रात का वक्त , रीत की हवेली
रीत इस वक्त हवेली के पीछे वाले हिस्से में तालाब के पास मौजूद थी । वो तालाब किनारे लेटी एक टक पानी में निहारें जा रही थी । उसका एक हाथ पानी के अंदर था । धिया उसके आस पास ही तैर रही थी । जैसे ही वो रीत की उंगलियों को छूकर गुजरी रीत अपने ख्यालों से बाहर आई । उसने धीया की ओर देखकर कहा " तुझे पता है तीन दिन बाद मुझे लड़के वाले देखने आ रहे है । वो सिर्फ मुझे देखने नहीं आ रहे । वो मुझे तुझसे दूर कर देंगे धीया । मेरा दिल बहुत घबरा रहा है । सब उलटा मुझे ही समझा रहे है , लेकिन मेरी बात कोई नहीं समझ रहा । धीया तूं जाकर समझा न घरवालों को कि वो मेरे लिए रिश्ता न देखे । धीया मुझे सिंदूर और मंगलसूत्र का बंधन नही चाहिए । बहुत बडी जिम्मेदारियां है ये सब । नही संभाल पाऊगी इन्हें । धिया मुझे पढना है । प्लीज धिया तूं जाकर पापा और बडे पापा को समझा न ....... प्लीज धिया मेरी इतनी सी बात मान ले ...... ! " रीत बच्चों की तरह उससे बाते कर रही थी । रीत ने उसे अपने हाथों मे उठाया और आगे बोली " चल अब से तुझे ज्यादा परेशान नही करूंगी बस थोडा सा ही करूगी । प्लीज पापा और बडे पापा से बात कर ले । " रीत उससे बात करने में इतना खो गई थी , कि अब वो उसे इमेजिन करने लगी थी । धिया अपने सिर पर हाथ रखकर बोली " ओफ ओ बेवकूफ रीत तु मुझसे रिक्वेस्ट कर रही है । रीत प्रताप सिंह रिक्वेस्ट कर रही है । कितनी गलत बात है ये । तेरे सामने तो अच्छे अच्छे घुटने टेक देते है और तूं यहां डरपोक की तरह चली आई मुझसे रिक्वेस्ट करने । " रीत बस आंखें बडी किए धिया की बातें सुन रही थी ।
उधर अश्वत्थ देवेंद्र जी और अभय जी के पास आकर बोला " पापा ये हम क्या सुन रहे है ? आप लोगो ने लाड़ो को देखने लड़के वालों को बुलाया है , लेकिन अभी इन सबकी जरूरत क्या है ? "
" अश्वत्थ किस चीज की जरूरत कब है ये हमे अच्छे से मालूम है और वैसे भी हमने अभी लडके वालों को सिर्फ आने के लिए कहा है । उनके आते ही हम रीत को उनके साथ विदा थोडी न कर देंगे । परसों लडके वाले आ रहे हैं आप भी अच्छे से देख लीजिएगा । उसके बाद ही कोई फैसला लेंगे । " देवेन्द्र जी ने कहा ।
अभय जी ने भी अश्वत्थ की ओर देखकर कहा " हम जानते हैं आपको अपनी लाड़ो की बहुत परवाह है । लेकिन हम भी उसके दुश्मन नही । हमे लडके की तस्वीर पसंद आई इसलिए हमने उन्हें आने के लिए कहा । " ये कहते हुए अभय जी ने रूहान की तस्वीर उनकी ओर बढ़ाते हुए आगे कहा " एक बार आप भी तस्वीर देख लीजिए । परसों वो आ रहे हैं तो मुलाकात भी हो जाएगी । "
अश्वत्थ ने लिफाफा खोला और रूहान की तस्वीर देखने लगा । उसने तस्वीर वापस रखी और बिना कुछ बोले वहां से चला गया । अश्वत्थ ऊपर की ओर जा ही रहा था कि तभी उसने अवंतिका को रीत के कमरे से बाहर निकलते देखा । उसके हाथ में खाने की प्लेट वैसे की वैसे पडी थी । अश्वत्थ ने उसके पास आकर कहा " क्या हुआ लाड़ो ने खाना नही खाया ? "
" वो अंदर नही है , लगता है तालाब के पास अपनी धिया से बाते कर रही होंगी । " अवंतिका ने कहा ।
अश्वत्थ कुछ सोचते हुए बोला " ठीक है मैं जाकर देखता हूं । तुम किसी के हाथों थोडी देर बाद खाना भिजवा देना । " अवंतिका ने हां में सिर हिलाया और वहां से चली गई । अश्वत्थ रीत के पास चला आया ।
उधर रीत अब भी धिया की बातों में खोई हुई थी । उसने अपना सिर झटकते हुए खुद से कहा " धिया मुझसे बाते कर रही है । " ये सोचते हुए उसने फिर से धिया की ओर देखा तो वो चुपचाप अपना सिर पीठ मे छुपाए बैठी हुई थी । रीत ने उसे वापस पानी में रखते हुए कहा " लगता है धिया मैं पागल होने वाली हूं । तूने सही कहा मुझे टेंशन लेना नही देना चाहिए । "
