हे क्षमा, धैर्य की धारक माँ !
हे अखिल सृष्टि की कारक माँ !
हे सहनशक्ति की महामूर्ति,
तेरे चरणों में पुण्य धाम !
जननी, तुमको शत-शत प्रणाम !
तुममें चन्दन सी शीतलता,
तुममें किसलय सी कोमलता,
तुम ममता का शाश्वत वितान,
तुममें सुरसरि सी पावनता !
तुम प्रेमरूप सौभाग्यवती,
तुम मौन तपस्विनि महासती,
शुचि कोख तुम्हारी वन्दनीय,
पलता जिसमें अंकुर ललाम,
जननी तुमको शत-शत प्रणाम !
तुम ही मधु-चुम्बन का दुलार,
कोमल थपकी में घुला प्यार,
तुम स्नेह, शील का वायटन,
आँचल में संचित, अमिय धार !
तुम ही तो पावन तुलसी हो,
‘मानस’ रचना की हुलसी हो,
तुम आंगन-आंगन की तुलसी,
सुख की गोदी, दुःख का विराम,
जननी तुमको शत-शत प्रणाम !
हिलते पलने की डोरी तुम,
दुलराती दूध कटोरी तुम,
तुम प्रेम डिठौना नन्हे मुख,
सपनों में गुंजित लोरी तुम !
तुम पूजन अर्चन विनती हो,
तुम धर्मराज की कुन्ती हो,
तेरे आँचल की छाँव देख,
भय खाते वर्षा-शीत-घाम,
जननी तुमको शत-शत प्रणाम !
करुणा के गृह कौशल्या तुम.
शापित-पाषाण, अहिल्या तुम,
नि:शब्द रुदन पढ़ने वाली,
सेवा-धर्मी कैवल्या तुम !
तुम ही सावित्री सीता हो,
तुम ही तो भगवत गीता हो,
धरणी, धेनु, श्री, सरस्वती,
जग जननी तेरे कोटि नाम,
जननी तुमको शत-शत प्रणाम !
─कन्हैयालाल गुप्त ‘सलिल’
29 ए/2, कर्मचारी नगर, कानपुर-208 007
साभार: ‘मातृस्थान’ हिन्दी मासिक पत्रिका