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एक बूँद

17 सितम्बर 2015

267 बार देखा गया 267
featured imageज्यों निकल कर बादलों की गोद से थी अभी एक बूँद कुछ आगे बढ़ी, सोचने फिर-फिर यही जी में लगी हाय क्यों घर छोड़कर मैं यों बढ़ी। मैं बचूँगी या मिलूँगी धूल में, चू पड़ूँगी या कमल के फूल में। बह गई उस काल एक ऐसी हवा वो समन्दर ओर आई अनमनी, एक सुन्दर सीप का मुँह था खुला वो उसी में जा गिरी मोती बनी। लोग यों ही हैं झिझकते सोचते जबकि उनको छोड़ना पड़ता है घर, किन्तु घर का छोड़ना अक्सर उन्हें बूँद लौं कुछ और ही देता है कर। -अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’
उषा यादव

उषा यादव

अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ जी की बहुत ही सुन्दर कविता है यह !

19 सितम्बर 2015

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रचनाएँ
hindipoets
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इस आयाम के अंतर्गत आप हिंदी जगत के श्रेष्ठ कवियों की रचनाएँ पढ़ सकते हैं ।
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खग! उड़ते रहना जीवन भर!

1 सितम्बर 2015
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भूल गया है तू अपना पथ,और नहीं पंखों में भी गति,किंतु लौटना पीछे पथ पर अरे, मौत से भी है बदतर।खग! उड़ते रहना जीवन भर!मत डर प्रलय झकोरों से तू,बढ आशा हलकोरों से तू,क्षण में यह अरि-दल मिट जायेगा तेरे पंखों से पिस कर।खग! उड़ते रहना जीवन भर!यदि तू लौट पड़ेगा थक कर,अंधड़ काल बवंडर से डर,प्यार तुझे करने वाले ह

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आए घन पावस के

3 सितम्बर 2015
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अलि घिर आए घन पावस केलख ये काले-काले बादल नील सिंधु में खिले कमल दल हरित ज्योति चपला अति चंचल सौरभ के रस के ।द्रुम समीर कंपित थर-थर-थर झरती धाराएँ झर-झर-झर जगती के प्राणों में स्मर शर बेध गए कस के ।हरियाली ने अलि हर ली श्री अखिल विश्व के नवयौवन की मंद गंध कुसुमों में लिख दी लिपि जय की हंस के ।छोड़ ग

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क़दम मिलाकर चलना होगा

10 सितम्बर 2015
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मित्रो,पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल विहारी बाजपेई अनेकानेक प्रतिभाओं के साथ जितनी अद्वितीय नेतृत्व क्षमता के धनी रहे हैं उतनी ही अनुपम हैं उनकी काव्य रचनाएँ भी । किताबों के पन्ने पलटते जब कभी ऐसी मनहर-मनोग्य रचनाएँ सम्मुख होती हैं तो जी चाहता है कि आपके साथ इन्हें साझा करूँ...बाधाएँ आती हैं आएँघिरें

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पुष्प की अभिलाषा

10 सितम्बर 2015
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साहित्यकार माखनलाल चतुर्वेदी, हिंदी साहित्य के श्रेष्ठतम रचनाकारों में से एक हैं । आपका जन्म 4 अप्रैल 1889 को मध्य प्रदेश के होशंगाबाद ज़िले में बाबई नामक स्थान पर हुआ था । आप भारत के ख्यातिप्राप्त कवि, लेखक और पत्रकार थे जिनकी रचनाएँ अत्यंत लोकप्रिय हुईं। सरल भाषा और ओजपूर्ण भावनाओं के वे अनूठे हिंद

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झील

10 सितम्बर 2015
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मत छुओ इस झील को।कंकड़ी मारो नहीं,पत्तियाँ डारो नहीं,फूल मत बोरो।और कागज की तरी इसमें नहीं छोड़ो।खेल में तुमको पुलक-उन्मेष होता है,लहर बनने में सलिल को क्लेश होता है।-रामधारी सिंह 'दिनकर'

