' ठीक है फिर आपकी सजा ये है कि आप दोनों आज रात भूखे सोएंगे और रीत भी । ' अभय जी ने ये कहा तो अश्वत्थ हैरान होकर बोला " काका सा लापरवाही हमारी है तो सजा हमें दीजिए रीत को नही । सिर्फ एक नही हम दस रातें भूखे रहने को तैयार है , लेकिन आप हमारी लाड़ो को सजा मत दीजिए । "
" हमे मालूम था हमारी और किसी सजा से आपको फर्क नहीं पडेगा और आप हंसते हंसते सह लेंगे लेकिन रीत की सजा आपको ज्यादा दर्द देगी । आपकों में सजा आज बर्दाश्त करनी ही होगा , क्योंकि इसके बाद ये लापरवाही आप गलती से भी नहीं करेंगे । " अभय जी ये कहते हुए उठे और वहां से अपने कमरे की ओर चले गए ।
अश्वत्थ देवेंद्र जी की ओर देखकर बोला " पापा आपने काका सा को रोका क्यों नहीं ? रीत से भूख बर्दाश्त नहीं होती । वो भूखे पेट कैसे सोएगी ? "
देवेन्द्र जी उठते हुए बोला " अभय ने जो सजा दी है हम उससे सहमत है । ध्यान रहे आगे से ऐसी लापरवाही तुमसे दोबारा न हो । " देवेन्द्र जी इतना कहकर अपने कमरे की ओर बढ गया । इतनी देर से अर्जुन यहां खडा बस तमाशा देख रहा था । उसने अपने मन में कहा " बुरा फंसे आज तो अब सारी रात भूखा रहकर सोना पडेगा ।
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शाम का वक्त , प्रतापगढ़
यहां हुकुम सा की हवेली को की भांति सजाया गया था । आज पूरे 12 साल बाद इस हवेली के राजकुमार जो पधारने वाले थे । पूरी हवेली में रौनक छाई हुई थी । सभी नौकर किस इलाके से काम में लगे हुए थे । शालिनी जी ने नक्षत्रा से कहा " नक्षत्रा बेटा जाकर देखो आरती की थाल तैयार हुई कि नहीं । "
" जी मां " इतना कहकर नक्षत्रा वहां से चली गई ।
हवेली के बाहर एक बडी सी गाडी आकर रूकी । वहां खडे दो आदमियों ने आगे बढ़कर गाडी का दरवाजा खोला । आगे वाली सीट से रूद्र बाहर आया और पीछे वाली सीट से रूहान और श्रवण बाहर निकले । वो तीनों आगे बढ गए । श्रवण तो वहां की सजावट देखकर इतना खुश हुआ की अपना कैमरा निकालकर वो खुद को तस्वीरें लेने से रोक नहीं पाया । उन लोगों के आगे बढ़ते ही रास्ते के इर्द गिर्द खडी लड़कियों ने अपने हाथ में रखी थाल से उनपर फूल बरसाना शुरू कर दिया । अंदर शालिनी जी को जब रूहान के आने की खबर मिली तो वो महल की कुछ औरतों के साथ दरवाजे के पास चली आई । किसी के हाथ में आरती की थाल थी तो किसी के हाथों में इत्र ।
रूहान जब दरवाजे के पास पहुंचा तो शालीनी को देख उसके होंठों पर मुस्कुराहट तैर गई । उसने अपना चश्मा उतारकर कोट की पॉकेट में रखा और शालिनी के पैर छूने के लिए नीचे झुका । शालिनी ने उसका कंधा पकड़ उसे उठाते हुए कहा " हमेशा खुश रहिए " ! इतना कहकर उन्होंने अपने बगल में खडी औरत के हाथों से आरती की थाल ली और सिंदूर का तिलक रूहान के माथे पर किया । अक्षत यानी चावल के कुछ दाने उसके सिर पर डाले । उन्होंने रूहान की आरती उतारी और राजस्थान