रीत ......... अश्वत्थ की आवाज सुनकर रीत ने उसकी ओर देखा । " जी बडे भैया " रीत ने कहा तो अश्वत्थ उसके पास चला आया और उसके बगल में बैठते हुए बोला " आप यहां क्या कर रही है लाड़ो । आपने खाना क्यों नहीं खाया अब तक ? "
" हमे भूख नही थी भैया । " रीत ने सिर झुकाकर कहा ।
" भूख नही थी या आप पापा और बडे पापा की बातों से परेशान है । " अश्वत्थ ने पूछा तो रीत ने न में सिर हिला दिया और कुछ न बोली । अश्वत्थ उसका चेहरा ऊपर कर बोला " हमारी लाड़ो का ये मुरझाया हुआ चेहरा हमे बिल्कुल पसंद नहीं । आने दो जिसे आना है ये बात सच है कि आपकों देखकर कोई भी न नही कह सकता , लेकिन हम उसी के हाथों में हमारी लाड़ो का हाथ देंगे जो उसे संभालने की ताकत रखता हो । " अश्वत्थ ये कह ही रहा था कि तभी वहा एक नौकर अपने हाथों मे खाने की प्लेट लेकर आया । अश्वत्थ ने उसके हाथों से प्लेट लेकर उसे जाने का इशारा किया । अश्वत्थ ने निवाला रीत की ओर बढाया तो उसने न में सिर हिला दिया ।
" लाड़ो अपने बड़े भैया की बात भी नहीं मानोगी । चलो खा लो कुछ । " अश्वत्थ के जिद करने पर रीत और इंकार नही कर पाई । अश्वत्थ ने उसे खाना खिलाया और पानी पिलाते हुए बोला " रात बहुत हो चुकी है । अब आप जाकर सो जाओ । "
" बड़े भैया हम यहां कुछ देर और रूकना है । " रीत ने कहा तो अश्वत्थ उठते हुए बोला " ठीक है लेकिन थोडी देर का मतलब थोडी देर । उसके बाद कमरे में चली जाइएगा । " इतना कहकर अश्वत्थ वहां से उठकर जाने लगा । कुछ कदम चलने के बाद वो रूका और पीछे पलटकर बोला " क्या आपको लड़के की तस्वीर देखनी है ? "
उसके इस सवाल पर रीत हैरानी से उसकी ओर देखने लगी । उसने तुरन्त नजरें झुका ली और न में सिर हिला दिया । अश्वत्थ हलकी सी मुस्कुराहट के साथ बोला " आपके पास ही रखी है । अगर देखना चाहो तो देख लीजिएगा । " इतना कहकर अश्वत्थ वहां से चला गया ।
उसके जाने के बाद रीत ने अपनी पलके उठाई और उस लिफाफे को देखने लगी । उसने लिफाफा उठाया और उसे देखते हुए बोली " ये क्या कर रही है रीत उस इंसान की तस्वीर देखेगी , जो तेरे सामने न होकर के भी तुझे दर्द और आंसू दे गया । नही रीत इससे कभी नहीं मिलना । " इतना कहकर रीत ने बिना तस्वीर देखे उसे पानी में फेंक दिया और उठते हुए बोली " हमे उस इंसान से नफ़रत है जो हमें हमारे परिवार से दूर करे । " इतना कहकर रीत वहां से चली गई । वो तस्वीर अब भी पानी में तैर रही थी ।
ज़रूरी तो नही नसीब में मेरे सब कुछ लिखा हो,
इश्क़, प्यार न सही नफ़रत तो हमे भरपूर मिला है ।
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अगला दिन , रीत का कमरा
रीत अपने कमरे में बिस्तर पर बैठी डायरी लिख रही थी । इसी बीच उसका कमरे का दरवाजा खुला धडडडाम ........ रीत ने चौंकते हुए दरवाज़े की ओर देखा तो विधी दरवाजे के इर्द गिर्द अपने दोनों हाथ रखे खडी थी । रीत अपने सीने पर हाथ रखते हुए बोली " विधी मेरे पास एक ही दिल हैं । तेरी इन हरकतों की वजह से कही मुझे हार्ट अटैक न आ जाए । "
" क्या करू यार आज कल झटके पर झटके मिल रहे है तभी मैंने सोचा थोडे बहुत झटके तुझे भी दे दूं । " ये कहते हुए विधी अंदर चली आई ।
" किस झटके की बात कर रही है तूं । " रीत ने पूछा ।
विधी बिस्तर पर उसके पास बैठते हुए बोली " मामाजी ने मेरे लिए एक लडका देखा है वो कल मुझे देखने आ रहा है । "
" ये झटका तो मुझे पहले ही लग चुका है । कल कोई मुझे भी देखने आ रहा है । " रीत ने मायूस होकर कहा ।
" मतलब कल हम दोनों को ही कोई न कोई देखने आ रहा है । वैसे रीत अगर वो लड़का तुझे पसंद आया तो क्या तूं शादी कर लेगी । " विधी के ये कहने पर रीत झट से उठते हुए बोली " बिल्कुल भी नही ....... मैंने कहा न मुझे शादी वादी नही करनी । पहली बात तो मुझे लडका पसंद नही आएगा और आएगा भी न तब भी मैं उसे न कह दूगी । "
