आंध्र प्रदेश की राजधानी हैदराबाद के अंदर बसा एक खूबसूरत शहर विजयवाड़ा । इसकी बात ही कुछ और है । भारत का दूसरा सबसे बडा शहर भी कहां जाता है इसे । बस यही से शुरू होती है हमारी नई कहानी ' सागर से गहरा इश्क पियाजी ' । हमारी नायिक का संबंध इसी शहर से है । शुरुआत करने से पहले एक खूबसूरत की कविता आप लोगों के लिए । .........
सर्द मौसम में कहर ढा रही हैं बारिशें , झूम-झूम कुछ गुनगुना रही हैं बारिशें !
ज़हर जो घुला हुआ था हवाओं में ,यूँ बूँदों से भिगो कर मिटा रही हैं बारिशें !
कोई भी अच्छा नहीं लगता रोता हुआ , जाने कितने आँसू छिपा रही हैं बारिशें !
हवाओं में नमीं किसी की याद सी है , हौले हौले दिल धड़का रही हैं बारिशें !
अफसानों में बयाँ करें भी क्या इश्क , ज़ख्म देकर भी ललचा रही हैं बारिशें !
आग लगे तो जल जायेगा सब कुछ , फिर मुहब्बत भड़का रही हैं बारिशें !
अरसे से नहीं भीगी ज़मीन दिल की , आज बेखौफ चली आ रही हैं बारिशें !
ये मज़हब जाति का भेद नहीं रखती , हर एक फर्क को मिटा रही हैं बारिशें !
क़सम खाई कभी मुहब्बत न करने की , आज खुद " इश्क " हुई जा रहीं हैं बारिशें !
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दोपहर का वक्त , प्रताप पेलेस
मानसून के महिने में यहां भी खूब बारिश होती है । विजयवाड़ा शहर और उसके एक हिस्से में बना प्रताप महल । इसके चारों ओर हथियार लिए लोग पहरा दे रहे थे । महल के अंदर सामने सोफे पर एक व्यक्ति गंभीर मुद्रा में बैठा हुआ था । जिसकी उम्र करीब पचपन से साठ वर्ष के बीच होगी । उसके सामने खडा आदमी सिर झुकाए अपने हाथ जोड़कर बोला " हुकुम फैक्ट्री में मजदूरो ने हड़ताल शुरू कर रखी है । पूरे दो दिन हो गए हैं सारा काम रूका पडा है । "
( सामने सोफे पर बैठे व्यक्ति का नाम है देवेंद्र प्रताप सिंह । इस महल के मालिक । राजपूताना परिवार से संबंध रखते हैं । हालांकि राजस्थान छोडे एक अरसा गुज़र गया , लेकिन राजसी ठाठ बात आज भी बिल्कुल वैसा ही है । उनके सामने खडा व्यक्ति कोई और नहीं उनके मुंशी गिरधारी सिन्हा है । )
गिरधारी जी ने अपनी बात पूरी ही की थी , कि तभी पीछे से किसी ने कहा " ये सब बहुत ज्यादा हो रहा है भाई सा । इन दो दिनों मे हमारा करोडो का नुक़सान हो गया है । अगर कोई ठोस कदम नही उठाया तो न जाने और कितने दिन ये नुकसान उठाना पड़ेगा । " ये कहते हुए एक आदमी देवेंद्र जी के पास वाले सोफे पर आकर बैठ गया । ( ये देवेंद्र जी का इकलौता और छोटा भाई अभय प्रताप सिंह है । )
देवेन्द्र जी अभय के हाथ पर अपना हाथ रख बोले " अभय शांत हो जाओ । हम जानते हैं तुम्हें गुस्सा बहुत जल्दी आता है । लेकिन गुस्सा इंसानी दिमाग को अक्सर गलत फैसला लेने पर मजबूर करता है । ये काम हम अश्वत्थ को सौंपेंगे । वो मजदूरों को संभाल लेगा । " देवेन्द्र जी की बातों पर अभय शांत हो गए ।
' कमलेश ........ ' देवेन्द्र जी अपने घर के एक नौकर को आवाज लगाते हुए कहा । उनकी आवाज़ सुनकर नौकर दौडा चला आया ।
