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रीत की मस्ती अर्जुन के साथ -13

13 मई 2023

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रात का वक्त , रीत की हवेली

देर रात सब अपने अपने कमरे में सो रहे थे । अर्जुन अपने कमरे की बालकनी में खडा किसी से फ़ोन पर बात कर रहा था । इसी बीच उसकी नज़र किसी शख्स पर पडी , जो रात के अंधेरे में गार्डस से छुपते छुपाते गाड़ियों के बीच खडा था । सिर हेलमेट से ढका हुआ था । अंधेरे में चेहरा देख पाना मुमकिन नहीं था । अर्जुन ने अपना फोन कान से हटाया और धीरे से बोला " इतने लोगों के होते हुए चोर हमारी हवेली में आया कैसे और इतनी मेहगी गाड़ियों को छोड़कर उसे मेरी ही बाइक मिली चुराने के लिए । अभी बताता हुं इसे ....... " ये कहते हुए अर्जुन ने फ़ोन काट कर अपनी जेब में रखा और बाहर चला आया । वो दबे कदमों के साथ उस शख्स की ओर बढने लगे ‌‌। अर्जुन उसकी तरफ बढते हुए अपने मन में बोला " लगता है बहुत शातिर चोर है । इसे तो हमारी हवेली के एक एक जगह के बारे में मालूम है । ये कहते हुए वो शख्स के बेहद करीब पहुंचा । इससे पहले वो उसे पकडता वो शख्स पीछे की ओर पलटा । दोनों ही एक दूसरे को देखकर चिल्लाने लगे । तभी उस शख्स ने अर्जुन के मूंह पर हाथ रखकर कहा " भैया चिल्लाना बंद कीजिए । " ये आवाज़ रीत की थी । अर्जुन ने हैरानी से अपनी आंखें बडी कर ली । जी हां ये शख्स कोई और नहीं बल्कि रीत थी । उसने अपना हाथ हटाया और अपना हेलमेट उतारा । अंधेरे में हलकी रोशनी की वजह से अर्जुन उसका चेहरा देख पाया । रीत ने इस वक्त शार्ट कुर्ती , ब्लैक जींस पहना हुआ था और ऊपर से ब्लैक कलर की कोटी । 

अर्जुन उसकी ओर देखकर गुस्से से बोला " ये सब क्या है रीत ? क्यों तूं हमेशा मेरे जान निकालने वाले काम करती रहती है ? " 

रीत ने हेलमेट बाइक पर टिकाया और अपने हाथों कोई फोल्ड कर बाइक से टिकते हुए बडी ही मासूमियत के साथ बोली " मैंने क्या किया भैया ? " 

अर्जुन उसके ये कहने पर अजीब सा मूंह बनाते हुए बोला " मैंने क्या किया ? रीत आज कल तूं बहुत ज्यादा ड्रामा करने लगी है । मैं जानता हूं तुझे बाइक चलाना बहुत पसंद है लेकिन अगर ये बात घर में पापा और काका सा को पता चली न तो सोच ले तेरी खैर नही । " 

" ऐसा कुछ नही होगा और वैसे भी मुझे बाइक चलाना किसने सिखाया आपने । अगर उन्हें इसके बारे में पता चलता भी है , तो मैं कह दूगी कि मुझे बाइक चलानी आपने सिखाई । " रीत के ये कहते ही अर्जुन का मूंह खुला का खुला रह गया । 

रीत उसका मूंह बंद करते हुए बोली " भैया मूह बंद कर लीजिए । रात के अंधेरे में मक्खियां जाएगी तो पता भी नहीं चलेगा । " 

