रूहान गुस्से से ये सब कहे जा रहा था तभी पीछे से किसी ने कहा " हमने इन्हें इजाजत दी है । " रूहान आवाज की ओर पलटा तो देखा देविका जी सफेद साडी पहने खड़ी थी । उन्हें इस लिवाज मे देखकर रूहान के दिल पर क्या बीत रही थी ये सिर्फ वही जानता था ।
देविका जी ने उसके पास आकर कहा " अठारह साल बीत गए रूहान अब आप कब निभाएंगे अपने बेटे होने का फर्ज । अपने पिता की अस्थियों को गंगा में प्रवाहित कीजिए । अब और कितने दिन आप उनकी अस्थियों को घर में रखेंगे । "
" बेटा मृत्यू के पश्चात अस्थियों को ज्यादा समय तक घर में नही रखा जाता । इससे मरने वाले की आत्मा को शांति नही मिलती । " पंडित जी ने कहा तो रूहान गुस्से से बोला " हमें क्या करना चाहिए और क्या नही हम अच्छे से जानते हैं । इतना कहकर रूहान बाकी लोगों की ओर देखकर बोला " प्लीज आप लोग यहां से जाए । " लोगों के बीच बाते बननी शुरू हो गई । वो लोग एक एक कर वहां से जाने लगा । देविका जी लोगो को रोकने की कोशिश करने लगी ।
रूहान उनकी ओर देखने लगा तो देविका जी बोली " आप बात को समझ क्यों नही रहे बेटा ये बहुत जरूरी है । "
रूहान गुस्से से बोला " इससे भी ज्यादा ज़रूरी मां सा हमारे लिए हमारे बाबा सा के चिता पर खाई हुई कसम है । हम उनकी अस्थियों को तब तक विसर्जित नही करेंगे जब तक हम उनके कातिलों को अपने हाथों से सजा नही दे देते । हम उन्हें खून के आंसू रोने पर मजबूर कर देंगे । " रूहान देविका जी के पास आया और उनकी दोनों बाहें पकडते हुए बोला " मां सा जहां आपने अठारह साल इंतजार किए है वहा थोडा इंतजार और कर लीजिए । हम वादा करते है अब और समय नही लगेगा । बहुत जल्द हम उन लोगों को उनके किए की सजा देंगे । उनकी मौत के बाद ही हम अपने बाबा सा की अस्थियों को विसर्जित करेंगे । "
वहां खडे सभी लोग बस रूहान की बातों को हैरानी से सुन रहे थे । देविका जी रूहान की ओर देखकर भीगी पलकों के साथ बोली " रूहान आप अब तक ये ज़िद लेकर बैठे है । बेटा छोड दीजिए इस जिद को हम अपने पती को तो खो चुके है अब आपको नही खोना चाहते । हमारे अंदर इतनी ताकत नहीं है कि हम अब आपको खो सके । "
" ये ज़िद नही है मां सा बरसो से हमारे दिल में सुलग रही इंतकाम की वो आग है जिसे अब बुझाने का वक्त आ गया है । बस अब कुछ वक्त और ........ इतना कहकर रूहान वहां से जाने लगा ।
" रूहान ........ बेटा रूकिए ...... रूहान ...... " देविका जी उसे पुकारती रही लेकिन रूहान नही रूका और हवेली से बाहर निकल गया । शालिनी जी , नक्षत्रा और बुआ सा तीनो देविका जी को संभालने उनके पास चली आई ।
" भाभी सा संभालिए अपने आपको । आपको तो पता है न उस हादसे ने रूहान के दिल पर कितना बड़ा ज़ख्म दिया है । उनके लिए उसे भुला पाना आसान नहीं है । "
बुआ सा देविका जी को संभालने हुए बोली " छोटी बींदनी ठीक कह रही से बडी बींदनी । थम चिंता न करो छोरे ने सम्हलने खातिर थोडा वक्त दो । देवी मां सब ठीक कर देंगी । "
..................
सुबह का वक्त , रीत की हवेली
विधी जब सुबह महल आई तो उसे अवंतिका दिखाई दी जो नौकरों को कुछ काम समझा रही थी । विधी उनके पास आकर बोली " भाभी सा रीत कहा है ? "
" और कहां होंगी अपनी सहेली से दिल की बाते कर रही होंगी । " अवंतिका ने कहा तो विधी को समझते देर नहीं लगी । उसने कुछ सोचते हुए कहा " मतलब वो उदास है । लगता है रात बात बहुत ज्यादा बढ गई । मैं उससे मिलकर आती हूं । " इतना कहकर विधी वहां से चली गई ।
इधर रीत महल के उस हिस्से में बैठी थी जहां छोटा सा तालाब बना हुआ था । उसके ऊपर का भाग खुला हुआ था जिससे सूरज की प्रकश वहां बराबर आता था । तालाब में सफेद फूल के क़मल रखे हुए थे । रीत उस तालाब के किनारे बैठकर किसी से बातें कर रही थी लेकिन वहां कोई इंसान मौजूद नही था ।
" सब मुझसे नाराज़ रहते हैं अब तूं भी नाराज़ हो गई जो मेरे इतना कहने के बावजूद भी बाहर नही आ रही । बहुत शोख है तुझे मुझसे दूर रहने का ...... तो ठीक है रह मुझसे दूर । एक दिन इतनी दूर चली जाऊगी कि फिर कभी लौटकर नही आऊगी । " रीत ये सब तालाब के एक कोने में छुपे कछुए से कह रही थी । जो अभी भी अपनी जगह से हिलने का नाम नही ले रही थी ।
तभी विधी वहां चली आई और रीत को देखकर बोली " लो मैंने इसे कहा कहा नहीं ढूढा और ये यहा अपनी धिया से बात कर रही है । " ये कहते हुए विधी उसके पास चली आई । " लोग पागल कहेंगे रीत इस तरह बेजान चीजो से बाते करेगी तो । "
" मेरी धिया बेजान तो नही " । ये कहते हुए रीत वही तालाब के किनारे लेट गई और अपना एक हाथ पानी में डाल दिया । उसने खोए हुए स्वर मे कहा ......