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नीड़ का निर्माण फिर-फिर

11 सितम्बर 2015
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नीड़ का निर्माण फिर-फिर,नेह का आह्वान फिर-फिर!वह उठी आँधी कि नभ मेंछा गया सहसा अँधेरा,धूलि धूसर बादलों नेभूमि को इस भाँति घेरा,रात-सा दिन हो गया, फिररात आ‌ई और काली,लग रहा था अब न होगाइस निशा का फिर सवेरा,रात के उत्पात-भय सेभीत जन-जन, भीत कण-कणकिंतु प्राची से उषा कीमोहिनी मुस्कान फिर-फिर!नीड़ का निर

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मै अनंत पथ में लिखती जो

11 सितम्बर 2015
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कितनी ही बार जाने क्या खोजते-खोजते हम कितना कुछ मध्य में पा जाते हैं किसी गंतव्य तक पहुँचते हुए। कुछ ऐसे ही किताब के पन्ने पलटते, आ पंहुचे हिन्दी-जगत के विशाल मंदिर की सरस्वती महादेवी वर्मा जी की इस कविता तक ‘मैं अनंत पथ में लिखती जो’…मै अनंत पथ में लिखती जोसस्मित सपनों की बातेउनको कभी न धो पायेंग

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युवा जंगल

14 सितम्बर 2015
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हिन्दी साहित्य के सृजन में श्री अशोक वाजपेयी जी का नाम अत्यंत सम्मान से लिया जाता है । 16 जनवरी सन 1941 को दुर्ग (मध्य प्रदेश) में जन्मे अशोक वाजपेयी कई वर्षों तक मध्य प्रदेश शासन भोपाल के संस्कृति एवं प्रकाशन विभाग में विशेष सचिव के पद पर सेवारत रहे । आपने ‘पूर्वग्रह’ पत्रिका का अनेक वर्षों तक सफ

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इक बार कहो तुम मेरी हो

16 सितम्बर 2015
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15 जून 1927 फिल्लौर (पंजाब) में जन्मे हिन्दी-उर्दू के सुप्रसिद्ध रचनाकार शेर मोहम्मद ख़ान यानि इब्ने इंशा ने कविता, कहानी, नाटक, डायरी, यात्रा वृत्तांत तथा संस्मरण आदि अनेक विधाओं में उत्कृष्ट साहित्य रचा I उनकी कविताएँ- ‘इस बस्ती के इस कूचे में’, ‘चाँद नगर’, ‘बिल्लू का बस्ता’ और ‘यह बच्चा कैसा बच्च

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मैं तुझे फिर मिलूँगी

16 सितम्बर 2015
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31 अगस्त, 1919 को गुजराँवाला (पंजाब) में जन्मी अमृता प्रीतम, पंजाबी भाषा की पहली कवियित्री मानी जाती हैं । अमृता प्रीतम का शुमार उन साहित्यकारों में है जिनकी कृतियों का अनेक भाषाओं में अनुवाद हुआ। उनके उपन्यास ‘पिंजर’ पर बनी हिन्दी फ़िल्म अत्यंत सराहनीय रही । उनके कहानी संग्रह हैं- कहानियाँ जो कहानि

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जीवन का झरना

16 सितम्बर 2015
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यह जीवन क्या है? निर्झर है, मस्ती ही इसका पानी है।सुख-दुख के दोनों तीरों से चल रहा राह मनमानी है।कब फूटा गिरि के अंतर से? किस अंचल से उतरा नीचे?किस घाटी से बह कर आया समतल में अपने को खींचे?निर्झर में गति है, जीवन है, वह आगे बढ़ता जाता है!धुन एक सिर्फ़ है चलने की, अपनी मस्ती में गाता है।बाधा के रोड़ो

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तब मानव कवि बन जाता है!

