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भाग 3

10 अगस्त 2022

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ज्ञानेन्‍द्रनाथ पाठक की ओर सब लोगों की निगाहें उठ गईं और सहसा ज्ञानेन्‍द्रनाथ पाठक उठ खड़े हुए, 'यह बूढ़ा हमेशा का बदमिजाज और बदजबान रहा है, मरने के पहले पागल भी हो गया था!' और उन्‍होंने अपनी पत्‍नी सरस्‍वती को आज्ञा दी, 'चलो, इस घर में मेरा दम घुट रहा है... एकदम चलो!'

सरस्‍वती भी उठ खड़ी हुई, लेकिन सावित्री और सौदामिनी ने सरस्‍वती का हाथ पकड़ लिया, 'पहले पूरी बात तो सुन लो।'

दूसरी ओर पुरुषों ने ज्ञानेन्‍द्रनाथ पाठक का हाथ पकड़कर बैठाया। नीलमणि ने मुझसे कहा, 'हां जोशी जी, पांचवां अनुच्‍छेद पूरा कीजिए।'

मैंने पांचवां अनुच्‍छेद पूरा किया - 'और अगर ज्ञानेन्‍द्रनाथ पाठक पर इन्‍क्‍वायरी बैठ गई, तो बहुत संभव है, इसकी नौकरी जाती रहे, इसे शायद सजा भी हो जाए। इस सब में इसके पाप की कमाई भी नष्‍ट हो सकती है। इसलिए मैं सरस्‍वती के लिए एक लाख रुपया छोड़ता हूं।'

कमरे में सन्‍नाटा छा गया। ज्ञानेन्‍द्रनाथ पाठक चुप बैठे छत की ओर देख रहे थे और सरस्‍वती सुबक रही थी। जसोदा देवी ने सरस्‍वती के सिर पर हाथ र‍खते हुए कहा, 'कोई बात नहीं, इनकी तो आदत ही ऐसी थी।

मैंने अब वसीयत का छठा अनुच्‍छेद पढ़ा - 'मैं चूड़ामणि मिश्र अपनी दूसरी लड़की सावित्री से हमेशा संतुष्‍ट रहा हूं। अत्‍यंत सुशील और विनम्र रही है यह। भगवान की भी इस पर कृपा है। इसके पति जयनारायण तिवारी का ऊंचा कारबार है, आटे की मिल, तेल की मिल, और अब वह शक्‍कर की मिल भी खोल रहा है। सावित्री और जयनारायण को मेरे शत-शत आशीर्वाद।' और मैं चुप हो गया।

तभी मुझे जयनारायण तिवारी की आवाज सुनाई दी, 'वसीयत के अनुसार हमें कुछ मिलेगा भी या नहीं?'

'यह तो उन्‍होंने नहीं लिखा है। छठा अनुच्‍छेद समाप्‍त हो गया, केवल आशीर्वाद ही दिया है उन्‍होंने।'

और अब सावित्री ने रो-रोकर कहना आरंभ किया, 'पिताजी हमेशा हम लोगों से जलते रहे, हमारी संपन्‍नता का बखान करते रहे। उन्‍हें क्‍या पता कि इस साल हमें दो लाख रुपए का घाटा हुआ है।'

जयनारायण तिवारी ने सावित्री को डांटा, 'क्‍यों घर का कच्‍चा चिट्ठा खोल रही हो? घाटा हुआ है तो हमें, कोई हरामजादा इस घाटे को पूरा कर देगा क्‍या?'

कर्नल संजीवन पांडे ने कड़े स्‍वर में कहा, 'तिवारी जी, गाली-वाली देना हो, तो अपने मजदूरों और मातहतों को देना! यहां दोगे, तो मुंह तोड़ दिया जाएगा!'

