प्रत्येक व्यक्ति अपनी जिंदगी में बहुत सारे लोगों से मिलता है जुलता है और उनसे रिश्तों की डोर में बंधा रहता है। वह रिश्ता परिवार के सदस्यों का जैसे भाई-बहन चाचा ताऊ मम्मी पापा मौसी या फिर दोस्तों या फिर अपने जानने वालों का हो सकता है। यह रिश्ते आदमी को मानसिक रूप से मजबूत बनाते हैं और एक सहारा और सुरक्षा प्रदान करते हैं। लेकिन भौतिकतावादी इस युग में हमारे रिश्ते मतलब और पैसे पर केंद्रित हो गए हैं। यही कारण है की रिश्ते बिखर रहे हैं परिवार टूट रहे हैं हम अकेले हो रहे हैं। हर आदमी दुख और निराशा से ग्रस्त है। यदि हम चाहते हैं रिश्तो में प्रेम और अपनापन रहे तो हमें वह प्रेम और अपनापन दूसरों को भी देना पड़ेगा। जो हम देंगे वही हमें वापस मिलेगा। अतः जरूरी है की जब भी हम कोई रिश्ता बनाएं तो हमें उसे पर विश्वास होना चाहिए। विश्वास प्रेम अपनापन एडजस्टमेंट यह कुछ ऐसे शब्द हैं जो हमारे रिश्ते की डोर को मजबूत बनाते हैं। एक तरफ से रिश्ता ज्यादा दिन नहीं चलता। अतः यही कहना चाहूंगी कि हम सकारात्मक दृष्टिकोण से देखें और सकारात्मक सोच को लेकर चलें तो हम अपने रिश्तों को बिगड़ने टूटने से बचा सकते हैं।
यह किताब मेरे रोज के लेखों का संग्रह है। यह मेरे मन की आवाज है। यह मेरी लिखने की प्रेरणा है। यह मुझे मुझ को समझने में मदद करती है। लिखना मेरा पैशन है। यह मेरी खुद की पहचान है।