" अगर उसने तुझे पसंद कर लिया तो ....... विधी कह ही रही थी कि तभी रीत उससे बोली " ये संभव ही नही होगा । लडका तो मुझे तब पसंद करेगा न जब वो मुझे देखेगा । "
" मतलब तेरा कुछ प्लान है वैसे क्या करने वाली है तूं ? " विधी ने पूछा ।
" वैसे तो अभी कुछ सोचा नही है लेकिन बहुत जल्द सोच लूगी । अब से मेंरा मिशन होगा " शादी कैंसिलेशन " । रीत ने इतना कहा ही था कि तभी उसे विधी की हंसने की आवाजें सुनाई दी । उसने विधी की ओर देखकर कहा " तूं ऐसे हंस क्यों रही है ? "
विधी बडी मुश्किल से अपनी हंसी रोकते हुए बोली " तुझे लगता है लडका इतना बेवकूफ होगा । "
" नही होगा तो मैं उसे बना दूगी । वैसे भी वो रीत प्रताप सिंह को जानता नही । बस तू कल का इंतजार कर । मैं जो करूगी न उसके बाद तो वो मुझे सपनो में भी याद नही करेंगे । " रीत कह ही रही थी कि तभी विधी उसकी बात बीच में काटते हुए बोली " अच्छा ठीक है मेरी नौटंकी । उसके साथ जो करना है कर लियो लेकिन तुझे अकेले ही करना पडेगा क्योंकि कल में हवेली नही आऊगी । " उसके ये कहते ही रीत उसके पास चली आई और उसका हाथ थामकर बोली " लेकिन विधी मैं सब कुछ अकेले कैसे कर पाऊगी ? अच्छा एक काम कर तू जाते वक्त माधव से मिलते जाना उससे कहना की कल वो पूरा दिन मेरे साथ रहे । "
" अच्छा ठीक है कह दूगी । वैसे तूं अभी कर क्या रही थी । कोई नई कविता लिखी है तूने ....... विधी ने पूछा ।
" हां कविता लिख तो रही थी लेकिन अभी पूरी नहीं हुई । " रीत ने जवाब दिया ।
" अच्छा ठीक है कोई पुरानी सुना दे । " विधी के ये कहने पर रीत बिस्तर पर आकर बैठ गई । उसने अपनी डायरी उठाई और कुछ पन्ने पलटकर एक कविता पर उसकी नज़र पडी । उसने हलकी मुस्कुराहट के साथ उसे पढना शुरू किया ...........
तू इश्क़ समंदर ,डूबी मैं जिसके अंदर ,
मुझे तैर कर पार जाना नहीं ,
घुलना है तुझमे, मिलना है तुझमे ,
मुझे तेरा होकर रहना है ,
यहीं बहना है तेरे साथ मुझे ,
डूब कर तुझमे उभरना है मुझे ,
तुझ सा ही हो जाना ,
जाना नहीं मुझे ओर कहीं ,
मुझे तेरा होकर रहना है यहीं ,
अंदर तक भीगा दे ,
मुझे इश्क़ ही इश्क़ बना दे ,
मुझे मेरा ओर कोई ठिकाना नहीं ,
मुझे तुझमे ठहर जाना है ,
कहीं मुझे तेरा होकर रहना है यहीं ......
कविता तो खत्म हो चुकी थी लेकिन रीत अब लफ़्ज़ों में खोई हुई थी । विधी की तालियो की आवाज से उसकी तंद्रा टूटी ।
" वाओ गीत ....... कविता सचमुच बहुत प्यारी है बिल्कुल तेरी तरह । " विधी ने कहा तो रीत मुस्कुराते हुए बोली " अब बस भी कर मेरी झूठी तारीफ करना । "
" इसे झूठी तारीफ नह कहते । वैसे एक बात बता तूं तो कहती है तूं कभी किसी से प्यार नही करेगी फिर तूने प्यार के एहसासों से भरी कविता कैसे लिख डाली ? "
" किसने कहा की प्यार के एहसासों से भरी कविता हम तभी लिख सकते है जब हम किसी से प्यार करे । और अगर ऐसा है तो हर इंसान किसी न किसी से प्यार करता है । कोई अपने परिवार से , तो कोई अपनी पसंदीदा चीजो से । अब जरुरी तो नही प्यार सिर्फ लडका और लडकी के बीच ही हो । इंसान और जानवरों मे भी प्रेम होता है । "
" बिल्कुल तेरी तरह जैसे तूं धिया से करती है । " विधी ने कहा तो रीत ने मुस्कुराते हुए हां में सिर हिला दिया । दोनों काफी देर तक यूं ही हंसी मज़ाक करती रही ।
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तो आपको क्या लगता है रीत का मिशन पूरा होगा या नही । हम तो बस अंदाजा लगा सकते हैं । बाकी देवी मां ही जाने । आप जानने के लिए देवी मां का इंतजार कीजिए ।
सागर से गहरा इश्क पियाजी
( अंजलि झा )
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