' जी हुकुम ' नौकर ने सिर झुकाकर कहा ।
" कमलेश अश्वत्थ को कहो कि हम बुला रहे है । अभी और इसी वक्त । " देवेन्द्र जी के ये कहने पर नौकर हां में सिर हिलाकर वहां से चला गया ।
इधर ऊपर कमरे में अश्वत्थ फोन पर किसी से बात कर रहा था । ( ये है देवेंद्र जी का बडा बेटा अश्वत्थ प्रताप सिंह । ) अश्वत्थ के कमरे में पायलों की शोर गूंज रही थी । उसने नजर घुमाकर कर देखा , तो एक लडकी राजस्थानी लिवाज पहने बिस्तर पर पडे कपड़ों को तह लगाकर कबर्ड में रख रही थी । ( ये अश्वत्थ की पत्नी अवंतिका है । )
अश्वत्थ ने फ़ोन कट किया और जाकर अवंतिका को पीछे से बांहों में भर लिया ।
' ये क्या कर रहे हैं आप मैं काम कर रही हूं और आप मुझे परेशान करने चले आए । ' अवंतिका ने नाराज होते हुए कहा । अश्वत्थ उसे यूं बाहों में भरते हुए बोला " इसे परेशान करना नही बल्कि प्यार करना कहते है और मैं अपनी पत्नी के साथ ये सब नही करूंगा तो और किसके साथ करूंगा । "
" आपकों तो बस बातें बनाना आता है । मैं आपकी सारी आदतों को अच्छे से जानती हूं । चलिए बताईए क्या चाहिए आपको ? "
" वैसे जो मांगूंगा वो तो तुम दोगी नही । मैं एक किस से ही काम चला लूंगा । चलो वो ही दे दो । " अश्वत्थ के ये कहने पर अवंतिका आखे बडी करते हुए बोली " नही ...... बिल्कुल भी नही ...... हमें ढेर सारा काम करना है । चलिए आप दूर रहिए हमसे । '
" तो करो मैं कौन सा तुम्हें रोक रहा हू । "
" लेकिन आप हमें छोड़ेंगे तभी तो हम काम करेंगे न । " अवंतिका ने परेशान होते हुए कहा ।
" या तो मेरी बात मानो , वरना यू ही मेरी बाहों में खडी रहो । " अश्वत्थ कह ही रहा था , कि तभी किसी ने कमरे का दरवाजा नोंक किया । अश्वत्थ का मूड खराब हो गया , लेकिन अवंतिका के चेहरे पर इस्माइल आ गई । अवंतिका अपने मन में बोली " अब तो आपको हमें छोडना ही पडेगा । " अश्वत्थ ने न चाहते हुए भी अवंतिका को छोड़कर दरवाजा खोलने चला गया । इधर अवंतिका अपना पल्लू सिर पर डाल उसे ठीक करने लगी । अश्वत्थ ने दरवाजा खोला तो बाहर कमलेश खडा था । अश्वत्थ के कुछ पूछने से पहले ही कमलेश ने कहा " बडे साहब हुकुम आपको बुला रहे हैं । "
कमलेश ने इतना कहा ही था , कि तभी अश्वत्थ को किसी के हंसने की दबी आवाजें सुनाई दी । ये आवाजें अवंतिका की थी , हालांकि वो अपना चेहरा फेरकर अपनी हंसी को कंट्रोल करने की कोशिश कर रही थी । अश्वत्थ अपने मन मे बोला " मेरी हालत पर बहुत हंसी आ रही है न , कोई बात नहीं मैं फिर कभी बदला ले लूंगा । " अवंतिका अपना घूंघट संभाले हुए अपने काम में लग गई । अश्वत्थ ने कमलेश की ओर देखकर कहा " अच्छा तुम चलो हम आते है । " उसके इतना कहने पर कमलेश वहां से चला गया । अश्वत्थ पीछे मुड़ा तो देखा अवंतिका उसका शर्ट अपने हाथ में पकड़े ठीक उसके पीछे खडी थी ।
" ये लीजिए पहनिए इसे और नीचे जाइए । " अवंतिका ने उसकी शर्ट बढ़ाते हुए कहा । अश्वत्थ ने उसके हाथों से शर्ट ली और पहनते हुए बोला " पापा ने बुला लिया इसलिए तुम बच गई , लेकिन मै भी छोडने वालो में से नही हूं । वैसे लाड़ो कहा है कही नजर नहीं आ रही । "
