अक़्ल ये कहती है, सयानों से बनाए रखना,
दिल ये कहता है, दीवानों से बनाए रखना I
लोग टिकने नहीं देते हैं कभी चोटी पर,
जान-पहचान ढलानों से बनाए रखना I
जाने किस मोड़ पे मिट जाएँ निशाँ मंज़िल के,
राह के ठौर-ठिकानों से बनाए रखना I
हादसे हौसले तोड़ेंगे सही है फिर भी,
चंद जीने के बहानों से बनाए रखना I
शायरी ख़्वाब दिखाएगी कई बार मगर,
दोस्ती ग़म के फ़सानों से बनाए रखना I
आशियाँ दिल में रहे आसमान आँखों में,
यूँ भी मुमकिन है उड़ानों से बनाए रखना I
दिन को दिन, रात कोजो रात नहीं कहते हैं,
फ़ासले उनके बयानों से बनाए रखना I
एक बाज़ार है दुनिया जो अगर ‘राही जी’
तुम भी दो-चार दुकानों से बनाए रखना I
-बालस्वरूप राही