15 जून 1927 फिल्लौर (पंजाब) में जन्मे हिन्दी-उर्दू के सुप्रसिद्ध रचनाकार शेर मोहम्मद ख़ान यानि इब्ने इंशा ने कविता, कहानी, नाटक, डायरी, यात्रा वृत्तांत तथा संस्मरण आदि अनेक विधाओं में उत्कृष्ट साहित्य रचा I उनकी कविताएँ- ‘इस बस्ती के इस कूचे में’, ‘चाँद नगर’, ‘बिल्लू का बस्ता’ और ‘यह बच्चा कैसा बच्चा है’ अत्यंत लोकप्रिय हैं !
आइए, आज आपके साथ साझा करते हैं उनकी एक मनोरम रचना ‘एक बार कहो तुम मेरी हो’…
हम घूम चुके बस्ती-बन में
इक आस का फाँस लिए मन में
कोई साजन हो, कोई प्यारा हो
कोई दीपक हो, कोई तारा हो
जब जीवन-रात अंधेरी हो
इक बार कहो तुम मेरी हो।
जब सावन-बादल छाए हों
जब फागुन फूल खिलाए हों
जब चंदा रूप लुटाता हो
जब सूरज धूप नहाता हो
या शाम ने बस्ती घेरी हो
इक बार कहो तुम मेरी हो।
हाँ दिल का दामन फैला है
क्यों गोरी का दिल मैला है
हम कब तक पीत के धोखे में
तुम कब तक दूर झरोखे में
कब दीद से दिल की सेरी हो
इक बार कहो तुम मेरी हो।
क्या झगड़ा सूद-ख़सारे का
ये काज नहीं बंजारे का
सब सोना रूपा ले जाए
सब दुनिया, दुनिया ले जाए
तुम एक मुझे बहुतेरी हो
इक बार कहो तुम मेरी हो।
-इब्ने इंशा
दीद=दर्शन
सेरी=तॄप्ति
सूद-ख़सारे=लाभ-हानि