सोचती हूं मैं अक्सर क्या जिंदगी यही है । सब कुछ तो है पास पर कुछ भी नहीं है ।
कहने को तो सारी दुनिया ही अपनी है । पर इस दुनिया में कोई भी अपना नहीं है ।
रिश्ते रह गए हैं बस नाम के दुनिया में , अपना पन अब कहीं बचा ही नहीं है ।
जीवन में उलझन ही उलझन हैं । क्या इनका कोई हल ही नहीं है ।
यहां झूठ फरेब का जोर है , हैरान हू क्या इंसान कुछ समझता नहीं है..
" रीत कल बहुत डांट पडी तुझे इसलिए अब तक उदास है । " विधी ने पूछा तो रीत न मे सिर हिलाते हुए बोली " उदास नही हू बस ये सोच रही थी कल मेरी की हुई गलती की सजा सबको भुगतनी पडी । अब देख ये भी मुझसे बात नही कर रही । " रीत ये कह ही रही थी कि तभी उसे अपने हाथों मे गुदगुदी महसूस हुई । उसने चेहरा घुमाकर देखा तो धिया पानी मे ऊपर की ओर आ चुकी थी । रीत ने उठकर उसे अपने दोनो हाथों में भरते हुए पानी से बाहर निकाल लिया और उसे अपने होठो से चूमते हुए बोली " मतलब तू मुझसे नाराज नही है ! ....... विधी देख धिया मुझसे नाराज नही हैं । " इस वक्त रीत के चेहरे पर जो खुशी थी वो देखने लायक थी !
विधी मुसकुराते हुए बोली " हां रीत तुझसे कोई नाराज नही है । तू अपना मूड ठीक कर फिर हम सब बाग मे चलेंगे और कच्चे आम भी खाएगे । "
कच्चे आम का नाम सुनकर रीत की आखे चमक गई । उसने खुश होते हुए कहा " और उन्हे तोडेगा कौन ? "
" और कौन हमारा दोस्त माधव " विधी ने कहा तो रीत धिया को वापस से तालाब मे डालते हुए बोली " तू यहां खेल हम लोग बाग में घूमकर आते है । " इतना कहकर वो विधी का हाथ पकड उठी और बोली " चलो बहुत दिन हो गए धमाल किए हुए आज कुछ वैसा ही करेंगे । " इतना कहकर रीत मुसकुरा दी और दोनो आगे बढ गए !
..................
दोपहर का वक्त , रुहान की हवेली
सुबह जाने के बाद रूहान अब जाकर हवेली लौटा था । उसने नौकर से पूछा " काका सा कहां है इस वक्त ? "
" हुकुम सा इस वक्त ऊपर स्टडी रूम मे हैं । " नौकर ने सिर झुकाकर कहा तो बिना कुछ बोले स्टडी रूम की ओर बढ गया । वो अंदर आया तो देखा विजय जी राणा जी से कुछ बात कर रहे थे । "
रूहान अंदर आते हुए बोला " काका सा हमे आपसे जरूरी बात करनी है और वो भी अकेले मे । " उसके इतना कहते ही विजय जी ने राणा जी को जाने का इशारा किया । उनके जाते ही विजय जी ने पूछा " कहिए क्या बात करनी थी आपको ? " रूहान उनके सामने रखे सोफे पर आकर बैठ गया और विजय जी की ओर देखकर बोला " आपने कहा था न काका सा कि हम फैसला करे की हमे शादी करनी है या नही तो हमने अपना फैसला कर लिया है । हम शादी करने के लिए तैयार है । "
विजय जी ने रूहान के मुंह से जैसे ही ये बात सुनी तो उनके खुशी का ठिकाना नही रहा । उन्होंने खुश होते हुए कहा " ये तो बहुत खुशी की बात है बेटा कि आपने हमारी बातो का मान रखा । हम बहुत जल्द आपके लिए एक अच्छे जीवनसाथी की तलाश करेंगे । " विजय जी ये कह ही रहे थे कि तभी रूहान बोला " मै शादी करूगा लेकिन सिर्फ और सिर्फ अभय प्रताप सिंह की बेटी से । " रूहान के मूह से ये सुनकर विजय जी के होठो की मुस्कराहट गायब हो गई । वो हैरान होकर बोले क्या कहा आपने । आप अभय प्रताप सिंह की बेटी से शादी करना चाहते है । आपको क्या लगता है रूहान अभय प्रताप सिंह आपसे अपनी बेटी की शादी करवाएगे । "
