रीत सडक पर चलते हुए खुद से बोली " ये मैं कहा चली आई । मुझे तो यहां का रास्ता भी नही पता । न ही फोन है जिससे मदद के लिए बड़े भैया को कॉल करू । वो लोग जरूर मुझे लेकर परेशान हो रहे होंगे । " रीत ने अपनी घडी की ओर देखा दोपहर के दो बज रहे थे । उसे मॉल से निकले हुए काफी देर हो गई थी । जिससे उसके चेहरे पर घबराहट भी साफ़ झलकने लगी थी । वो अब चलने की बजाय दौड़ने लगी थी । उसे ध्यान ही नही रहा और सामने से आ रही गाडी से वो टकराते हुए बची । वो गाडी काफी स्पीड में थी , लेकिन वक्त रहते ड्राइवर ने ब्रेक लगा दी । रीत गाडी से हल्का टकरा चुकी थी जिससे उसका सिर गाडी की बोनट पर जा लगा । हालांकि कोई हताहत तो नहीं हुआ लेकिन गाडी के अंदर बैठा शख्स क्रोधित जरूर हो गया ।
वही घबराहट की वजह से रीत ने अपनी आंखें बंद कर ली थी । उसके सारे बाल इस वक्त उसके चेहरे को ढके हुए थे । उसने धीरे से अपनी आंखें खोली और हल्का चेहरा उठाया तो उसकी नजर गाडी में बैठे शख्स पर गई जिसे देखकर रीत के होश उड गए । डर से उसके हाथ पांव कांपने लगे थे । उसने संभालकर उठते हुए हैरानी से कहा ' पापा ' ........
जी हां गाडी में बैठा शख्स और कोई नहीं बल्कि अभय प्रताप सिंह थे । उनकी गाड़ी के पीछे दो और गाड़ियां रूकी हुई थी , जिसमें उनके आदमी बैठे हुए थे । रीत को ऐसे यहां अकेले देखकर वो भी हैरान हो गए , लेकिन उनकी हैरानी को गुस्से में बदलते हुए ज्यादा वक्त नही लगा । वो अपनी गाडी से बाहर आए और रीत के आस पास देखने लगे । रीत इस वक्त नजरें झुकाए खडी थी ।
अभय जी ने कुछ नहीं कहा और दूसरी साइड आकर गाडी का दरवाजा खोलकर खडे हो गए । दरवाजा खुलने की आवाज जब रीत ने सुनी तो हल्का सा अपना चेहरा उठाया । उसे समझते देर नही लगी और बिना कुछ बोले वो धीमे कदमों के साथ गाडी में आकर बैठ गई । उसकी बैठते ही अभय जी दूसरी तरफ से आकर गाड़ी में बैठ गए । उनके बैठते ही ड्राइवर ने गाडी स्टार्ट कर दी । गाडी में इस वक्त खामाशी छाई हुई थी । अभय जी बिल्कुल शांत लहजे में बैठे सामने की ओर देख रहे थे । वही रीत गाडी में चुपचाप बैठी खिडकी से बाहर की ओर देख रही थी ।
उनके हवेली पहुंचते ही ड्राइवर ने निकलकर अभय जी की साइड का डोर खोला , वही दूसरे आदमी ने आकर रीत की तरफ का दरवाजा खोला । रतन जी की नज़र जब उनपर पडी , तो वो हैरानी से अपने मन में बोला " राजकुमारी तो बडे साहब के साथ गई थी लेकिन वो छोटे हुकुम के साथ कैसे आई ? "
अभय जी ने बिना कुछ कहे रीत का हाथ पकडा और उसे खींचते हुए महल के अंदर ले जाने लगा ;। उनकी पकड इतनी मजबूत थी की रीत के हाथों में दर्द होने लगा था , लेकिन वो कुछ न बोली सिवाय उसके आंसूओं के जो पलको पर ठहरे बह जाने की इजाजत मांग रहे थे । अभय जी उसे लेकर हवेली के अंदर चले आए और झटके से उसे आगे की ओर खींचा जिससे रीत अपने कदम नही संभाल पाई और जमीन पर जा गिरी । देवेन्द्र जी हॉल में बैठे मुंशी जी से कुछ बात कर रहे थे । ये सब देखकर हैरानी से उनकी भी आंखें बडी हो गई । वही दूसरी तरफ शारदा जी और अवंतिका ने रीत को गिरते देखा तो उसे संभालने के लिए भागते हुए उसके पास चली आई ।
अभय जी का गुस्सा अभी भी शांत नहीं हुआ था । उन्होंने रीत को मारने के लिए अपना हाथ उठाया ही था कि तभी देवेंद्र जी उठते हुए तेज आवाज में बोले " रूक जाओ अभय ....... "
वही रीत ने डर के मारे अपने दोनों हाथों को आगे कर अपना चेहरा ढक लिया था । शारदा जी अवंतिका ने उसे आकर संभाला । रीत अब रोने लगी थी । शारदा जी ने अभय जी की ओर देखकर कहा " ये क्या तरिका हुआ देवर जी ....... ? रीत के साथ ये सब करने का क्या मतलब ? "