" लगता है आपकों भूलने की बीमारी हो गई है । सुबह ही बताया था आपको । आज लाड़ो का आखिरी एग्जाम है इसलिए वो स्कूल गई है । " अवंतिका ने कहा तो अश्वत्थ अपने शर्ट के बटन लगातें हुए बोला " वो तो मैं भी जानता हूं । लेकिन इस वक्त दोपहर के तीन बज रहे हैं । एग्जाम तो कब का खत्म हो गया होगा ? "
" हां लेकिन आज आखिरी दिन है स्कूल का । सहेलियों से मिलने जुलने में वक्त तो लगेगा न । अब तो लाड़ो के स्कूल भी खत्म हो जाएंगे , फिर कब वो दोस्तों से मुलाकात कर पाएगी । वैसे भी पिछले पांच सालों से वो गिनती के दिन ही स्कूल गई है । आप लोगो ने उसकी सारी पढाई घर पर ही रहकर करवाई है । "
" ये सब हमने अपने लाडो की भलाई के लिए कहा । ये बात तो तुम्हें पता ही है कि हमारे दुश्मन कितने है वो बस हर पल इसी ताक में रहते हैं कि कब हमे नुकसान पहुंचाए और तुम तो अच्छे से जानती हो लाड़ो में हम सबकी जान बसती है । " अश्वत्थ ने कहा ।
" आप बेकार ही उसकी चिंता कर रहे है । वो आ जाएगी । " अवंतिका ये सब कहते हुए अपना काम किए जा रही थी ।
" मैं चिंता इसलिए कर रहा हूं क्योंकि बरसात बहुत तेज़ है । ऐसे मैं भीगेगी तो तबियत ख़राब हो जाएगी । " अश्वत्थ ये कहते हुए कमरे से बाहर निकल गया । अवंतिका मुस्कुराते हुए अपने मन में बोली " आप कुछ भी कहिए सच तो यही है की वो बरसात की दीवानी है । "
अश्वत्थ नीचे आया तो देखा हॉल में इस वक्त सब लोग गंभीर मुद्रा में बैठे हुए थे । " जी आपने बुलाया पापा ! " अश्वत्थ ने पूछा तो देवेंद्र जी ने हाथो के इशारे से उसे बैठने के लिए कहा । अश्वत्थ के बैठते ही देवेंद्र जी ने कहा " फैक्ट्री में कैसा माहौल है ये तो तुम जानते ही हो अश्वत्थ । हम चाहते है की तुम जल्द से जल्द इस समस्या का समाधान करो । "
" पापा इस प्रोब्लम की जड को ही काट दे तो प्रोब्लम अपने आप खत्म हो जाएगी । " अश्वत्थ कह ही रहा था कि तभी अभय ने कहा " तुम्हारा कहने का मतलब क्या है अश्वत्थ ? "
" काका सा मेरा कहने का ये मतलब है कि मज़दूरों की तीन मुख्य मांगे है । पहला ये कि उनकी तनख्वाह में उचित बढ़ोतरी हो । दूसरा ये कि उनके लीडर को चुनने का अधिकार उनका होना चाहिए और तीसरा ये कि हादसे में जिन मजदूरों की मौत हुई उनके परिवार की जिम्मेदारी हम अपने ऊपर ले । अगर हम उनकी इन मांगों को मान लेते है तो वो ये हड़ताल अभी बंद कर देंगे । " अश्वत्थ ने कहा तो अभय जी गुस्से से बोले " ये सब बेतुकी बातें है भाईसा । अगर हम ऐसे ही उनकी मांगें मानते रहे , तो कुछ दिन बाद वो दस मांगे और लेकर आ जाएंगे । "
" लेकिन काका सा उनकि मांगे तो उचित है । जिन लोगों की हादसे में मौत हुई उनके परिवार की जिम्मेदारी तो हमारी बनती है । " अश्वत्थ ने कहा ।
अभय जी एक फीकी मुस्कान के साथ बोले " तुम बहुत जल्दी मोम की तरह पिघल जाते हो अश्वत्थ । हादसे में जिन मजदूरों की मौत हुई उनके घर हम पहले ही रूपये भिजवा चुके है । "