पारंपरिक मिठाई यानी घेबर उठाकर रूहान को खिलाया । उन्होंन उसे मिठाई खिलाते हुए कहा " आप तो जानते है न इस मिठाई को खिलाने के बाद कोई भी शुम काम किया जाए तो उसमें बाधा नही आती । रूहान हल्का मुस्कुराते हुए बोला " वो मैं नहीं जानता काकी सा बस इतना जानता हूं मीठा आपके हाथों से खाया है कुछ अशुभ हो ही नहीं सकता । " शालिनी उसकी बातों पर मुस्कुरा दी । श्रवण तो बस तस्वीरें लेने में बिजी था । शालिनी ने उसकी ओर देखकर कहा " श्रवण तस्वीरें खींचने के आपको बहुत से मौक़े मिलेंगे पहले हम से तो मिल लीजिए । "
' ओह ..... सॉरी काकी सा ....... इतना कहकर श्रवण ने उनके पांव छुए और फिर आगे बोला " यहां की खूबसूरती देखकर तो मैं अपने आपको तस्वीरें खींचने से रोक ही नहीं पाया काकी सा । "
शालिनी उसे तिलक लगाते हुए बोली " कितनी भी तस्वीरें खींच लीजिए लेकिन यहां की खूबसूरती आप अपने कैमरे में समा नही पाएंगे । " ये कहते हुए शालीनी ने उसकी आरती उतारी और सब अंदर चले आए । रूहान ने विजय जी को देखा तो पांव छूने के लिए आगे बढा । विजय जी ने उसे कंधे से पकड़ रोकते हुए अपने सीने से लगा लिया । " इन सबकी जरूरत नहीं है बेटा । हमारा आशिर्वाद तो हमेशा आपके साथ है । वैसे हमारे शेर आज भी बिल्कुल वैसे ही है । बस बदलाव इतना आया है की अब वो पहले से ज्यादा जवान हो गए है । " उनकी बातों पर रूहान मुस्कुरा दिया । इसी बीच श्रवण ने आकर कहा " वैसे काका सा आप भी कुछ कम नही है । सिर्फ उम्र बढी है आपकी लेकिन देखिए आज भी तीस साल के नौजवान ही नजर आ रहे है । " ये कहते हुए श्रवण ने उनके पांव छुए तो विजय जी बोले " गलत कहा आपने तीस नही बीस । "
" ओह सॉरी ..... गलती हो गई । श्रवण ने कहा तो सब मुस्कुरा दिए ।
तभी एक औरत मुस्कुराते हुए उनके पास आई जिसकी उम्र करीब साठ से पेसठ वर्ष के बीच होगी । राजस्थानी लिवाज और पारंपरिक जेवर तन पर सजे हुए थे । रूहान उनकी ओर बढा और उनके पांव छूकर बोला " कैसी है बुआ सा आप ? "
" छोरा तूं म्हारे से जे बात पूछ रहा से । जे पूछ थारे बगैर हम कैसे रहे ? जरा सी भी बुआ सा और अपने घरवालों की याद न आई तने । " बुआ सा ने शिकायती लहजे में कहा तो रूहान हल्की मुस्कुराहट के साथ बोला " आप सबकी बहुत याद आई बुआ सा और देखिए हम आप सबके पास वापस चले आए । "
श्रवण ने अपने मन में कहा " तो यही हैं बुआ सा इनसे तो बचकर रहना पडेगा । "
बुआ सा की नज़र श्रवण पर पडी तो वो रूहान से बोली " जे कौन से मेंढक सी आंख वाला । "
अपने लिए बुआ सा के मूंह से मेंढक शब्द सुनकर श्रवण का मूंह बन गया । रूहान ने बुआ सा की ओर देखकर कहा " बुआ सा ये हमारे दोस्त है श्रवण । " उसने इतना कहा तो श्रवण ने आकर बुआ सा के पांव छू लिए । बुआ से ने अजीब से लहजे में कहा " ठीक से छोरा अब रहने दे , म्हारे पांव को ज्यादा तकलीफ़ न दे । " उन्होंने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि श्रवण ने अभी भी उनके पांव पकडे हुए थे । उसने अजीब सी मुस्कुराहट के साथ उनके पांव छोड दिए ।
