तीन महाकाव्यों—तुलसी मानस, सरल रामायण एवं सीतायन के रचनाकार प्रो0 श्रीकृष्ण ‘सरल’ जी का जन्म 01 जनवरी, 1919 को सनाढ्य ब्राह्मण परिवार में अशोक नगर, गुना (म.प्र.) में हुआ था । प्रो0 सरल ने व्यक्तिगत प्रयत्नों से 15 महाकाव्यों सहित 124 ग्रन्थ लिखे एवं उनका प्रकाशन कराया । महर्षि पुरुषोत्तमदास टंडन से प्रेरित, शहीद भगतसिंह की माता श्रीमती विद्यावती जी के सानिध्य एवं विलक्षण क्रांतिकारियों के समीपी प्रो0 सरल ने प्राणदानी पीढ़ियों के व्यक्तित्व एवं कृतित्व को अपने साहित्य का विषय बनाया। सुप्रसिद्ध साहित्यकार पं0 बनारसीदास चतुर्वेदी ने कहा- 'भारतीय शहीदों का समुचित श्राद्ध श्री सरल ने किया है। महान क्रान्तिकारी पं0 परमानन्द का कथन है— 'सरल’ जीवित शहीद हैं।' महाकाल की नगरी उज्जैन में साहित्य साधना की अखंड ज्योति जलाते हुए ‘सरल’ 2 दिसम्बर, 2000 को इस संसार से विदा हो गये। आज आपके साथ साझा कर रहे हैं उनकी एक अनुपम रचना 'प्रकृति कुछ पाठ पढ़ाती है'...
प्रकृति कुछ पाठ पढ़ाती है,
मार्ग वह हमें दिखाती है।
प्रकृति कुछ पाठ पढ़ाती है।
नदी कहती है' बहो, बहो
जहाँ हो, पड़े न वहाँ रहो।
जहाँ गंतव्य, वहाँ जाओ,
पूर्णता जीवन की पाओ।
विश्व गति ही तो जीवन है,
अगति तो मृत्यु कहाती है।
प्रकृति कुछ पाठ पढ़ाती है।
शैल कहतें है, शिखर बनो,
उठो ऊँचे, तुम खूब तनो।
ठोस आधार तुम्हारा हो,
विशिष्टिकरण सहारा हो।
रहो तुम सदा उर्ध्वगामी,
उर्ध्वता पूर्ण बनाती है।
प्रकृति कुछ पाठ पढ़ाती है।
वृक्ष कहते हैं खूब फलो,
दान के पथ पर सदा चलो।
सभी को दो शीतल छाया,
पुण्य है सदा काम आया।
विनय से सिद्धि सुशोभित है,
अकड़ किसकी टिक पाती है।
प्रकृति कुछ पाठ पढ़ाती है।
यही कहते रवि शशि चमको,
प्राप्त कर उज्ज्वलता दमको।
अंधेरे से संग्राम करो,
न खाली बैठो, काम करो।
काम जो अच्छे कर जाते,
याद उनकी रह जाती है।
प्रकृति कुछ पाठ पढ़ाती है।
—प्रो0 श्रीकृष्ण ‘सरल’