सूर्य का किसी राशि विशेष पर भ्रमण करना संक्रांति कहलाता है. सूर्य हर माह में राशि का परिवर्तन करता है, इसलिए कुल मिलाकर वर्ष में बारह संक्रांतियां होती हैं. लेकिन इमें से दो संक्रांतियां सर्वाधिक महत्वपूर्ण होती हैं- मकर संक्रांति और कर्क संक्रांति. सूर्य जब मकर राशि में जाता है तब मकर संक्रांति होती है. मकर संक्रांति से अग्नि तत्व की शुरुआत होती है और कर्क संक्रांति से जल तत्व की. मकर संक्रांति पर सूर्य उत्तरायण होता है. इसलिए इस समय किए गए जाप और दान का फल अनंत होता है. मकर संक्रांत. 15 जनवरी को थी। इस दिन लोग गंगा नदी में स्नान करते हैं और दान पुण्य करते हैं खिचड़ी भोज बनाया जाता है। जगह-जगह मंदिरों,घर में खिचड़ी बनती है और लोग दान भी करते हैं।शास्त्रों में मकर संक्रांति पर स्नान, ध्यान और दान का विशेष महत्व बताया गया है. मकर संक्रांति पर खरमास का भी समापन हो जाता है और शादी-विवाह जैसे शुभ और मांगलिक कार्यों पर लगी रोक हट जाती है. ऐसी मान्यता है कि इस दिन किया गया दान सौ गुना होकर वापस लौटता है.।सूर्य का मकर राशि में प्रवेश यानी मकर संक्रांति दान, पुण्य की पावन तिथि है. इसे देवताओं का दिन भी कहा जाता है. इसी दिन से सूर्य उत्तरायण हो जाते हैं. शास्त्रों में उत्तरायण के समय को देवताओं का दिन और दक्षिणायन को देवताओं की रात कहा गया है. मकर संक्रांति एक तरह से देवताओं की सुबह होती है. इस दिन स्नान, दान, जप, तप, श्राद्ध और अनुष्ठान का बहुत महत्व है. पौराणिक कथा कहती है कि ये तिथि उत्तरायण की तिथि होती है. औमहाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति का ही चयन किया था. जब वे बाणों की शैया पर लेटे हुए थे, तब वे उत्तरायण के दिन की प्रतीक्षा कर रहे थे. उन्होंने मकर संक्रांति की तिथि पर ही अपना जीवन त्यागा था. ऐसा कहते हैं कि उत्तरायण में देह त्यागने वाली आत्माएं कुछ पल के लिए देवलोक चली जाती हैं या फिर उन्हें पुनर्जन्म के चक्र से छुटकारा मिल जाता है.देशभर में मकर संक्रांति के त्योहार को बड़े ही उत्साह और उमंग के साथ मनाया जा रहा है। दरअसल मकर संक्रांति पर भगवान सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उनके घर जाते हैं। शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं, अत: इस दिन को मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है। मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भागीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा उनसे मिली थीं। महाभारत काल के महान योद्धा भीष्म पितामह ने भी अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति का ही चयन किया था। उत्तर भारत में इसे खिचड़ी आदि खाकर मनाया जाता है जबकि गुजरात में यह पर्व पतंगोत्सव के रूप में मनाया जाता है। मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी खाई जाती है। विशेष रूप से गुड़ और घी के साथ खिचड़ी खाने का महत्व है। पंजाब में मकर संक्रांति को माघी संक्रांति के नाम से मनाया जाता है। तमिलनाडु में पोंगल, पश्चिम बंगाल में गंगासागर में बहुत बड़े मेले का आयोजन होता है। मान्यता है कि इस दिन ही यशोदा जी ने श्रीकृष्ण की प्राप्ति के लिए व्रत रखा था। साथ ही इसी दिन मां गंगा भगीरथ के पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होते हुए गंगा सागर में जाकर मिली थीं। केरल में मकर विलक्कू नाम से मनाया जाता है। गुजरात में उत्तराणय पर्व और उत्तर भारत में खिचड़ी के रूप में इस पर्व को मनाया जाता है। मकर संक्रांति के साथ दक्षिण भारत में चार दिनों तक चलने वाले पोंगल पर्व की शुरूआत हो चुकी है। पोंगल पर्व के पहले दिन इंद्रदेव की पूजा होगी। इस पूजा को भोगी पोंगल के नाम से जाना जात है। दूसरे दिन सूर्य पोंगल, तीसरे दिन मट्टू पोंगल और चौथे दिन कन्या पोंगल मनाया जाता है । आप सभी को मकर संक्रांति की शुभकामनाएं ।
यह किताब मेरे रोज के लेखों का संग्रह है। यह मेरे मन की आवाज है। यह मेरी लिखने की प्रेरणा है। यह मुझे मुझ को समझने में मदद करती है। लिखना मेरा पैशन है। यह मेरी खुद की पहचान है।