अवधी कै अरघा-रमई काका
उत्तर प्रदेश में अवधी भाषा के लिये चन्द्र भूषण त्रिवेदी यानि ‘रमई काका’ का नाम रेडियो प्रसारण के क्षेत्र में प्रसिध्द है । उन्नाव जिले के रावतपुर ग्राम में जन्मे ‘रमई काका’ अवधी साहित्य के भूषण थे । आप एक हास्य कवि और कलाकार के रूप में जाने जाते है। आपने योजना विभाग में निरीक्षक के पद पर कार्य किया। आपको 1940 में आकाशवाणी में अपनी प्रस्तुति देने का प्रस्ताव मिला। आकाशवाणी लखनऊ से ‘बहिरे बाबा’ कार्यक्रम की प्रस्तुति में एक कलाकार के रूप में आपको बहुत अधिक ख्याति प्राप्त हुई। आपके कार्यक्रम बीबीसी लंदन से भी प्रसारित हुए। आपने 35 बर्ष के आकाशवाणी के कार्यकाल के दौरान नाटक, हास्य नाटक, नौटंकी और कई कविताएँ लिखीं। आपकी प्रमुख रचनाएँ हैं बौछार, भिनसार, नेता जी, फुहार, हरपति तरवर, गुलछर्रा, हास्य के छींटे और माटी के मोल । आइए, आनन्द लेते हैं रमई काका की इस हास्य रचना का...
हम गयन याक दिन लखनउवै,
कक्कू संजोगु अइस परिगा
पहिलेहे पहिल हम सहरु दीख,
सो कहूँ-कहूँ ध्वाखा होइगा ।
जब गएँन नुमाइस द्याखै हम,
जंह कक्कू भारी रहै भीर
दुई तोला चारि रुपइया कै,
हम बेसहा सोने कै जंजीर
लखि भईं घरैतिन गलगल बहु,
मुल चारि दिनन मा रंग बदला
उन कहा कि पीतरि लै आयौ,
हम कहा बड़ा ध्वाखा होइगा ।
म्वाछन का कीन्हें सफाचट्ट,
मुंह पौडर औ सिर केस बड़े
तहमद पहिरे कम्बल ओढ़े,
बाबू जी याकै रहैं खड़े
हम कहा मेम साहेब सलाम,
उई बोले चुप बे डैमफूल
'मैं मेम नहीं हूँ साहेब हूँ ',
हम कहा फिरिउ ध्वाखा होइगा ।
हम गयन अमीनाबादै जब,
कुछ कपड़ा लेय बजाजा मा
माटी कै सुघर महरिया असि,
जंह खड़ी रहै दरवाजा मा
समझा दूकान कै यह मलकिन
सो भाव ताव पूछै लागेन
याकै बोले यह मूरति है,
हम कहा बड़ा ध्वाखा होइगा ।
धँसि गयन दुकानैं दीख जहाँ,
मेहरेऊ याकै रहैं खड़ी
मुंहु पौडर पोते उजर-उजर,
औ पहिरे सारी सुघर बड़ी
हम जाना मूरति माटी कै,
सो सारी पर जब हाथ धरा
उइ झझकि भकुरि खउख्वाय उठीं,
हम कहा फिरिव ध्वाखा होइगा ।
—चन्द्र भूषण त्रिवेदी (रमई काका)