" जब तुझ जैसी बहन हो तो दुश्मनों की क्या जरूरत ? तेरे ज़िद करने पर मैंने तुझे बाइक चलाना सिखाया और अब तूं मुझे ही फंसाने में लगी हुई है । " अर्जुन के ये कहने पर रीत मुस्कुराते हुए बोली " मेरे प्यारे अर्जुन भैया मैं कहा आपको फंसा रही हूं । आप ही मुझे डरा रहे हैं और खुद भी डर रहे है । इस वक्त हवेली में सब कोई सो चुका होगा , इसलिए तो मैं बाहर आई । रात के अंधेरे में खुली हवाओं के बीच बाइक पर राइडिंग का मजा ही कुछ और होता है । अच्छा मुझे अब नींद आ रही है । मैं चली सोने अब आप बाइक पार्क कर दीजिएगा । वरना यहां रही तो सुबह बड़े पापा आपसे दस सवाल करेंगे । " गुड नाईट "  इतना कहकर रीत रीत वहां से चली गई । अर्जुन अभी भी उसे हैरानी से जाते हुए देख रहा था । उसने अपने आप से कहा पापा और काका सा के सामने इसके मूंह से चू तक नही निकलती । उनके अलावा बाकी सबके किसी शेरनी की तरह दहाडती है । मेरी नींद उड़ाकर खुद सोने चली गई । अब जल्दी जाकर इसे पार्क करता हूं वरना इसे तो कोई कुछ नहीं बोलेगा , लेकिन मेरे टुकडे टुकडे जरुर कर देंगे ।  " ये कहते हुए अर्जुन बाईक को उसकी सही जगह रखने लगा ।

.....................

सुबह का वक्त , रीत का कमरा

सुबह अवंतिका रीत के कमरे में आई , तो देखा रीत अब तक सो रही थी । अवंतिका ने जाकर खिड़कियों के पर्दे हटाए जिससे धूप की किरणे कमरे के अंदर आई । रीत के चेहरे पर जब किरणे पडी , तो उसने कसमसाते हुए डोरेमोन में अपना सिर छुपा लिया । अवंतिका उसके पास चली आई और उसे उठाते हुए बोली " लाड़ो आठ बज गए । अब आप कब उठेगी चलिए जल्दी उठिए । " 

रीत कसमसाते हुए बोली " भाभी मां बस थोडी देर और सोने दो आज स्कूल नहीं जाना । " 

" लाड़ो अब आपका स्कूल खत्म हो चुका है , लेकिन समय पर उठना भी तो जरूरी है । चलिए जल्दी उठिए । " अवंतिका ने कहा तो रीत ने धीरे धीरे कर अपनी पलकें खोली और सामने अवंतिका को देखकर प्यारी सी स्माइल के साथ बोली " गुड़ मार्निंग भाभी सा । इतना प्यार से जाकर बडे भैया को जगाइए और मुझे थोडी देर और सोने दीजिए ‌‌। " इतना कहकर रीत ने चादर से अपना चेहरा ढक लिया । 

अवंतिका हैरान होते हुए बोली " आपकी शरारतें दिन ब दिन बढ़ती जा रही है । चलिए नाटक नही जल्दी से उठ जाइए । वैसे भी आपके भैया टाइम पर उठ जाते हैं । हमे उन्हें जगाने की जरूरत नहीं पडती । " ये कहते हुए अवंतिका ने इस बार जबरदस्ती उसे उठाया और उसका हाथ पकड़ वाशरूम की तरफ ले जाते हुए बोली " चलिए जाइए तैयार हो जाइए । " 

" भाभी सा आप बहुत बुरी हो । मैं भैया से आपकी शिकायत कर दूगी । " रीत बडबडाती हुई अधखुली आंखों से वाशरुम के अंदर चली गई । उसकी बातें अवंतिका मुस्कुराते हुए सुन रही थी । उसने जाकर कबर्ड से कपड़े निकाले और बिस्तर पर रखते हुए हुए बोली " लाड़ो मैने आपके कपड़े निकाल कर रख दिऐ है । तैयार होकर नीचे आ जाइएगा मैं जा रही हूं । " ये बोलकर जाने लगी , तो वाशरूम से रीत की आवाज आई । " थैंक्यू भाभी सा एंड आईं लव यू सो मच " रीत के ये कहने पर अवंतिका मुस्कुराते हुए कमरे से बाहर चली गई । 