देवेन्द्र जी भी मुंशी जी के साथ उन सबके पास चले आए थे । उन्होंने अभय जी की ओर देखकर कहा " ये सब क्या है अभय ? "
" इस लडकी से पुछिए भाई सा ये सड़क पर अकेली क्या कर रही थी । इसके साथ हमारे एक भी आदमी नही था अगर कुछ ग़लत हो जाता तो ........ हमारी गाडी के आगे आते आते बची है ये । " ये सब कहते हुए अभय जी गुस्से से रीत को घूरे जा रहे थे । देवेंद्र जी ने रीत की ओर देखकर थोड़ा सख्त लहजे में कहा " रीत ये हम क्या सुन रहे है ? हमने आपको अश्वत्थ और अर्जुन के साथ भेजा था न फिर आप बीच सडक पर अकेली क्या कर रही थी ? कैसे पहुंची आप वहां तक ? "
रीत बहुत ज्यादा डर गई थी । उसकी सिसकियां बंद होने का नाम नही ले रही थी । शारदा जी ने देवेंद्र जी की ओर देखकर कहा " वो डर गई है बेचारी आप थोडा शांति से पूछिए उससे । "
देवेन्द्र जी उनकी बातों को नज़र अंदाज़ कर फिर से अपना सवाल दोहराते हुए बोले " रीत हम कुछ पूछ रहे हैं आपसे " ।
" ये ऐसे नही मानेगी भाई सा । " इतना कहकर अभय जी रीत की ओर बढ़ने लगे तो शारदा जी ने अपना हाथ बढ़ाकर उन्हें रोकते हुए कहा " रूक जाइए देवरजी " ।
रीत डर के मारे शारदा जी के सीने से लग गई । वो और अवंतिका उसे संभाले ज़मीन पर ही बैठे हुए थे । शारदा जी रीत का चेहरा अपने हाथों में लेकर प्यार से बोली " बेटा जवाव दे तूं अकेली क्या कर रही थी वहां पर ? "
रीत रोते हुए उनसे बोली" आइ एम सॉरी बडी मां , मैं सबको बिना बताए मॉल से बाहर चली आई । मैं बस बाहर घूमना चाहती थी , लेकिन रास्ता भटक जाने की वजह से मै वापस मॉल नहीं पहुंच पाई । " इतना कहकर रीत और जोर से रोने लगी ।
" इसलिए हम इसे ........ अभय जी कह ही रहे थे कि तभी देवेंद्र जी ने उसे चुप होने का इशारा किया । शारदा जी ने अवंतिका की ओर देखकर कहा " बेटा तुम रीत को उसके कमरे में लेकर जाओ । " अवंतिका ने हां में सिर हिलाया । उन्होंने रीत को उठाया । रीत सबसे अपना हाथ छुड़ाकर भागते हुए सीढ़ियां चढ़ने लगी । उसके आंसू थम नही रहे थे वो भागते हुए अपने कमरे में पहुंची ।
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वहां दूसरी तरफ मॉल में अश्वत्थ , अर्जुन और विधी रीत को तलाश रहे थे तभी अश्वत्थ ने आकर उन दोनों से कहा " हमें जल्द से जल्द हवेली पहुंचना होगा । अभी रतन काका का फोन आया था उन्होंने बताया है कि रीत हवेली में है । "
" लेकिन वो वहां कैसे पहुंची भैया ? " अर्जुन ने चौंकते हुए पूछा ।
" दरअसल वो काका सा के साथ हवेली पहुंची है । अब उनके साथ हवेली कैसे पहुंची है । ये तो वहां जाने के बाद ही पता चलेगा । " अश्वत्थ कह ही रहा था कि तभी विधी ने कहा " फिर तो बडे भैया आप लोगों को जल्दी हवेली पहुंचना होगा । आपको तो पता ही है काका सा का गुस्सा कितना ख़तरनाक है और रीत उनसे कितना डरती है । "
" हां इसलिए कह रहा हूं हमें जल्दी पहुंचना होगा । " इतना कहकर अश्वत्थ आगे बढ गया । अर्जुन और विधी उसके पीछे बढ गए ।
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रीत का कमरा
रीत भागते हुए अपने कमरे में पहुंची और जाकर औंधे मूंह बिस्तर पर गिर गई । वो बस सिसकियां भरते हुए रोए जा रही थी । कुछ देर यूं ही आंसू बहाने के बाद वो बिस्तर पर उठकर बैठ गई । उसने साइड वाले टेबल का ड्रोल खोला और उसमें से एक तस्वीर निकाली । वो किसी औरत की तस्वीर थी जिसकी शक्ल रीत से काफी ज्यादा मिलती जुलती थी । हां बस थोडा बहुत बदलाव था उनकी आंखें भूरी और बाल घुंघराले थे । रीत आंसु भरी आंखों से उन्हें देखते हुए बोली " क्यों मां ........ आखिर क्यों आप मुझे अकेला छोड़कर चली गई । आपकों जाना ही था तो मुझे भी अपने साथ लेकर चली जाती । मां मैंने ऐसा कौन सा गुनाह कर दिया , जिसकी वजह से पापा मुझसे नफरत करते है । प्यार से बात करना तो दूर वो मुझे नज़र भर देखते तक नही । मैं उनसे ज्यादा कुछ नहीं चाहती । मैं बस इतना चाहती हूं कि बस एक बार वो मुझे प्यार से बेटी कहे । मां उनकी लिए उनकी बेटी अपनी जिंदगी तक वार देगी । बस वो एक बार मुझे प्यार से बेटी कहकर पुकारे । " इतना कहकर रीत उस तस्वीर को अपने सीने से लगाकर रोने लगी ।
