माधव चिढते हुए बोला " तुम लोगो को मेरा मजाक उडाने मे बहुत मजा आ रहा है न , तो ठीक है उडाओ मै चला अपने घर । " इतना कहकर माधव जाने के लिए आगे बढ गया । उसे जाता देख रीत और विधी दोनों उसके पास आई और उसकी बाहें पकड बोली " इतनी सी बात के लिए कोई नाराज़ होता है क्या ? अरे हम तो बस मज़ाक कर रहे थे । चलो अब गुस्सा थूक दो हम चलकर आम तोडते है । " रीत ने कहा तो माधव उसकी ओर देखकर बोला " अच्छा तो मतलब आम तुडवाने के लिए मुझे गुस्सा थूकने के लिए कहा जा रहा है । "
विधी उसका हाथ छोड उंगली दिखाते हुए बोली " देखो अब ज्यादा नाटक मत करो । चुपचाप से आम तोडते हो या नही । "
' अगर नही तोडा तो ...... " माधव ने पूछा तो विधी बोली " तो हम खुद तोड लेंगे । चल रीत ........ इतना कहकर वो रीत का हाथ पकड़ अपने साथ ले जाने लगी ।
" पेड पर चढोगी वो भी इन कपडो में " इतना कहकर माधव जोर जोर से हंसने लगा । रीत विधि की ओर देखकर बोली " बात तो वो सही कह रहा है । "
" अब तो एक ही रास्ता है रीत " विधी ने कहा और फिर दोनों ने पेड के पास पडी लकड़ियां उठाई और माधव को मारने के लिए उसकी ओर बढ़ने लगी । " माधव भी उन्हें अपनी ओर आता देख डर के मारे वहां से भागने लगा । वो बचने के लिए पेड पर चढ गया ।
" देखो देखो ........ तुम दोनों ये ग़लत कर रही हो । " माधव ने कहा तो रीत बोली " क्या करें सही वर्ड हमारी डिक्शनरी में जो नही है । "
" चलो अब पेड पर चढ ही गए हो तो आम भी तोड लो । " विधी ने थोडा ऊंचे स्वर में कहा ।
" माधव अपने आप से बोला " दोनों की दोनों मुसीबत है हमेशा मुझे फंसाती रहती है । " इतना कहकर माधव थोडा और ऊपर चढने लगा । उसने पेड की डाल से कच्चे आम तोडे और उन दोनों की ओर फेंकना शुरू किया । चार पांच आम तोड़ने के बाद रीत ने कहा " बस बस इतना थोडी न खा पाएंगे । बाकी का बाद के लिए रहने दो । "
माधव भी पेड से उतरकर नीचे चला आया । वो उन दोनों के पास आया तो देखा वो दोनों सबसे बेखबर आम खाने में लगी हुई थी । माधव उन दोनों से बोला " भुक्कड़ कही की कम से कम मुझसे पूछ तो वो मैं खाऊगा या नही । "
" तुम्हें खाना है तो पेड से जाकर तोड लो हम नही देने वाले । " इतना कहकर रीत वापस से खाने मे लग गई ।
कुछ देर बाद वो तीनों वहां लगे झूलों के पास चली आई । रीत झूले की ओर बढ़ने लगी तो माधव ने टोकते हुए कहा " रीत अभी उसपर मत बैठना वो सही से बंधा नही है । गिर जाओगी तुम । "
रीत को लगा वो मज़ाक कर रहा है इसलिए वो उसकी बातों को इग्नोर कर झूले पर बैठने लगी । इधर विधी दूसरे झूले पर बैठने की कोशिश कर रही थी जो थोडा ऊचा था । " माधव मेरी मदद करो मैं इसपर नही बैठ पा रही हूं । " विधि ने कहा तो माधव उसकी मदद करने के लिए आगे बढ गया , लेकिन उसका ध्यान रीत पर ही था कि कही वो गिर न जाए ।
लेकिन यहां रीत तो मजे से झूल रही थी । कुछ पल बाद जैसा माधव ने कहा वो रस्सी ढीली थी । उसका एक सिरा पेड की डाल से टूट गया और रीत धड़ाम ..... से जमीन पर जा गिरी ।
' रीत ' ......... रीत का नाम पुकारते हुए विधी और माधव दोनों उसके पास दौडे चले आए । रीत तूं ठीक तो है न । " ये कहते हुए विधी उसे उठाने में मदद करने लगी । माधव की नज़र उसके हाथों पर गई तो वो चौंकते हुए बोला " रीत तुम्हें तो चोट लग गई है । "