' भाई सा हमसे नही मिलेंगे आप ' रूहान ने जब नक्षत्रा की आवाज सुनी तो अपनी बाहे फैला ली । नक्षत्रा उसके सीने से जा लगी । " कैसी हो हमारी लाड़ो ? "
" बिल्कुल भी अच्छी नहीं हूं । आपकों पता है आपने लास्ट टाइम मुझसे कब फ़ोन पर बात की थी । पूरे दस दिन हो गए । " नक्षत्रा ने शिकायती लहजे में कहा तो रूहान बोला " चलिए हम आ गए हैं न अब आपकी सारी शिकायतें दूर कर देंगे । " नक्षत्रा उससे अलग हुई और श्रवण की ओर देखकर बोला " भाई सा आप तो हमेशा रूहान भाई सा के साथ रहते थे न फिर आप इन्हें नही समझा सकते । "
" तुम्हें लगता है नक्षत्रा ये मेरी कोई बात सुनता है । सिवाय हुकुम चलाने के इसे कुछ नही आता । अब तुम ही इसे सुधारना । " श्रवण कह ही रहा था कि तभी उसकी नज़र देविका जी पर पडी , जो पूजा की थाल लिए उन्ही की ओर आ रही थी । श्रवण उनके पास आया और उनके पांव छूकर बोला " मां सा आप तो आज भी बिल्कुल वैसी है जैसी पहले थी । "
देविका जी ने पूजा की थाल नक्षत्रा को दी और श्रवण के सिर पर हाथ फेरते हुए बोली " आप भी बिल्कुल वैसे है जैसे हमने आपको बरसों पहले देखा था । " इतना कहकर देविका जी रूहान की ओर बढ गई । वो भी उनकी ओर कदम बढाने लगा । उसने झुककर देविका जी के पांव छुए तो देविका जी ने उसे कंधे से पकड़कर उठाया और अपने सीने से लगा लिया । उनकी पलकें नम हो गई थी बेटे को देखकर । मूंह से शब्द नही निकल पा रहे थे । रूहान उनसे अलग हुआ तो देखा उनकी आंखों से आंसू बह रहे थे । रूहान उनके आंसू पोंछते हुए बोला " अगर हमे मालूम होता की हमारे आने से हमारी मां सा के आंखों मे आंसू आ जाएंगे तो हम नही आते !
देविका उसके मूंह पर अपना हाथ रखते हुए बोली " खबर दार जो आपने फिर से ऐसी बातें की तो । अब हम आपको अपने से कभी दूर नहीं जाने देंगे । "
" मत जाने दीजिएगा भाभी सा लेकिन अभी इन्हें इनके कमरे में तो जाने दीजिए । ताकी ये लोग आराम कर सके । बेटा आप लोगों का सामान हमने आपके कमरे में रखवा दिया है । आप लोग जाकर हाथ मूंह धो लीजिए । हम आपके कमरे में नाश्ता भिजवा देते है । " शालिनी जी ने कहा तो रूहान और श्रवण वहां से चले गए । रूद्र उन्हें उनके कमरे तक छोड़ने गया !
रूहान जब अपने कमरे में आया तो देखा सारी चीजें वैसे ही व्यवस्थित थी जैसा वो अक्सर अपने कमरे को रखता था । उसने अपना कोट उतारकर सोफे पर रखा और जब बालकनी में आया तो देखा आगे बेहद ही खूबसूरत सा गार्डन था और उसके आगे नज़र जहा तक जाती वहां सिर्फ रेत ही रेत थी । हवा का झोंका अक्सर यहा अंगड़ाइयां लेता । रूहान अपनी शर्ट के ऊपरी तीन बटन खोल बाज़ूओ को फोल्ड करता हुआ सामने के नजारों को देखता रहा । उसने अपने मन में कहा " .......