17 सितम्बर 2015
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तब मानव कवि बन जाता है!जब उसको संसार रुलाता,वह अपनों के समीप जाता,पर जब वे भी ठुकरा देतेवह निज मन के सम्मुख आता,पर उसकी दुर्बलता पर जब मन भी उसका मुस्काता है!तब मानव कवि बन जाता है!-गोपालदास नीरज

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एक बूँद

17 सितम्बर 2015
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ज्यों निकल कर बादलों की गोद सेथी अभी एक बूँद कुछ आगे बढ़ी,सोचने फिर-फिर यही जी में लगीहाय क्यों घर छोड़कर मैं यों बढ़ी।मैं बचूँगी या मिलूँगी धूल में,चू पड़ूँगी या कमल के फूल में।बह गई उस काल एक ऐसी हवावो समन्दर ओर आई अनमनी,एक सुन्दर सीप का मुँह था खुलावो उसी में जा गिरी मोती बनी।लोग यों ही हैं झिझकत

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तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार

17 सितम्बर 2015
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तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार आज सिन्धु ने विष उगला हैलहरों का यौवन मचला हैआज हृदय में और सिन्धु मेंसाथ उठा है ज्वारतूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार लहरों के स्वर में कुछ बोलोइस अंधड में साहस तोलोकभी-कभी मिलता जीवन मेंतूफानों का प्यारतूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार यह असीम, निज सी

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कौन यहाँ आया था

17 सितम्बर 2015
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कौन यहाँ आया थाकौन दिया बाल गयासूनी घर-देहरी मेंज्योति-सी उजाल गयापूजा की बेदी परगंगाजल भरा कलशरक्खा था, पर झुक करकोई कौतुहलवशबच्चों की तरह हाथडाल कर खंगाल गयाआँखों में तिरा आयासारा आकाश सहजनए रंग रँगा थका-हारा आकाश सहजपूरा अस्तित्व एकगेंद-सा उछाल गयाअधरों में राग, आगअनमनी दिशाओं मेंपार्श्व में, प्र

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कविता का विषय

18 सितम्बर 2015
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काव्य को मानव-जीवन की व्याख्या माना जाता है। मानव जीवन पर्याप्त विस्तृत-व्यापक है। मानवेत्तर प्रवत्ति भी मानव जीवन से सम्बद्ध है क्योंकि उसका भी मानव से नित्य संबंध है। फलतः कविता के विषय की सीमा आंकना सहज-संभव नहीं। मानव-जीवन और मानवेत्तर प्रकृति का प्रत्येक क्षेत्र, अंग, भाव-विचार, प्रकृति-प्रवृत्

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भाषा एकमात्र अनन्त है

22 सितम्बर 2015
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हिन्दी साहित्य के सृजन में श्री अशोक वाजपेयी जी का नाम अत्यंत सम्मान से लिया जाता है । 16 जनवरी सन 1941 को दुर्ग (मध्य प्रदेश) में जन्मे अशोक वाजपेयी कई वर्षों तक मध्य प्रदेश शासन भोपाल के संस्कृति एवं प्रकाशन विभाग में विशेष सचिव के पद पर सेवारत रहे । आपने ‘पूर्वाग्रह’ पत्रिका का अनेक वर्षों तक सफल

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प्रकृति कुछ पाठ पढ़ाती है

23 सितम्बर 2015
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तीन महाकाव्यों—तुलसी मानस, सरल रामायण एवं सीतायन के रचनाकार प्रो0 श्रीकृष्ण ‘सरल’ जी का जन्म 01 जनवरी, 1919 को सनाढ्य ब्राह्मण परिवार में अशोक नगर, गुना (म.प्र.) में हुआ था । प्रो0 सरल ने व्यक्तिगत प्रयत्नों से 15 महाकाव्यों सहित 124 ग्रन्थ लिखे एवं उनका प्रकाशन कराया । महर्षि पुरुषोत्तमदास टंडन से