मैंने सब लोगों से हाथ जोड़कर विनयपूर्वक कहा, 'पहले वसीयत समाप्‍त हो जाए, तब आपस में लड़िए-झगड़िए।'

काफी चांव-चांव के बाद सब लोग शांत हुए। मैंने जब सातवां अनुच्‍छेद पढ़ा - 'मैं चूड़ामणि मिश्र अपनी छोटी लड़की सौदामिनी का मुंह नहीं देखना चाहता। यह मेरे नाम को कलंकित कर रही है। बाल कटे हुए, अंग्रेजी में बात करती है। मुझे बताया गया है कि यह कभी-कभी सिगरेट और शराब भी पी लेती है, यद्यपि मुझे इस पर विश्‍वास नहीं होता...'

मुझे पढ़ते-पढ़ते रुक जाना पड़ा, सौदामिनी चीख रही थी, 'यह सब छोटे जीजाजी की हरकत है! वह हमेशा पिताजी के कान भरते रहे, तभी पिताजी ने मुझे कभी अपने यहां नहीं बुलाया।'

उसी समय मुझे सावित्री की चीख सुनाई दी, 'अरे उन्‍हें बचाओ! वह संजीवन उनकी जान ले लेगा!'

अब मैंने पुरुषों की गैलरी की ओर देखा, और मेरी आंखों को विश्‍वास नहीं हुआ। कर्नल संजीवन पांडे जयनारायण तिवारी का गला पकड़े थे और कह रहे थे, 'क्‍यों बे, सूअर के बच्‍चे! हमारे यहां आकर स्‍कॉच व्हिस्की मांगता है और पीछे चुगली करता है!' और जयनारायण तिवारी 'गों-गों' की आवाज कर रहे थे। ज्ञानेन्‍द्रनाथ पाठक और नीलमणि ने बड़ी मुश्किल से जयनारायण तिवारी को संजीवन पांडे के पंजे से छुड़ाया।

मैंने कहा, 'आप लोगों को इस पवित्र अवसर पर इस तरह लड़ना-झगड़ना शोभा नहीं देता! इससे आचार्य की दिवंगत आत्‍मा को क्‍लेश होगा। पहले मैं पूरी वसीयत पढ़ लूँ, तब आप आपस में एक-दूसरे से निबटिएगा। अभी सातवां अनुच्छेद समाप्‍त नहीं हुआ है।'

सब लोग शांत हो गए। मैंने पढ़ना आरंभ किया - 'लेकिन इस समय मुझे लगता है, मुझसे सौदामिनी के प्रति अन्‍याय हो गया है। एक पतिव्रता स्‍त्री को जो करना चाहिए, वही सब वह कर रही है। और मैं संजीवन पांडे को भी दोष नहीं दे सकता। फौज में बड़ा अफसर है। चीन की फौज से लड़ा, पाकिस्‍तान की फौज से लड़ा और सौभाग्‍य से जीवित बचा हुआ है। लेकिन मृत्‍यु की छाया उसके सिर पर मंडराती ही रहती है। और इसलिए वह खुलकर मांस-मदिरा का सेवन करता है। खुले हाथ खर्च करता है। पास में पैसा नहीं। अगर वह मर जाएगा, तो सौदामिनी और उसके बच्‍चों को भीख मांगने की नौबत आएगी। इसलिए मैं डेढ़ लाख रुपयों की व्‍यवस्‍था करता हूं, जिसका ब्‍याज आठ प्रतिशत की दर से बारह हजार रुपए प्रतिवर्ष, यानी एक हजार रुपया महीना होगा।'

एकाएक सौदामिनी किलक उठी, 'धन्‍य हो पिताजी! तुम निश्‍चय स्‍वर्ग में जाओगे!'

और मैंने देखा कि संजीवन पांडे ने उठकर जयनारायण तिवारी को गले से लगाया, 'भाई साहब, मुझे क्षमा कीजिएगा! आपकी ही वज‍ह से उस खबीस बूढ़े से डेढ़ लाख रुपए की रकम हाथ लगी!'

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