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भग्नावशेष

3 मार्च 2022

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न मैं कवि था न लेखक, परन्तु मुझे कविताओं से प्रेम अवश्य था। क्यों था यह नहीं जानता, परन्तु प्रेम था, और खूब था। मैं प्रायः सभी कवियों की कविताओं को पढ़ा करता था, और जो मुझे अधिक रुचतीं, उनकी कटिंग्स भी अपने पास रख लेता था।
एक बार मैं ट्रेन से सफ़र कर रहा था। बीच में मुझे एक जगह गाड़ी बदलनी पड़ी। वह जंक्शन तो बड़ा था, परंतु स्टेशन पर खाने-पीने की सामग्री ठीक न मिलती थी। इसी लिए मुझे शहर जाना पड़ा। बाजार में पहुँचते ही मैंने देखा कि जगह-जगह पर बड़े-बड़े पोस्टर्स चिपके हुए थे जिनमें एक वृहत कवि-सम्मेलन की सूचना थी, और कुछ खास-खास कवियों के नाम भी दिए हुए थे। मेरे लिए तो कवि-सम्मेलन का ही आकर्षण पर्याप्त था, परन्तु कवियों की नामावली को देखकर मेरी उत्कंठा और भी अधिक बढ़ गई।
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दूसरी ट्रेन से जाने का निश्चय कर जब मैं सम्मेलन के स्थान पर पहुँचा तो उस समय कविता पाठ प्रारम्भ हो चुका था, और उर्दू के एक शायर अपनी जोशीली कविता मजलिस के सामने पेश कर रहे थे। 'दाद' भी इतने जोरों से दी जा रही थी कि कविता का सुनना ही कठिन हो गया था। खैर मैं भी एक तरफ़ चुपचाप बैठ गया, परन्तु चेष्टा करने पर भी आँखें स्थिर न रहती थीं, वरन वे किसी की खोज में बार-बार विह्वल सी हो उठती थीं। कई कवियों ने अपनी-अपनी सुन्दर रचनाएँ सुनाई। सब के बाद एक श्रीमती जी भी धीरे-धीरे मंच की ओर अग्रसर होती देख पड़ीं। उनकी चाल-ढाल तथा रूप-रेखा से ही असीम लज्जा, एवं संकोच का यथेष्ट परिचय मिल रहा था। किसी प्रकार उन्होंने भी अपनी कविता पढ़ना शुरू किया। अक्षर-अक्षर में इतनी वेदना भरी थी कि श्रोतागण मंत्रमुग्ध से होकर उस कविता को सुन रहे थे। वाह-वाह और खूब-खूब की तो बात ही क्या, लोगों ने जैसे साँस लेना तक बन्द कर दिया था। और मेरा तो रोम-रोम उस कविता का स्वागत करने के लिए उत्सुक हो रहा था।
अब बिना उनसे एक बार मिले, वहाँ से चले जाना मेरे लिये असम्भव सा हो गया। अतः इसी निश्चय के अनुसार मैंने अपना जाना फिर कुछ समय के लिए टाल दिया!
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उनका पता लगा कर, दूसरे ही दिन, लगभग आठ बजे सबेरे मैं उनके निवास स्थान पर जा पहुँचा, और अपना ‘विजिटिंग कार्ड भिजवा दिया। कार्ड पाते ही एक अधेड़ सज्जन बाहर आए, और मैंने नम्रता से पूछा कि "क्या श्रीमती जी घर पर हैं?"
"जी हाँ। आइए बैठिए।"
आदर प्रदर्शित करते हुए मैंने कहा- “कल के सम्मेलन में उनकी कविता मुझे बहुत पसन्द आई, इसीलिए मैं उनसे मिलने आया हूँ।”
वे मुझे अन्दर लिवा ले गये, एक कुर्सी पर बैठालते हुए बोले- “वह मेरी लड़की है, मैं अभी उसे बुलवाए देता हूँ।” उन्होंने तुरन्त नौकर से भीतर सूचना भेजी और उसके कुछ ही क्षण बाद वे बाहर आती हुई दिखाई पड़ीं।
परिचय के पश्चात् बड़ी देर तक अनेक साहित्यिक विषयों पर उनसे बड़ी ही रुचिकर बातें होती रहीं। चलने का प्रस्ताव करते ही, उन्होंने संध्या समय भोजन के लिए निमंत्रण दे डाला। इसे अस्वीकृत करना भी मेरी शक्ति के बाहर था। अतः दिन भर वहीं उनके साथ रहने का सुअवसर प्राप्त हुआ। और इन थोड़े से घंटों में ही उनकी आसाधारण प्रतिभा देखकर मैं चकित सा हो गया। अब तक का मेरा 'प्रेम' प्रणय-पूर्ण आकर्षण सहसा भक्तियुक्त आदर में परिणित हो गया। भोजन के उपरान्त मुझे अपनी यात्रा प्रारंभ करनी ही पड़ी । परन्तु मार्ग भर मैं कुछ ऐसा अनुभव करता रहा कि मानो कहीं मेरी कोई वस्तु छुट अवश्य गई है।