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सैनिक

23 सितम्बर 2015
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मारने और मरने का काम कौन लेता यह कठिन काम जो करता, वह सैनिक होता, जैसे चाहे, जब चाहे मौत चली आए जो नहीं तनिक भी डरता, वह सैनिक होता । यह नहीं कि वह वेतन-भोगी ही होता है वह मातृभूमि का होता सही पुजारी है, अर्चन के हित अपने जीवन को दीप बना उसने माँ की आरती सदैव उतारी है । पैसा पाने के लिए कौन जीवन देग

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हम कहा बड़ा ध्वाखा होइगा

24 सितम्बर 2015
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अवधी कै अरघा-रमई काका  उत्तर प्रदेश में अवधी भाषा के लिये चन्द्र भूषण त्रिवेदी यानि ‘रमई काका’ का नाम रेडियो प्रसारण के क्षेत्र में प्रसिध्द है । उन्नाव जिले के रावतपुर ग्राम में जन्मे ‘रमई काका’ अवधी साहित्य के भूषण थे । आप एक हास्य कवि और कलाकार के रूप में जाने जाते है। आपने योजना विभाग में निरीक

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फिर क्या होगा उसके बाद

26 सितम्बर 2015
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‘बालकृष्ण राव’ हिन्दी के कवि एवं संपादक थे। ये हिंदी साहित्य सम्मेलन, इलाहाबाद की ‘माध्यम’ पत्रिका के पहले सम्पादक बने एवं भारत सरकार के आकाशवाणी विभाग में हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य किए। आपकी अनेक रचनाएँ विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हुईं। फिर क्या होगा उसके बा

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मैं जिसे ओढ़ता-बिछाता हूँ

26 सितम्बर 2015
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मैं जिसे ओढ़ता-बिछाता हूँवो ग़ज़ल आपको सुनाता हूँएक जंगल है तेरी आँखों मेंमैं जहाँ राह भूल जाता हूँतू किसी रेल-सी गुज़रती हैमैं किसी पुल-सा थरथराता हूँहर तरफ़ ऐतराज़ होता हैमैं अगर रौशनी में आता हूँएक बाज़ू उखड़ गया जबसेऔर ज़्यादा वज़न उठाता हूँमैं तुझे भूलने की कोशिश मेंआज कितने क़रीब पाता हूँकौन य

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सच्चा स्वराज्य

20 अक्टूबर 2015
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यह तुम थीं

20 नवम्बर 2015
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हम

28 दिसम्बर 2015
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आखिर कैसे लटके नभ में

28 दिसम्बर 2015
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नव वर्ष

31 दिसम्बर 2015
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कर सके तो इतना कर दे...

2 जनवरी 2016
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दो हज़ार सोलह कर सके तो इतना कर दे, ये जो खाइयां-सी खुद गई हैं न दिलों में नफ़रत और पराएपन की, इन्हें भर दे और दे सके तो शासकों में इसके लिए फ़िकर दे, और फ़िकर भी जमकर दे भ्रष्टाचारियों को डर दे, और डर भी भयंकर दे। संप्रदायवादियों को टक्कर दे, और टक्कर भी खुलकर दे बेघरबारों को घर दे, और घरों में ज

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मातृ-वन्दना

14 जनवरी 2016
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मत कहो आकाश में कोहरा घना है

16 जनवरी 2016
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एक कबूतर चिट्ठी लेकर

16 जनवरी 2016
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गीत का जन्म

30 जनवरी 2016
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एक अन्धकार बरसाती रात मेंबर्फ़ीले दर्रों-सी ठंडी स्थितियों मेंअनायास दूध की मासूम झलक साहंसता, किलकारियां भरताएक गीत जन्माऔर देह में उष्मास्थिति संदर्भॊं में रोशनी बिखेरतासूने आकाशों में गूंज उठा :बच्चे की तरह मेरी उंगली पकड़ करमुझे सूरज के सामने ला खड़ा किया ।यह गीतजो आजचहचहाता हैअन्तर्वासी अहम से