" अरे कुछ नहीं हुआ बस हल्की सी ख़रोंच है तुम लोग बेकार ही परेशान हो रहे हो । " इतना कहकर रीत ने अपना हाथ छुडाया और कपड़ों पर से धूल झाड़ने लगी । उसके होंठों की मुस्कुराहट ने विधी और माधव की बैचेनी को कम कर दिया । वो तीनों शाम तक बाग में घूमते रहे । उनका मस्ती मज़क यूं ही चलता रहा । शाम होते ही रीत अपनी हवेली चली गई और विधी और माधव अपने अपने घर ।
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रात का वक्त , रूहान की हवेली
इस वक्त सभी घरवाले हॉल में बैठे हुए थे । सुबह की गई रूहान की हरकतों की वजह से सबका चेहरा उतरा हुआ था । रूहान अपने कमरे से बाहर आया । उसने वहां से गुजर रहे नौकर से पूछा " सबने खाना खाया । "
" नही मालिक हम पूछने गए थे लेकिन सब इनकार कर दिए । " नौकर के इतना कहते ही रूहान ने उसे जाने के लिए कहा । वो अपने शर्ट की बाज़ू फोल्ड करता हुआ सीढ़ियों से नीचे चला आया । उसने सबके बीच आकर कहा " आप लोगों ने अब तक खाना क्यों नहीं खाया ? " ये कहते हुए रूहान देविका जी के पास बैठा और उनका हाथ अपने हाथों में लेकर बोला " मां सा हमें माफ़ कर दीजिए । आज हमने जो हरक़त की है उसके लिए हम शर्मिंदा है । आगे से हम इस बात का ख्याल रखेंगे । आप चाहती है न मां सा हम शादी कर ले । " रूहान के इतना कहते ही देवीका जी उसकी ओर देखने लगी । रूहान अपनी बात जारी रखते हुए आगे बोला " हम शादी के लिए तैयार है मां सा । " रूहान के इतना कहते ही सबके होंठों पर मुस्कुराहट तैर गई । देविका जी उसके गालों को छूते हुए बोली " क्या आप सच कह रहे है रूहान ? "
रूहान ने हां मैं सिर हिलाया तो देविका जी मुस्कुराते हुए बोली " आप नही जानते आपने हमे कितनी बडी खुशी दी है । हम आज से ही आपके लिए लडकी देखना शुरू करते है । देखिएगा आपके लिए ऐसी दुल्हन लेकर आएंगे जो पूरे राजस्थान में ढूंढने से नही मिलेगी । "
" उसकी कोई जरूरत नही है मां सा । ये काम आप काका सा पर छोड दीजिए । वो देख लेंगे आप बस अपने बेटे पर ध्यान दीजिए और आंसू बहाना बंद कीजिए । " इतना कहकर रूहान ने उनके बहते हुए आंसूओं को पोंछा ।
" जे तो खुशी की बात से छोरा ब्याह खातिर मान गयो । जे खुशी में मैं कल देवी के मंदिर मे गरीबों को कपडे बाटूगी । " बुआ सा ने कहा तो सब उनकी बात पर मुस्कुरा दिए । शालिनी जी ने कहा " खाना लग चुका है आप सब चलिए ।
" मां सा भाई सा ने आज खुशी की खबर सुनाई है इसलिए मीठा तो बनता है । " नक्षत्रा ने कहा तो रूद्र बोला " मां सा अगर गाजर का हलुआ मिल जाए तो मजा आ जाएगा । "
" पहले आप लोग खाने के लिए तो चलिए । सबकी पसंद का मीठा बनवाया है । " शालिनी जी ये कहकर आगे बढ गई । सब लोग डायनिंग टेबल पर चले आए । सब यहा मौजूद थे लेकिन श्रवण नही था । रूहान ने रूद्र से पूछा " श्रवण कहा है रूद्र ? "
" भाई सा उन्हें नींद आ रही थी इसलिए वो आज जल्दी सोने चले गए । " रूद्र ने जवाब दिया ।
खाना खाने के बाद विजय जी और रूहान गार्डन में चले आए जहा राणा जी उनका इंतजार कर रहे थे । उन दोनों को देखते ही राणा जी ने सिर झुकाते हुए कहा " खंभा खड़ी हुकुम सा ........ खंभा खड़ी बडे साहब ......
