आज 14 सितंबर को हिंदी दिवस हम हर वर्ष मनाते हैं। हिंदी हमारी मातृभाषा है यह भाषा है जो मां के समान हमारा पालन पोषण करती है। इसे सुनकर बोलकर हम बड़े होते हैं हम दूसरों के साथ बातचीत करते हैं। यह हमारी भावों की अभिव्यक्ति की भाषा है। लेकिन प्रश्न यह है की क्या हम अपनी मातृभाषा को वही सम्मान देते हैं जो अंग्रेजी को देते हैं? उत्तर अगर हम स्वयं से पूछे अपनी आत्मा से पूछे तभी आएगा? स्वतंत्रता के इतने दिनों बाद भी हम अंग्रेजी मोह से पीछा नहीं छूटा पाए हैं। अंग्रेजों ने भारत छोड़ दिया लेकिन अंग्रेजी हम नहीं छोड़ पाए। एक दिन हिंदी दिवस मना कर हम हिंदी को क्या दे पाएंगे? हम बोलते हिंदी में है, हम सोचते हैं हिंदी में ,अभिव्यक्ति हिंदी में करते हैं ,फिर हिंदी को अपनाने से कैसा डर? हम हिंदी को मन से वह स्थान नहीं दे पा रहे जो उसे देना चाहिए। यही कारण है कि हमारी सफलता उन्नति मैं हमारी भाषा हमारी सोच अलग है। कभी मैथिलीशरण गुप्त ने कहा था निज भाषा उन्नति है सब उन्नति का मूल। हिंदी वह भाषा है जो आज भी अपने सम्मान और अस्तित्व के लिए अपनों से लड़ रही है। सभी को हिंदी दिवस की शुभकामनाएं और साथ में यह आशा करती हूं कि हम अपने मन मे हृदय में हिंदी को धारण कर हिंदी को मातृभाषा का स्थान देने के साथ-साथ स्वयं अपने को गौरवान्वित करेंगे।
यह किताब मेरे रोज के लेखों का संग्रह है। यह मेरे मन की आवाज है। यह मेरी लिखने की प्रेरणा है। यह मुझे मुझ को समझने में मदद करती है। लिखना मेरा पैशन है। यह मेरी खुद की पहचान है।