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घर लौट कर मैंने उन्हें दो-एक पत्र लिखे, परन्तु उत्तर एक का भी न मिला। कितनी निराशा, एवं कितने मानसिक क्लेश का मैंने अनुभव किया यह लिखना मेरे लिए असम्भव है। परंतु विवश था चुप ही रहना पड़ा। किन्तु उनकी कविताओं की खोज निरन्तर ही किया करता था।
इधर कई महीनों से उनकी कविता भी देखने को नहीं मिली। बहुत कुछ समझाया, परन्तु चित्त में चिन्ता हो ही उठी। तरह-तरह की आशंकाएँ हृदय को मथने सी लगीं, और अन्त में एक दिन उनसे मिलने की ठान कर, घर से चल ही तो पड़ा । किन्तु चलने के साथ ही बाई आँख फड़की, और बिल्ली रास्ता काट गई। ये अपशकुन भी मुझे अपने निश्चय से विचलित न कर सके, और मैं अपनी यात्रा में बढ़ता ही गया । परन्तु वहाँ पहुँच कर वही हुआ जो होना था। वह वहाँ न मिलीं, मकान में ताला पड़ा था। पता लगाने पर ज्ञात हुआ कि कई महीने हुए उनके पिता का देहान्त हो गया, और उनके मामा आकर उन्हें अपने साथ लिवा ले गये। बहुत पता लगाने पर भी मैं उनके मामा के घर का पता न पा सका। इस प्रकार वे एक हवा के झोंके की तरह मेरे जीवन में आईं और चली भी गईं, मैं उनके विषय में कुछ भी न जान सका।
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दस वर्ष बाद-
एक दिन फिर मैं कहीं जा रहा था। बीच में एक बड़े जंग्शन पर गाड़ी बदलती थी। वहाँ पर दो लाइनों के लिये ट्रेन बदलती थी। मैं सेकेन्ड क्लास के कम्पार्टमेन्ट से उतरा, ठीक मेरे पास के ही एक थर्ड-क्लास के डिब्बे से एक स्त्री उतरी। उसका चेहरा सुन्दर, किन्तु मुरझाया हुआ था, आँखे बड़ी-बड़ी किन्तु दृष्टि बड़ी ही कातर थी। कपड़े बहुत साधारण और कुछ मैले से थे। गोद में एक साल भर का बच्चा था, आस-पास और भी दो-तीन बच्चे थे। मैंने ध्यान से देखा यह 'वे' ही थीं। मैं दौड़कर उनके पास गया। अचानक मुँह से निकल गया "आप यहाँ! इस वेश में!!"
उन्होंने मेरी तरफ़ देखा, उनके मुंह से एक हल्की सी चीख निकल गई, बोलीं- "हाय! आप हैं??"
मैंने कहा- "हाँ मैं ही हूँ, आप का अनन्य भक्त, आप का एकान्त पुजारी। किन्तु आप मुझे भूल कैसे गईं? आपकी कविताएँ ही तो मुझे जिलाती थीं। आपने अब कविता लिखना भी क्यों छोड़ दिया है?"
अब उनके संयम का बाँध टूट गया.. उनकी आखों से न जाने कितने बड़े-बड़े मोती बिखर गये.. उन्होंने रुंधे हुए कंठ से कहा, “लिखने पढ़ने के विषय में अब आप मुझसे कुछ न पूछें।”
इतने ही में एक तरफ़ से एक अधेड़ पुरुष आए। और आते ही शायद मेरा 'उनके' पास का खड़ा रहना उन सज्जन को न सुहाया, इसी लिए उन्हें बहुत बुरी तरह से झिड़क कर बोले- “यहाँ खड़ी-खड़ी गप्पें लड़ा रही हो कुछ हया भी है?”
वे बोलीं- "ये मेरे पिता जी के...." वह अपना वाक्य पूरा भी न कर पाई थीं कि वे महापुरुष कड़क उठे- “बस चुप रहो, मैं कुछ नहीं सुनना चाहता.. चलो सीधी।”
उन्होंने मेरी तरफ एक बड़ी ही बेधक दृष्टि से देखा, उस दृष्टि में न जाने कितनी करुणा, कितनी विवशता, और कितनी कातरता भरी थी। वे अपने पति के पीछे पीछे चली गईं।
इस प्रकार दस वर्ष के बाद वे फिर एक बार मेरे नैराश्यपूर्ण जीवन के अंधकार में चपला की तरह चमकी और अदृश्य हो गईं। वे मुझ से जबरन छीन ली गईं। मुझे उनके दर्शन भी दुर्लभ हो गये।
  