कमरे का दरवाजा खुला हुआ था । शारदा जी उसके कमरे के पास पहुंची तो उन्हें दूर से ही रीत की सिसकियां सुनाई दी । वो कमरे के अंदर दाखिल हुई और उसके पास चली आई । इस वक्त रीत की पीठ उनकी ओर थी । शारदा जी उसके पास बैठी और उसके कंधे पर हाथ रखते हुए बोली " रती की तस्वीर से बातें कर रही हो । "
रीत ने जैसे ही बडी मां की आवाज सुनी तो उनकी ओर पलटकर रोते हुए उनके गले से लग गई और बोली " क्यों बडी मां ....... ? पापा मुझसे नफ़रत क्यों करतें है ? क्या मैं उनकी बेटी नहीं ....... " ?
" शारदा जी उसकी पीठ सहलाते हुए बोली " फिर से वही सब बातें रीत ऐसा नही कहते बेटा । तुम्हारे पापा तुमसे बहुत प्यार करते हैं और नाराज़ तो इंसान उसी पर होता है न जिससे वो प्यार करता हो और जिसका उसका हक हो । तुम्हारे पापा का तो तुम पर हक भी है और वो तुमसे प्यार भी करते है । तुम अच्छे से जानती हो तुम्हारे पापा तुम्हारी मां रती से कितना प्यार करते थे । तुम उसी की परछाईं हो इसलिए हमने तुम्हारा नाम रीत रखा । बस तुम्हें देखकर उन्हें रती की याद आ जाती है और वो तुमपर गुस्सा कर देते है । प्यार भी तुमसे बहुत करते हैं बस जताना नही जानते । उनकी बातों का बुरा मत मानो रीत । शांत हो जाओ सब ठीक हो जाएगा । रीत उनके गले से लगकर अब भी आंसू बहाए जा रही थी और शारदा जी उसे चुप कराने में लगी थी ।
इधर अश्वत्थ और अर्जुन विधी को उसके घर छोड हवेली आ चुके थे । वो लोग जैसे ही अंदर आए तो नौकर ने आकर कहा " बडे साहब , छोटे साहब आप दोनों को हुकुम हॉल में बुला रहे है । " नौकर इतना कहकर चला गया और वो दोनों हॉल में चले आए ।
अर्जुन अपने मन में बोला " ये क्या किया रीत आज तूने दो भूखे शेरों के सामने हमे नाश्ता बनाकर पेश करवा दिया । वो दोनों जब हॉल में आए तो देवेंद्र जी गुस्से से बोला " इतनी बडी गलती कैसे कर दी अश्वत्थ । हमने रीत की जिम्मेदारी तुम्हें सौंपी थी और तुम उसका ख्याल नही रख पाए । अगर आज उसे कुछ हो जाता तो किस मूंह से तुम हमारे पास आते । " । अश्वत्थ और अर्जुन दोनों सिर झुकाए उनके सामने खडे थे ।
अश्वत्थ हिम्मत कर बोला " सॉरी पापा हम मानते है कि आज हमसे बहुत बडी गलती हो गई और इस लापरवाही की हम सजा भुगतने के लिए तैयार है । आइंदा से ऐसी गलती फिर कभी नहीं होगी । "
' ठीक है फिर आपकी सजा ये है कि आप दोनों आज रात भूखे सोएंगे और रीत भी । ' अभय जी ने ये कहा तो अश्वत्थ हैरान होकर बोला " काका सा लापरवाही हमारी है तो सजा हमें दीजिए रीत को नही । सिर्फ एक नही हम दस रातें भूखे रहने को तैयार है , लेकिन आप हमारी लाड़ो को सजा मत दीजिए । "
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रीत की गलती सबपर भारी पड गई ! अभय जी का गुस्सा उसपर इतना ज्यादा क्यो था ? क्या वो रीत से नफरत करते है और अगर करते है तो उसकी वजह क्या है ?
क्या सच मे अश्वत्थ , रीत और अर्जुन तीनो को सजा भुगतनी पडेगी ? अश्वत्थ रीत को इस सजा से कैसे बचाएगा ?
आगे जानने के लिए पढते रहिए मेरी नोवल
सागर से गहरा इश्क पियाजी
( अंजलि झा )
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