किश्तों में कटी ज़िन्दगी,
कुछ इस कदर जनाब,
पता भी न चला कभी,
कि जी रहे हैं हम.......
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रात का वक्त , रीत का महल
खाने की टेबल पर अभय जी और देवेंद्र जी के अलावा और कोई मौजूद नही था । शारदा जी अकेले उन दोनों को खाना परोस रही थी । चेहरा उनका उतरा हुआ था क्योंकि सबको पता चल चुका था कि आज बच्चों को सजा दी गई है ।
देवेन्द्र जी ने निवाला अपने मूंह की ओर बढाया ही था कि तभी उनके हाथ रूक गए । उन्होंने शारदा जी की ओर देखकर पूछा " आपने और बहु ने खा लिया । "
शारदा जी बिना उनकी ओर देखे बोली " हमारे बच्चे भूखे है तो भला हमारे गले से निवाला नीचे कैसे उतरेगा ? "
उनकी बात सुनकर अभय जी के खाते हुए हाथ भी रूक गए । देवेन्द्र जी ने थाली अपने से दूर खिसकाई और अन्न के सामने हाथ जोड वहां से उठकर चले गए । उनके जाते ही अभय जी ने भी खाना छोड दिया और वहा से उठकर चले गए । शारदा जी उन्हें रोकना तो चाहती थी लेकिन रोकने की हिम्मत नहीं जुटा पाई ।
ऊपर अश्वत्थ के कमरे में अवंतिका उसके पास बिस्तर पर बैठी थी । अश्वत्थ उसके हाथ पर अपना हाथ रखते हुए बोला " सजा हमे मिली है अवंतिका तुम क्यों भुगते रही हो । तुम और मां जाकर खाना खाओ । "
" आप लोग भूखे रहेंगे तो भला मेरे गले से निवाला नीचे कैसे उतरेगा ? " अवंतिका ने सर झुकाए कहा ।
" मतलब मेरे साथ तुम भी पूरी रात भूखी रहोगी । " अश्वत्थ ने पूछा तो अवंतिका उसकी ओर देखकर बोली " साथ जीने मरने की कसम खाई है । आपके खुशी और गम में हमेशा साथ दूगी । अर्धांगिनी हूं आपकी सजा छोटी हो या बडी बराबर की हिस्सेदारी निभाऊंगी । "
उसके ये कहते ही अश्वत्थ मुस्कुराते हुए बोला " तुमसे बातों में जीत पाना मेरे लिए तो मुमकिन नही । इतना कहकर अश्वत्थ ने उसे अपने गले लगा लिया । अवंतिका उसके गले लगे हुए बोली " हमे लाड़ो की चिंता हो रही हैं । उनसे तो भूख बिल्कुल बर्दाश्त नहीं होती । "
" मैं भी यही सोच रहा हूं कि अब क्या करूं ? " अश्वत्थ उसे यूं ही गले लगाएं बोला । इसी बीच किसी ने दरवाजा खटखटाया तो वो दोनों हड़बड़ाकर एक दूसरे से अलग हुए । " इस वक्त कौन आया होगा ? " अश्वत्थ ने कहा ।
" मैं देखती हूं " इतना कहकर अवंतिका दरवाजा खोलने के लिए आगे बढ गई ।
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रीत , अश्वत्थ और अर्जुन तीनो को ही सजा भुगतनी पड रही है ! कहते है न गेहू के साथ घुन भी पिसता है ! बस वैसा ही कुछ हाल है !
आखिर कौन हैं दरवाजे पर जो इतनी रात गए आया ? ये हम कल जानेंगे आगे का अध्याय जरूर पढिए
सागर से गहरा इश्क पियाजी
( अंजलि झा )
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