विजय जी के ये कहने पर रूहान बोला " वो अपनी बेटी की शादी समर सिंह शेखावत के बेटे से नही करेंगे लेकिन राजस्थान के हुकुम सा के भतीजे से जरूर करेंगे । वैसे भी वो आपको नही जानते और न ही उन्होने कभी आपको देखा है । "
" मतलब रूहान आपने फैसला कर लिया है की आप खुद को इंतकाम की आग मे जलाएगे ! " विजय जी ने कहा तो रूहान उठते हुए बोला " इंतकाम की आग मे तो मैं अब तक जल रहा हूँ काका सा अब वक्त आ गया है उस अग्नि मे एक एक कर अपने दुश्मनों की आहुती दू । अभय प्रताप सिंह की बर्बादी मेरा सबसे बडा मकसद है और इसके लिए मुझे उसे ऐसा दर्द देना होगा जिसकी भरपाई कोई न कर सके । मै उससे उनकी बेटी उनका मान सम्मान सब कुछ छीन लूगा जिससे वो मेरे कदमो मे आकर मुझसे अपनी मौत की भीख मांगे । जो तडप इन अठारह सालो मे मैने सही हैं अब वही तडप हमारे दुश्मन सहेगे । "ये सब कहते हुए रूहान की आखे गुस्से से आग उगल रही थी । उसने विजय जी की ओर पलट कर कहा " काका सा पता करवाइए वो लोग इस वक्त कहा हैं और उनके पास हमारा रिस्ता भेजिये । ये काम जितना जल्दी हो जाए उतना अच्छा होगा और बदले की बात सिर्फ हमारे और आपके बीच रहेगी । बाकी घरवालो को इस बारे मे कुछ पता नही चलना चाहिए । "
" ठीक है हम अभी राणा जी से कहकर उनका पता लगवाते है । " इतना कहकर विजय जी वहां से चले गए !
....................
दोपहर का वक्त , विजयवाड़ा
रीत और विधी बाग मे घूमने आए थे , जो उनके हवेली से थोडी ही दूरी पर था । हालाकी रीत की सुरक्षा मे गार्डस वहां मौजूद थे । वो दोनो इस वक्त आम के पेड के नीचे खडे थे । रीत आस पास देखते हुए बोली " ये माधव कहां रह गया ? कही नजर नही आ रहा । "
" मैने तो उसे कहा था आने के लिए लेकिन पता नही अब तक क्यो नही आया ? " विधी ये कहते हुए आस पास देखने लगी । तभी पेड से कोई नीचे गिरा । रीत और विधी दोनो घबरा कर कुछ कदम पीछे हट गई । उन दोनो ने सामने गिरे शख्स का चेहरा देखा तो हैरान होकर एक दूसरे की ओर देखने लगी और फिर दोनो ने एकसाथ कहा " माधव........
सामने एक लडका पेड से नीचे गिरा था । ये हैं माधव ...... रतन सिंह का बेटा और साथ ही रीत और विधी का खास दोस्त । माधव दर्द से कराहते हुए अपन कमर पकड़कर खडा हुआ तो रीत बोली " तुम ऊपर पेड पर क्या कर रहे थे ? "
" तुम दोनो का इंजतार " माधव अपनी कमर सहलाते हुए बोला ।
विधी अपना सिर पीटते हुए बोली " इंतजार करने के लिए जमीन क्या कम पड गई थीं जो तुम पेड पर हमारा इंतज़ार कर रहे थे । "
" रहने दे विधी ये झूठ बोल रहा है । जरूर काकी की मार से बचने के लिए ये यहां आकर पेड पर चढ गया होगा । " रीत ने कहा तो विधी हसते हुए बोली " बिलकुल सही कह रही हो रीत मुझे भी यही लगता है । "
" तू ..... तू....... तुम्हे कैसे पता ? " माधव हकलाते हुए बोला तो रीत ने कहा " मतलब सचमुच काकी की डांट से बचने के लिए यहां आए थे ! " ये कहते हुए रीत और विधी दोनो मुसकुरा दी । माधव चिढते हुए बोला " तुम लोगो को मेरा मजाक उडाने मे बहुत मजा आ रहा है न तो ठीक है उडाओ मै चला अपने घर । " इतना कहकर माधव जाने के लिए आगे बढ गया ।
*****************
रूहान का फैसला आगे क्या रंग लाएगा ? क्या वो रीत और उसके परिवार वालो का पता लगा पाएगा ? कैसे होगा उनका बंधन ? जानने के लिए आगे पढतै रहिए मेरी नोवल
सागर से गहरा इश्क पियाजी
( अंजलि झा )
*****************