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आया वसंत आया वसंत

10 फरवरी 2016
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आया वसंत आया वसंतछाई जग में शोभा अनंत।सरसों खेतों में उठी फूलबौरें आमों में उठीं झूलबेलों में फूले नये फूलपल में पतझड़ का हुआ अंतआया वसंत आया वसंत।लेकर सुगंध बह रहा पवनहरियाली छाई है बन बन,सुंदर लगता है घर आँगनहै आज मधुर सब दिग दिगंतआया वसंत आया वसंत।भौरे गाते हैं नया गान,कोकिला छेड़ती कुहू तानहैं स

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निर्माण गीत

10 फरवरी 2016
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बज रही बिगुल, जगा रहा नया बिहान !क़दम-क़दम से ताल दे चला है नौजवान !!हवा में हरहरा उठे हरे-हरे पेड़,श्रमिक-श्रमिक के मन में कुछ नवीन राग छेड़ ।यहाँ विहंग का न प्रातःकाल गान है,टोकरी, कुदाल, धुरमुसों की शान है ।अरुण-वरण किरण से भर रहा है आसमान ।क़दम-क़दम से ताल दे चला है नौजवान ।काँधे पर कुदाल, मुख म

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एक कली

10 फरवरी 2016
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थी खड़ी कली, अधखिली कली,रसभरी कली ।जब विहँस पड़ी, तब निखर उठी,आया कोई मधु का लोभी ।गुन-गुन करतामधु पी-पीकरपागल बनता ।फिर भी प्यासा, फिर भी आशा,वह हाथ बढ़ा, आगे उमड़ा ।कुछ कह-सुनकरफिर मिला ओठरस पी-पीकरगुनगुना उठा वह पंख उठा ।पंखों के हिलडुल जाने सेकुछ इधर झड़ेकुछ उधर पड़ेवे परिमल कणया आभूषण !हिल उठी

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वसंतोत्सव

12 फरवरी 2016
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मस्ती से भरके जबकि हवासौरभ से बरबस उलझ पड़ीतब उलझ पड़ा मेरा सपनाकुछ नये-नये अरमानों से;गेंदा फूला जब बागों मेंसरसों फूली जब खेतों मेंतब फूल उठी सहस उमंगमेरे मुरझाये प्राणों में;कलिका के चुम्बन की पुलकनमुखरित जब अलि के गुंजन मेंतब उमड़ पड़ा उन्माद प्रबलमेरे इन बेसुध गानों में;ले नई साध ले नया रंगमेरे

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सबकी बात न माना कर

20 फरवरी 2016
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सबकी बात   न  माना करखुद  को भी पहचाना कर Iदुनिया   से   लड़ना  है  तोअपनी ओर  निशाना  कर Iया  तो  मुझसे  आकर मिलया  मुझको  दीवाना   कर Iबारिश  में   औरों   पर  भीअपनी  छतरी  ताना  कर Iबाहर  दिल  की  बात न लादिल को भी तहखाना कर Iशहरों  में  हलचल  ही  रखमत  इनको   वीराना  कर I-डॉ. कुँअर 'बेचैन'

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मेरा गाँव

9 मार्च 2016
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तितलियों के लाखों रंग बूढ़े बरगद की ठंडी छांव ,लहलहाते खेत जिंदा है.. मेरा गाँव ,गुनगुनाते भँवरे खिलखिलाती किरण मन्त्र-मुग्ध बयार कर जाती तन -मन चिलचिलाती धूप जलते पांव घने बरगद के नीचे आराम करता गाँव .सुरमई शाम ,बजती घंटियाँ गायों की ,उड़ती पग धूल छिपती राहों की जलते चूल्हे ऊंघते बच्चे तनी चद्दरों