विजय जी और रूहान वहां रखे सोफे पर आकर बैठ गए । उनके बैठते ही विजय जी का इशारा पाकर राणा जी भी सामने वाले सोफे पर आकर बैठ गए ।
" कहिए राणा जी क्या खबर लाए है आप ? " विजय जी ने पूछा ।
" हुकुम सा देवेंद्र प्रताप सिंह अपने भाई अभय प्रताप सिंह और पूरे परिवार के साथ हैदराबाद के विजयवाड़ा शहर में रह रहे हैं । पूरे अठारह वर्ष हो गए उन्हें राजस्थान छोडे हुए । अभय जी की अठारह साल की एक बेटी भी है ' रीत प्रताप सिंह ' । अभी अभी उनकी स्कूली शिक्षा समाप्त हुई है । ये उनकी तस्वीर है । " इतना कहकर राणा जी ने हुकुम सा के आगे एक लिफाफा रखा । हुकुम सा ने उस लिफाफे के उठाया और उसमें से रीत की तस्वीर निकालकर देखी । रीत को देखकर वो दंग रह गए अगले ही पल उनके होंठों पर मुस्कुराहट तैर गई । उन्होंने तस्वीर वापस से लिफाफे में डालकर टेबल पर रखी और राणा जी से बोला " हमने जो अहम कार्य आपको सौपा था वो हुआ कि नही । "
" जी हुकुम सा दरअसल देवेंद्र जी की कोई दूर की बहन और जीजा है । वंदना और विनीत सिंह ........ नीयत में दोनों के ही खोट है । रूपयों के आगे वो अपनों का गला दबाने से भी पीछे नहीं हटेंगे । हमारे काम के लिए वो दोनों सही रहेंगे । हमने उन्हें पैसे दिए और वो दोनों हमारे काम के लिए राजी हो गए । वो हमारे बडे साहब के रिश्ते की बात उनके पास लेकर जाएंगे । उन्हें राजी करने की जिम्मेदारी अब उन पर है । "
" ये तो बहुत अच्छी खबर है राणा जी । हमें खुशी है आपने समय से पूर्व हमारे कार्य को पूरा किया । " विजय जी ने कहा तो राणा जी बोला " हम आपके हर आदेश का पालन समय से पूर्व करने का प्रयत्न करेंगे हुकुम सा । अब हम इजाजत चाहते है । " उनके ये कहते ही विजय जी ने उन्हें जाने का इशारा किया । उनके जाते ही विजय जी उठते हुए बोले " अब आपका काम बहुत जल्द हो जाएगा रूहान । एक बार आप भी तस्वीर देख लीजिए । " इतना कहकर विजय जी वह से चले गए ।
रूहान कुछ देर यूं ही उस तस्वीर को निहारता रहा उसने लिफाफा उठाया और बिना उसे खोले घूरते हुए बोला " नफरत है रीत प्रताप सिंह मुझे तुमसे क्योंकि तुम्हारे अन्दर तुम्हारे हत्यारे पिता का खून है । जितने दिन खुली हवा में सांस लेना चाहती हो ले लो क्योंकि बहुत जल्द उन पर कब्जा करने के लिए मैं आ रहा हूं । खून के आंसू तुम भी रोओगी और तुम्हारा परिवार भी । इस वक्त रूहान सिंह की तपिश तुम तक पहुंचे या न पहुंचे लेकिन बहुत जल्द तुम उसके क्रोध की अग्नि में जलने वाली हो । " इतना कहकर रूहान उठा और हवेली के अंदर चला आया ।
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रात का वक्त , रीत की हवेली
रीत शाम होते ही घर लौट चुकी थी । काफी देर तक वो बाहर गार्डन में ही बैठी रही और जब महल के अंदर जाने लगी तो अपने दुपट्टे से उसने हाथो को ढक लिया ताकि किसी को उसके ज़ख्म न दिखे ।
रीत अंदर आते हुए अपने मन में बोली " जल्दी से अपने कमरे में चली जा रीत । अगर किसी ने ये चैट देख ली तो तुझे फिर से डांट पडेगी । " रीत ये सोचते हुए अपने कमरे की ओर बढ ही रही थी की तभी सामने से आती हुई उसे शारदा जी दिखी जो अंवतिका के साथ चली आ रही थी ।
" बाप रे अब तेरा क्या होगा रीत । " ये सोचते हुए रीत पीछे की ओर पलटी और जैसे ही कदम बढाने लगी की तभी शारदा जी ने उसू टोकते हुए कहा " रीत रूको बेटा " । उनकी आवाज़ सुनकर रीत अपने कदम आगे नही बढा पाई । उसने अपने मन में कहा " देवी मां लगता है मुझे सताने में आपको बहुत मजा आता है । अब फंसा दिया न आपने मुझे । " ये सोचते हुए रीत ने खुद को नार्मल किया और पलटकर बोली " जी बडी मां । "
" कहां थी बेटा तूं ? "
" हम तो अपने दोस्तों के साथ बाग में थे बडी मां । " रीत ने कहा ।
" मतलब फिर से ये लोग कच्चे आम खाने गए थे । " अवंतिका ने कहा तो रीत बोली " चिंता मत कीजिए भाभी सा मैं आपके लिए भी लेकर आई हूं । " ये कहते हुए रीत ने अपने दोनों हाथ आगे कर दिए । किसी छोटे मासूम बच्चे की तरह उसने अपने दोनों हाथों में एक एक आम पकडा हुआ था । इसी बीच शारदा जी की नजर रीत के हाथों पर लगी चोट पर गई ।
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ये कैसी दुश्मनी है जो रूहान रीत से निभाने वाला है । अभय प्रताप सिंह से दुश्मनी की वजह क्या है ? क्यों वो बाप के गलती की सजा बेटी को देना चाहता है ?
क्या शारदा जी अब रीत को डाटेंगी ? ये हम आगे जानेंगे तब तक के लिए पढते रहिए मेरी नोवल
सागर से गहरा इश्क पियाजी
( अंजलि झा )
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