अवंतिका नीचे आई तो देखा शारदा जी पूजा करके बाहर आ रही थी । अवंतिका उनके पास आकर बोली " मां नाश्ता तैयार हो गया है , लेकिन मीठे में क्या बनाना है ? " 

" जो तुम्हें ठीक लगे वो बना दो बेटा । हां रीत के लिए बादाम दाल का हलुआ बना देना । " शारदा जी ने कहा तो अवंतिका हां में सिर हिलाकर वहां से चली गई । 

रीत भी कुछ देर बाद तैयार होकर नीचे चली आई । अश्वत्थ की नज़र जब उसपर पडी तो वो मुस्कुराते हुए बोला " गुड मॉर्निंग लाडो " 

" गुड मॉर्निंग  बडे भैया " रीत ने उन्हें साइड से हग करते हुए जवाब दिया । इसी बीच अर्जुन भी नीचे चला आया । वो सीढ़ियों से उतरते हुए बोला " थोडा सा प्यार इस गरीब के लिए भी बचा लीजिए आप लोग । " 

" क्यों आपको जलन हो रही है ? " रीत ने पूछा ।

" हां बहुत ज्यादा " अर्जुन ने जब ये कहा तो रीत का ध्यान वहा से गुजर रहे नौकर पर पडा जिसके हाथों में पानी का जग था । रीत ने आगे बढ़कर झटके से उसके हाथों से पानी का जग लिया और अर्जुन पर सारा पानी डालते हुए बोली " अब मिट गई न आपकी सारी जलन । " इतना कहकर वो जोर जोर से हंसने लगी । उसे हसते देख अश्वत्थ भी मुस्कुरा दिया  । वहां किचन के दरवाजे पर खडी अवंतिका भी मुस्कुरा रही थी । वही उनसे थोडी दूरी पर खडी शारदा जी भी मुस्कुरा रही थी । अर्जुन का चेहरा तो देखने लायक था । वो गुस्से से बोला " रीत मैं तुझे छोडूगा नही । " 

रीत उसे जीभ चिढाते हुए बोली " पहले पकड के तो दिखाइए । " वो ये कह ही रही थी कि तभी उसके कानों में किसी की आवाज पडी । उसने दरवाज़े की ओर देखा तो वहां से देवेंद्र जी अभय जी के साथ कुछ बातें करते हुए अंदर की ओर आ रहे थे । उन्हें देखकर रीत की मुस्कुराहट गायब हो गई । वो अश्वत्थ के पीछे जा छिपी । 

अभय जी और देवेंद्र जी की नज़र अर्जुन पर पडी जो पानी से भीगा हुआ था । अभय जी अर्जुन की ओर देखकर बोला " तुम इस तरह भीगे हुए क्यों हो ? कपडे पहनकर ही नहा लिए थे क्या ? " 

" नहीं काका सा वो ....... अर्जुन कह ही रहा था कि तभी उसकी बात बीच में काटते हुए अश्वत्थ बोला " काका सा इसकी तो आदत है मगन होकर चलने की । इसलिए टकरा गया और सारा पानी इसके ऊपर जा गिरा । ....... चलो तुम जाकर अपने कपडे चेंज करो । " ये कहते हुए अश्वत्थ ने उसे जाने का इशारा किया । अर्जुन समझ गया की उसने ऐसा क्यों किया ? अगर अभय जी के सामने वो सच कहता तो उसे बहुत बुरी तरह डांट पडती । उसके उदास होने के बाद मायूसी बाकी सबके चेहरे पर भी छा जाती । अर्जुन बिना कुछ बोले वहां से चला गया । शारदा जी ने उन सबको आवाज देते हुए कहा " आप सब आ जाइए नाश्ता लग चुका है । " 

