नई दिल्ली: कुछ दिन पहले फाइनेंशियल एक्सप्रेस में एचडीएफसी के पूर्व चेयरमैन दीपक पारिख का बयान छपा था कि नोटबंदी से अर्थव्यवस्था को भारी झटका लगेगा। आज इकोनोमिक टाइम्स में आई सी आई सी आई के पूर्व चेयरमैन के वी कामथ का बड़ा सा इंटरव्यू छपा है कि नोटबंदी के कारण अगले छह महीने में ब्याज़ दर में एक प्रतिशत की कमी आ जाएगी। बचत खातों पर बैंक ब्याज़ दरों में कटौती करेंगे। मतलब जिन्हें घर लेने के लिए लोन लेना होगा उन्हें एक प्रतिशत कम पर ब्याज़ मिलेगा और जिन्होंने बचत पर भरोसा किया है उन्हें कम ब्याज़ से काम चलाना होगा। इन बैंक गुरुओं के बयान को ग़ौर से पढ़िये। एक समय में ऐसी बात करते हैं जैसे अर्थ सत्य यही है। ब्याज़ का उतार-चढ़ाव नोटबंदी से इतना ही जुड़ा हुआ है तब तो इसे रूटीन तौर पर किया जा सकता है। कामथ जी इसे सकारात्मक असर बता रहे हैं। यही गारंटी दे देते कि नोटबंदी के बाद अब लोन के लिए ब्याज़ हमेशा के लिए सस्ता होने वाला है। शार्ट टर्म और लांग टर्म की झांसेबाज़ी कम होनी चाहिए।
बहरहाल कामथ साहब दावा करते हैं कि नोटबंदी के कई अच्छे असर होने वाले हैं। आलोचकों के साथ साथ इन बातों को भी ध्यान से सुना जाना चाहिए। इनका मानना है कि सरकार को ढ़ाई लाख करोड़ का लाभ होगा। अभी आपने कई जगहों पर पढ़ा होगा कि नोटबंदी फेल हो रही है क्योंकि जितना पैसा चलन में था,उतना वापस आ गया इसलिए कुछ भी हाथ नहीं लगा। माना जा रहा था कि 15 लाख करोड़ में से जितना बैंकों में नहीं आएगा वही सरकार की बचत होगी। ज्यादातर लोगों ने कहा कि कुछ नहीं बचेगा क्योंकि ज्यादातर पैसा वापस आ गया है। कामथ साहब की राय अलग है। वे मानते हैं कि सरकार को ढाई लाख करोड़ मिलने वाले हैं। यह बहुत बड़ी राशि है। इससे प्रधानमंत्री मोदी कुछ भी कर सकते हैं।
दूसरी तरफ ईटी ने भीतरी पन्नों पर छापा है कि नोटबंदी के कारण 300 कंपनियों की कमाई का अनुमान घटकर आधा रह गया है। जनवरी के बाद ये अनुमान और कम होगा। ब्रोकर मानते हैं कि आईटी, फार्मा और बैंक को छोड़ बाकी तमाम सेक्टरों पर बुरा असर पड़ने वाला है। ईटी अखबार के पहले पन्ने पर एक और ख़बर है कि नौकरियों का बाज़ार मंदा हुआ है मगर अभी तबाही नहीं आई है। मंदा पड़ने और तबाही आने के बीच कितने लोग बेकार हो जाते हैं या नौकरी नहीं मिलती है,ये कौन बतायेगा। कोई जानता भी नहीं है। बयानों और दावों में इतना अंतर है कि लग रहा है कि लगातार चीज़ों को मैनेज किया जा रहा है। बहरहाल आलोचना और तारीफ दोनों याद रखियेगा। आगे चलकर देखेंगे कि कौन सी बात सही होती है।
बिजनेस स्टैंडर्ड की पहली ख़बर है कि अमरीका में ट्रंप विजय और भारत में विमुद्रीकरण के कारण विदेशी निवेशकों ने पिछले एक महीने में 33,886 करोड़ रुपया भारतीय बाज़ारों से निकाल लिया है। अगर अमरीका में ब्याज़ दरें बढ़ती हैं तो मुनाफे के चक्कर में ये लोग अपना पैसा वहां ले जायेंगे। हम समझ रहे थे कि भारत में कोई धमाका हो रहा है इसलिए ज़्यादा कमाई की लालच में ये सारे यहां पैसा लगा रहे हैं। मगर फाइनांस कैपिटल की यही प्रवृत्ति होती है। सूदखोर पूंजी टिकाऊ नहीं हो सकती है। इससे पहले 2013 में इतना पैसा निकला था जब विदेशी निवेशकों ने 51,000 करोड़ निकाल लिया था। एक्सप्रेस में ख़बर है कि नवंबर में म्यूचुअल फंड में 36,000 करोड़ रुपये आए हैं। म्यूचुअल फंड वालों की चांदी हो गई है। एक और ख़बर है कि अमरीका में ब्याज़ दरें बढ़ने के कारण सोने का भाव दस महीने में सबसे अधिक गिर गया है। फिर अगले पन्ने पर यह भी ख़बर है कि सोने का दाम गिरा है तो गहनों की ख़रीदारी बढ़ गई है। अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में कच्चे तेल के दाम बढ़ने लगे हैं। इसका क्या असर होगा वो अलग से विश्लेषण होगा। कुलमिलाकर यही लगता है कि इस बाज़ारू दुनिया में अगर एक चीज़ स्थायी है तो वो है इसका अस्थायी चरित्र।
बिजनेस अखबारों को पढ़ना चाहिए। कौन सा बाज़ार गिर रहा है और कौन सा चढ़ रहा है यह सब इतना मौसमी होता है कि सामान्य पाठक को ठीक से समझने में वक्त लगेगा। एक को झटका लगता है तो दूसरे को फायदा हो जाता है। विमुद्रीकरण को लेकर जो आशंका है और जो संभावना है दोनों ही अतिरेक में नज़र आ रहे हैं। फिर भी सारी बातों को पढ़िये। देखिये क्या होता है। इसका तत्काल असर तो दिख रहा है कि ज्यादातर आर्थिक गतिविधियां थम गईं हैं। अब आगे भी देखिये कि रोज़गार कितना बढ़ता है, सरकार का राजस्व कितना बढ़ता है, कितने लोग टैक्स के दायरे में आते हैं, किन रैलियों में बिना दो सौ का नोट दिये लोग लाए जाते हैं। ये सब देखिये. बदलता है तो सबके लिए बदलेगा। नहीं बदलेगा तो वही होगा हट हट मोदी या हर हर मोदी। इसके अलावा तो लगता है कि किसी के पास कोई काम नहीं बचा है।