" काका सा आपकी बात सही है लेकिन उन रूपयों से क्या होगा ? उन परिवारों में कमाने वाला कोई मर्द नही बचा । फिर हमारे दिए पांच लाख रूपयों से वो कितने दिन अपना गुजर बसर करेंगे । " अश्वत्थ ने जवाब दिया । अश्वत्थ और अभय के वाद विवाद बढ़ते जा रहे थे । दोनों में से कोई भी अपनी बात खत्म नही कर रहा था । इनकी बातों को बढता देख देवेंद्र जी ने कहा " इस तरह आपस में ही बहस करने से किसी समस्या का समाधान नहीं निकलेगा । अश्वत्थ हम मजदूरो की पहली और तीसरी शर्त मानने को तैयार है । " ....... ये कहते हुए देवेंद्र जी ने मुंशी जी की ओर देखकर कहा " गिरधारी जी आज से मजदूरों की तनख्वाह में बीस प्रतिशत की बढ़ोतरी कर दी जाओ । हादसे में जिन मजदूरों की मौत हुई उनके परिवार के सक्षम सदस्यों को हमारे कपड़ा मिल कारखाने में नौकरी दे दी जाए चाहे महिला हो या पुरूष । मुआवजे की रकम दुगनी कर उनके घर भिजवा दिया जाए । '
योगेन्द्र जी की बातों पर मुंशी जी ने हां में सहमति जताई । योगेन्द्र जी अश्वत्थ की ओर देखकर बोले " अश्वत्थ हम मजदूरो की दूसरी मांग अस्वीकार करते है । उनका लीडर चुनने का हक सिर्फ हमे होगा । बाकी तुम इस मसले को कैसे हल करते हो ये हम तुमपर छोड़ते हैं । " योगेन्द्र जी इतना कहकर वहां से उठकर चले गए । मुंशी जी भी उनके पीछे चले गए । अभय जी उठते हुए बोले " अश्वत्थ मैं तो मजदूरों की कोई शर्त नही मानता , लेकिन भाई सा ने कहा तो ऐसा जरूर होगा । अब इस मामले को तुम्हें जल्द से जल्द निपटाना है । " इतना कहकर वो भी व्हिस्की से चले गए । अश्वत्थ वही हॉल में बैठा उन सबकी कही हुई बातों को सोच रहा था । इतने किसी ने उसके सिर पर हाथ फेरा तो अश्वत्थ ने पलट कर देखा । " मां आप यहां ....... ( ये हैं देंवेद्र जी की पत्नी शारदा प्रताप सिंह । )
" क्या बात है अश्वत्थ तुम इतने परेशान क्यों नजर आ रहे हो ? "शारदा जी ने पूछा ।
अश्वत्थ ने उठते हुए कहा " कुछ नहीं मां बस फैक्ट्री का थोडा काम है उसी सिलसिले में कुछ सोच रहा था । अच्छा मां अभी मुझे चलना होगा । " इतना कहकर अश्वत्थ भी वहां से चला गया । सावित्री जी उसे जातें हुए देखकर मन में बोली " समझ सकती हूं बेटा । न चाहतें हुए भी तुम्हें अपने पिता और काका सा के कहने पर वो काम करना पड रहा है जो तुम कभी नही करना चाहते । " शारदा जी ये सोच ही रही थी कि तभी अवंतिका ने आकर कहा " मासा आपने कुछ कपड़े निकालने के लिए कहे थे वो हमने निकाल दिए है । आप एकबार चलकर देख लीजिए फिर हम नौकरों से कहकर उनकी रंगने के लिए कह देंगे । " शारदा जी अवंतिका के साथ चली गई ।