देवेन्द्र जी और अभय जी नाश्ते की टेबल के पास चले आए । अश्वत्थ रीत की ओर देखते हुए बोला " चलो लाड़ो नाश्ता कर लो । " 

रीत उसका हाथ थामते हुए बोली " थैंक्यू बडे भैया आज आपने मुझे डांट खाने से बचा लिया । " 

" भाई हूं रक्षा का वचन यूं ही नहीं दिया है । अपनी लाडो के लिए मैं हमेशा खडा रहूगा । " अश्वत्थ ने प्यार से उसके गालों को छूते हुए कहा । वो दोनों नाश्ते की टेबल के पास चले आए । अर्जुन भी अपने कपड़े चेंज कर नीचे चला आया । वो जैसे ही अपनी सीट पर आकर बैठा तो रीत ने उसके ओर एक प्लेट खिसकाई जिसपर कैच अप से सॉरी लिखा हुआ था और साथ ही स्माइली फेस बना हुआ था । उसे देखते ही अर्जुन के होंठों पर मुस्कुराहट तैर गई । उसने रीत की ओर देखा तो वो भी मुस्कुरा दी । वो सब नाश्ता कर ही रहे थे कि तभी वहां विधी चली आई । शारदा जी ने उसे देखते हुए कहा " आओ विधी बेटा तुम भी हमारे साथ नाश्ता कर लो । " 

" नही बडी मां मैं नाश्ता करके आई हूं । " विधी ने कहा । 

रीत ने अपना पूरा नाश्ता खत्म भी नही किया और उठते हुए बोली " मेरा हो गया चल अब । " 

" अरे रीत बेटा नाश्ता तो पूरा तो करती जाओ । " शारदा जी ने उसे टोकते हुए कहा तो रीत उनके पास चली आई और उनके गालों पर किस करते हुए बोली " बडी मां मेरा पेट सचमुच भर गया है । बस हम बाग में घूमने जा रहे है जल्दी आ जाएंगे । " इतना कहकर रीत भागते हुए विधी के पास आई और उसका हाथ पकड़ बाहर चली आई । 

" उसकी हरकतों पर सबको हसी आ गई लेकिन अभय जी के चेहरे पर कोई भाव नहीं थे । " 

इधर सबने नाश्ता खत्म किया तो एक नौकर देवेंद्र जी के पास आकर बोला " हुकुम आपसे मिलने बाहर कोई आया है  । उन्होंने अपना नाम प्रमाद सिंह बताया है । " नौकर ने इतना कहा तो अभय जी देवेंद्र जी की ओर देखकर बोले " जमाई सा के आने की कोई भी खबर विनीता ने हमे नही दी फिर वो अचानक यहां कैसे चले आए ? " 

" वो तो उनके आने के बाद ही पता चलेगा । " इतना कहकर योगेंद्र जी नौकर से बोले " उन्हें हॉल में लेकर आओ । " 

" जी हुकुम " इतना कहकर नौकर वहा से चला गया । 

कुछ देर बाद वो अपने साथ प्रमाद जी को लेकर अंदर आया । देवेन्द्र जी और अभय जी वही बैठे हुए थे । प्रमाद जी ने आगे बढ़कर योगेंद्र जी के पांव छुए तो उन्होंने आशिर्वाद देते हुए कहा " खुश रहिए जमाई सा । " विनीत जी अभय जी के पांव छूने लगे तो अभय जी उन्हें रोककर गले से लगाते हुए बोले " हम आपसे बड़े नही है इसलिए हमारे पांव मत छुइए गले लगिए । " 

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अश्वत्थ ने रीत को डांट खाने से बचा लिया । वही रीत ने अर्जुन से अपनी गलती की मॉफी भी मांग ली । क्यों आए है प्रमाद जी आखिर यहां ? ये हम आगे जानेंगे तब तक के लिए पढ़ते रहिए मेरी नोवल

सागर से गहरा इश्क पियाजी

( अंजलि झा )

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रचनाएँ
Sagar se gehra Ishq piyaji
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