविक रूप से मिस्टर वर्

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