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रचनाएँ
बिखरे मोती - सुभद्रा कुमारी चौहान (कहानियों का संकलन)
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'बिखरे मोती' उनका पहला कहानी संग्रह है। इसमें भग्नावशेष, होली, पापीपेट, मंझलीरानी, परिवर्तन, दृष्टिकोण, कदम के फूल, किस्मत, मछुये की बेटी, एकादशी, आहुति, थाती, अमराई, अनुरोध, व ग्रामीणा कुल 15 कहानियां हैं! इन कहानियों की भाषा सरल बोलचाल की भाषा है! अधिकांश कहानियां नारी विमर्श पर केंद्रित हैं!
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भूमिका बिखरे मोती

3 मार्च 2022
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एक बार एक नये कहानी लेखक ने जिनकी एक-दो कहानियाँ प्रकाशित हो चुकी थीं, मुझसे बड़े इतमीनान के साथ कहा- “मैं पहले समझता था कि कहानी लिखना बड़ा कठिन है, परन्तु अब मुझे मालूम हुआ कि यह तो बड़ा सरल है। अब त

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भग्नावशेष

3 मार्च 2022
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होली

3 मार्च 2022
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(1) "कल होली है।" "होगी।" "क्या तुम न मनाओगी?" "नहीं।" ''नहीं?'' ''न ।'' '''क्यों? '' ''क्या बताऊं क्यों?'' ''आखिर कुछ सुनूं भी तो ।'' ''सुनकर क्या करोगे? '' ''जो करते बनेगा ।'' ''तुमसे कु

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पापी पेट

3 मार्च 2022
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(1) आज सभा में लाठी चार्ज हुआ। प्रायः पांच हजार निहत्थे और शान्त मनुष्यों पर पुलिस के पचास जवान लोहबन्द लाठियाँ लिये हुए टूट पड़े। लोग अपनी जान बचाकर भागे; पर भागते-भागते भी प्रायः पाँच सौ आदमियों को

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मंझली रानी

3 मार्च 2022
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(१) वे मैने कौन थे ? मैं क्या बताऊँ ? वैसे देखा जाय तो वे मेरे कोई भी न होते थे। होते भी तो कैसे ? मैं ब्राह्मण, वे क्षत्रिय; मैं स्त्री, वे पुरुष; फिर न तो रिश्तेदार हो सकते थे और न मित्र आह ! यह क्

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परिवर्तन

3 मार्च 2022
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(१) ठाकुर खेतसिंह, इस नाम को सुनते ही लोगों के मुँह पर घृणा और प्रतिहिंसा के भाव जागृत हो जाते थे । किन्तु उनके सामने किसी को उनके खिलाफ़ चूं करने की भी हिम्मत न पड़ती। प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष, किसी