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बरसात अब भी तेज़ थी । यहां दूसरी तरफ एक लडकी बारिश देख खुद को उसमें भीगने से न रोक पाई । नीले रंग की घाघरा चोली और उसपर गुलाबी रंग का दुपट्टा , जो कमरबंद के सहारे कमर पर टिका हुआ था । नागिन जैसी कमर तक लहराती चोटी , हिरनी जैसे नैन , होंठों पर मुस्कुराहट ऐसी जैसी बिजली कौंध उठी हो । कानो में छोटे छोटे झुमके और नाक में पतली सी सोने की बाली । एक हाथ में भरी हुई नीले रंग की चूड़ियां और दूसरे में घडी । उस लड़की ने एक हाथ से अपना घाघरा पकडा जिससे ऊपर की ओर हलका खिंचाव हुआ और पैरो में पहनी उसकी पायल दिखाई दी । उसने अपने पैरो से थिडकना शुरू किया और मजे से बारिश में भीगने लगी बिल्कुल किसी मोरनी की तरह ।
" रीत ये क्या कर रही है ? घर नही जाना । पूरी तरह भीग जाएगी वापस आजा । "
( जी हां यही है रीत प्रताप सिंह । बेहद ही चुलबुली और शैतान गुड़िया । )
रीत ने आवाज की ओर चेहरा घुमाया , तो देखा पिलर से टिककर खडी उसकी सहेली उसे ही पुकार रही थी । रीत ने उसे कोई जवाब नही दिया और मज़े से बारिश में भीगने लगी ।
" रीत तुझे कुछ सुनाई दे रहा है या नही । मैं कह रही हूं वापस आ जा । " रीत की सहेली ने फिर से आवाज लगाई तो रीत मुस्कुराते हुए बोली " विधी आज मत रोक मुझे । तुझे तो मालूम है न कितने दिनों बाद मेरी सहेली मुझसे मिलने आई है । "
" कौन ये बरसात ? ....... जानती हूं में तेरी सबसे अच्छी सहेली है ये । इसके आते ही तूं दुनिया जहान सब भूल जाती है । यहां तक की तुझे खुद का भी होश नहीं रहता । " विधी ने मूंह बनाते हुए कहा ।
रीत घूमते हुए तेज़ आवाज़ में बोली " हां दीवानी हूं मैं इसकी । जब घटाओं से बूंदें बरसकर मेरे तन को भिगोती है , मानो एक प्यारा सा एहसास इस दिल को होता है । ये बार बार मुझे अपनी ओर खींचती है जानती है क्यो ....... ? क्योंकि ये भी मुझसे उतनी ही मोहब्बत करती है जितना की मैं इससे करती हूं । "
" मेरी मां अगर तूं ऐसे ही भीगती रही , तो तुम दोनों की मोहब्बत में कही और आग जरूर लग जाएगी । पूरा स्कूल खाली हो चुका है और सिवाय हम दोनों मुझे नहीं लगता यहां और भी कोई होगा । " विधि ने इतना कहा ही था , कि तभी रीत के कदम रुक गए और वो मूंह बनाते हुए मन में बोली " ये ऐसे नही मानने वाली । अभी बताती हूं इसे । " ये कहते हुए रीत विधी की ओर बढ गई ।
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क्या अश्वत्थ इस समस्या का समाधान ढूंढ पाएगा ? कैसे वो मजदूरों को संभालेगा ?
विधि रीत की बातें आसानी से मानने वालो में से तो नही है , लेकिन अब वो क्या करने वाली है हमें ये देखना होगा ? आगे जानने के लिए अलगे भाग का इंतजार करे ?
सागर से गहरा इश्क पियाजी
( अंजलि झा )
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इंतक़ाम से भरी हुई मोहब्बत और दर्द की दास्तां के साथ ये कहानी आपको हसाएगी भी और रूलाएगी भी । इस कहानी के साथ मैं आपको नई जगह की संस्कृति के बारे में भी बताऊगी । इसमें कविताएं और शायरियां की भरमार करने वाली हूं । बट डोंट वरी डायलाग्स में कटौती कर आपको बोर नहीं करूगी । खुश रहिए और हमेशा मुस्कुराते रहिए और साथ ही दूसरों के चेहरे पर भी मुस्कुराहट लाने की कोशिश कीजिए ।
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