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गुलाबी रंगों वाली देह

16 मार्च 2016
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मेरे भीतरकई कमरे हैंहर कमरे मेंअलग-अलग सामानकहीं कुछ टूटा-फूटातो कहींसब कुछ नया!एकदम मुक्तिबोध कीकविता-जैसाबस ख़ाली है तोइन कमरों कीदीवारों परये मटमैला रंगऔर ख़ाली हैभीतर कीआवाज़ों से टकरातीमेरी आवाज़नहीं जानती वोप्रतिकार करनापर चुप रहना भीनहीं चाहतीकोई लगातारदौड़ रहा हैभीतरऔर भीतरइन छिपीतहों के बीच

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मोम सा तन घुल चुका

26 मार्च 2016
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मोम सा तन घुल चुका अब दीप सा तन जल चुका है।विरह के रंगीन क्षण ले,अश्रु के कुछ शेष कण ले,वरुनियों में उलझ बिखरे स्वप्न के सूखे सुमन ले,खोजने फिर शिथिल पग,निश्वास-दूत निकल चुका है!चल पलक है निर्निमेषी,कल्प पल सब तिविरवेषी,आज स्पंदन भी हुई उर के लिये अज्ञातदेशीचेतना का स्वर्ण, जलतीवेदना में गल चुका है!

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बात की बात

26 मार्च 2016
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इस जीवन में बैठे ठालेऐसे भी क्षण आ जाते हैंजब हम अपने से ही अपनी-बीती कहने लग जाते हैं। तन खोया-खोया-सा लगतामन उर्वर-सा हो जाता हैकुछ खोया-सा मिल जाता हैकुछ मिला हुआ खो जाता है। लगता; सुख-दुख की स्मृतियों केकुछ बिखरे तार बुना डालूँयों ही सूने में अंतर केकुछ भाव-अभाव सुना डालूँ कवि की अपनी सीमायें है

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सच हम नहीं सच तुम नहीं

1 अप्रैल 2016
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सच हम नहीं सच तुम नहींसच है सतत संघर्ष ही ।संघर्ष से हट कर जिए तो क्या जिए हम या कि तुम।जो नत हुआ वह मृत हुआ ज्यों वृन्त से झर कर कुसुम।जो पंथ भूल रुका नहीं,जो हार देखा झुका नहीं,जिसने मरण को भी लिया हो जीत, है जीवन वही।सच हम नहीं सच तुम नहीं।ऐसा करो जिससे न प्राणों में कहीं जड़ता रहे।जो है जहाँ चुप

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अक़्ल ये कहती है, सयानों से बनाए रखना

14 अप्रैल 2016
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अक़्ल  ये  कहती है, सयानों से बनाए रखना,दिल  ये कहता है, दीवानों  से  बनाए रखना Iलोग   टिकने  नहीं  देते  हैं  कभी  चोटी  पर,जान-पहचान   ढलानों    से   बनाए   रखना Iजाने किस मोड़ पे मिट जाएँ निशाँ मंज़िल के,राह   के   ठौर-ठिकानों   से   बनाए  रखना Iहादसे   हौसले   तोड़ेंगे   सही   है  फिर  भी,चंद  

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यह क्यों

25 अप्रैल 2016
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हर उभरी नस मलने का अभ्यासरुक रुककर चलने का अभ्यासछाया में थमने की आदतयह क्यों ?जब देखो दिल में एक जलनउल्टे उल्टे से चाल-चलनसिर से पाँवों तक क्षत-विक्षतयह क्यों ?जीवन के दर्शन पर दिन-रातपण्डित विद्वानों जै

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शब्दों से परे

25 अप्रैल 2016
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शब्दों से परे-परेमन के घन भरे-भरेवर्षा की भूमिका कब से तैयार हैहर मौसम बूंद का संचित विस्तार हैउत्सुक ॠतुराजों की चिंता अब कौन करेपीड़ा अनुभ

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किताब पढ़िए

लेख पढ़िए