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दृष्टिकोण

3 मार्च 2022
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(१) निर्मला विश्व प्रेम की उपासिका थी। संसार में सब के लिए उसके भाव समान थे। उसके हृदय में अपने पराये का भेद-भाव न था । स्वभाव से ही वह मिलनसार, सरल, हंसमुख और नेक थी । साधारण पढ़ी लिखी थी । अंगरेजी

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कदम्ब के फूल

3 मार्च 2022
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(१) “भौजी ! लो मैं लाया ।” “सच ले आए ! कहाँ मिले ?” । “अरे ! बड़ी मुश्किल से ला पाया, भौजी !” “तो मजदूरी ले लेना ।” “क्या दोगी ?” “तुम जो माँगो।” “पर मेरी मांगी हुई चीज़ मुझे दे भी सकोगी ?” “क

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क़िस्मत

3 मार्च 2022
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(१) "भौजी, तुम सदा सफेद धोती क्यों पहनती हो ?" "मैं क्या बताऊँ, मुन्नी”। “क्यों भौजी ! क्या तुम्हें अम्मा रंगीन धोती नहीं पहिनने देती?" "नहीं मुन्नी ! मेरी किस्मत ही नहीं पहनने देती, अम्मा भी क्या

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मछुए की बेटी

3 मार्च 2022
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चौधरी और चौधराइन के लाड़ प्यार ने तिन्नी को बड़ी ही स्वच्छन्द और उच्छृङ्खल बना दिया था। वह बड़ी निडर और कौतूहल-प्रिय थी। आधी, रात, पिछली पहर, जब तिन्नी की इच्छा होती वह नदी पर जाकर नाव खोलकर जल-विहार

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एकादशी

3 मार्च 2022
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(१) शहर भर में डाक्टर मिश्रा के मुक़ाबिले का कोई डाक्टर न था। उनकी प्रैकटिस खूब चढ़ी बढ़ी थी। यशस्वी हाथ के साथ ही साथ वे बड़े विनोद प्रिय, मिलनसार और उदार भी थे। उनकी प्रसन्न मुख और उनकी उत्साहजनक ब

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आहुति

3 मार्च 2022
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(1) जनाने अस्पताल के पर्दा-वार्ड में दो स्त्रियों को एक ही दिन बच्चे हुए। कमरा नं० 5 में बाबू राधेश्याम जी की स्त्री मनोरमा को दूसरी बार पुत्र हुआ था। उन्हें प्रसूति-ज्वर हो गया था। उनकी अवस्था चिंता

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थाती

3 मार्च 2022
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(१) क्यों रोती हूँ। इसे नाहक पूँछ कर जले पर नमक न छिड़को ! जरा ठहरो ! जी भर कर रो भी तो लेने दो, न जाने कितने दिनों के बाद आज मुझे खुलकर रोने का अवसर मिला है। मुझे रोने में सुख, मिलता है; शान्ति मिलत

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अमराई

3 मार्च 2022
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[१] उस अमराई में सावन के लगते ही झूला पड़ जाता और विजयादशमी तक पड़ा रहता। शाम-सुबह तो बालक-बालिकाएँ और रात में अधिकतर युवतियाँ उस झूले की शोभा बढ़ातीं। यह उन दिनों की बात है जब सत्याग्रह आन्दोलन अपने

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अनुरोध

3 मार्च 2022
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(१) "कल रात को मैं जा रहा हूँ ।” "जी नहीं, अभी आप न जा सकेंगे” आग्रह, अनुरोध और आदेश के स्वर में वीणा ने कहा। निरंजन के ओठों पर हल्की मुस्कुराहट खेल गई। फिर बिना कुछ कहे ही उन्होंने अपने जेब से एक

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ग्रामीणा

3 मार्च 2022
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पंडित रामधन तिवारी को परमात्मा ने बहुत धन-संपत्ति दी थी, किंतु संतान के बिना उनका घर सूना था। धन धान्य से भरा पूरा घर उन्हें जंगल की तरह जान पड़ता। संतान की लालसा में उन्होंने न जानें कितने जप-तप एवं

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