नई दिल्ली: बिहार के सीतामढ़ी निवासी आईएएस केशवेंद्र कुमार ने केरल में कमाल कर दिया। वार पर वार कर मंत्रियों और बिल्डरों के गठजोड़ को तहस-नहस कर डाला। केशवेंद्र इस समय केरल के वायनाड जिले के कलेक्टर हैं, यह जिला पहाड़ पर बसा है। दरअसल सदाबहार वनों से लैस केरल के वायनाड की खूबसूरत वादियों पर जब बिल्डर्स की नजर गड़ी तो पहाड़ मिटने लगे। होटल-रिसॉर्ट के निर्माण से हरे-भरे पेड़ों की कटाई होने लगी तो पहाड़ों की छंटाई। कंक्रीट की बड़ी-बड़ी अट्टालिकाएं सीना ताने खड़ी होकर पहाड़ों को मुंह चिढ़ाने लगीं तो पर्यावरणीय स्थिरता को चुनौती मिलने से भूस्खलन, भूकंप का खतरा छा गया। कवि हृदय केशवेंद्र ने पहाड़ के इस दर्द शिद्दत से न केवल महसूस किया, बल्कि मंत्रियों के दबाव को दरकिनार कर सख्त फैसला लेकर जून में पहाड़ों को मिटने से बचाने की पहल की। खास बात है रही कि भ्रष्ट मंत्रियों व बिल्डर गठजोड़ के दबाव में पिछले साल यूडीएफ सरकार ने डीएम के फैसले को पलट दिया तो हाई कोर्ट ने फटकार लगाकर फैसले को सही बताकर रोक निरस्त कर दी।
पूरे देश में लागू हो वयनाड मॉ़ल
आईएएस केशवेंद्र की पहाड़ों को बचाने के लिए अवैध निर्माण पर सख्ती से रोक लगाने के साथ हर निर्माण की ऊंचाई-लंबाई तय करने की पहल को विशेषज्ञों ने वयना़ मॉडल की संज्ञा दी है। इसे उत्तराखंड समेत हर राज्य के पहाड़ी जिलों में लागू करने की मांग पर्यावरणीय विशेषज्ञ उठा रहे। खास बात है कि 2008 बैच के आईएएस केशवेंद्र सिविल सर्विसेज में आने से पहले कविता एं लिखने के शौकीन रहे। उनके ब्लाग http://keshvendra.blogspot.in पर रचनाधर्मिता देखी जा सकती है।
वयनाड देश का पहला जिला, जहां ऊंचे भवनों पर रोक
पहाड़ पर बसा वयनाड पहला जिला है, जहां के जिला प्रशासन ने भवनों के आकार की सीमा तय कर रखी है। पहाड़ और पर्यावरणीय नुकसान को रोकने के लिए कलेक्टर केशवेंद्र ने कुछ यूं आदेश प्रभावी ढंग से लागू कर रखा है। मसलन अधिकतम 15 मीटर या पांच मंजिला तक भवनों का निर्माण हो सकता है। वहीं संवेदनशील इलाकों में सिर्फ दस मीटर ऊंचे या तीन मंजिला तक मकान बनाने की ही अनुमति है।
मंत्री-बिल्डर के दबाव में शासन ने पलटा आदेश और फिर...
जब वयनाड में होटल-रिसॉर्ट निर्माण को लेकर डीएम ने सख्ती की तो बिल्डरों ने मंत्रियों के जरिए सरकार पर दबाव डाला। जिस पर केरल सरकार ने आपदा प्रबंधन अथारिटी मुखिया के तौर पर लिए गए डीएम के फैसले को निरस्त कर दिया। इस पर एक गैरसरकारी संगठन ने हाईकोर्ट में याचिका ठोंक दी। जिस पर हाईकोर्ट ने पर्यावरण हित में राज्य सरकार की रोक को हटा दी।
पर्यावरण हित में डीएम के फैसले को नहीं बदल सकता राज्य
दरअसल हाई कोर्ट में दाखिल याचिका में वयनाड प्रकृति संरक्षण समिति अध्यक्ष एन बदुषा ने कहा कि आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 के तहत कोई भी डीएम स्थानीय और प्राकृतिक सुविधाओं के आधार पर फैसला कर सकता है। पहाड़ी इलाकों में तो वैसे भी भूकंप, भूस्खलन आदि रोकने को लेकर हमेशा अलर्ट होना पड़ता है। एक्ट में उल् लेख है कि स्थानीय लिहाज से डिजास्टर मैनेजमेंट को लेकर किए गए डीएम की अध्यक्षता में आपदा प्रबंधन अभिकरण के उचित फैसले को राज्य सरकार भी पलट नहीं सकती। इस आधार पर हाईकोर्ट ने राज्य सरकार कने नियम निरस्त करने के फैसले पर रोक लगा दी।
केदारनाथ तबाही देख डीएम ने लिया फैसला
वयनाड के डीएम केशवेंद्र कुमार कहते हैं कि 2013 में केदारनाथ में भारी तबाही हुई तो 2014 मे पुणे में भूस्खलन से लोग मरे। यही नहीं 2015 में नेपाल में भूकंप से भारी जान-माल का नुकसान हुआ। पहाड़ों पर आपदाओं के कारणों की तलाश से पता चलता है कि यह सब प्राकृतिक छेड़छाड़ का नतीजा हमें भुगतना पड़ा। होटल, रिसॉर्ट के नाम पर हो रहे अंधाधुंध अवैध निर्माण से वयनाड की पहाड़ियों को खतरा पैदा हो रहा था, जिससे भवनों को लेकर सख्त नियम-कायदे लागू कराने का फैसला किया।