प्रमाद जी अभय जी और देवेंद्र जी से मिल ही रहे थे , कि तभी शारदा जी वहा चली । प्रमाद जी ने उनके पांव छूकर उनका भी आशिर्वाद लिया ।
" जमाई सा आप विनीता को अपने साथ नही लाए । " शारदा जी ने पूछा तो प्रमाद जी बोले " भाभी सा मैं तो यहां किसी जरूरी काम से आया था , इसलिए सोचा आप लोगों से भी मिलता चलूं । "
" आप जरा रूकिए हम आपके लिए चाय नाश्ता भिजवाते है । " इतना कहकर शारदा जी वहां से चली गई ।
प्रमाद जी ने आस पास नजरें दौड़ाते हुए कहा " बच्चे कही नज़र नहीं आ रहे भाई सा । "
" अश्वत्थ हमारे किसी काम से बाहर गया हुआ है और अर्जुन कॉलेज । रही बात हमारी रीत की तो वो यही पास के बाग मे अपनी दोस्त के साथ गई हुई हैं । " देवेंद्र जी ने कहा ।
प्रमाद जी थोडा सोचते हुए बोला " भाई सा अब तो हमारी रीत भी बडी हो चुकी है । ऐसे मैं आप लोगों ने उसके लिए कोई लडका देखा है या नही । "
" अभी इनकी क्या जरूरत ? हमारी रीत की उमर ही कितनी है । " योगेन्द्र जी कह ही रहे थे की तभी प्रमाद जी बोले " बेटियों की उम्र नही देखी जाती भाई सा । वो देखते देखते कब ब्याह के लायक हो जाती है पता ही नही चलता और वैसे भी समाज के नियम तो आप जानते ही है । बेटिया पराया धन होती है उन्हें ज्यादा समय तक अपने पास रखना समझदारी वाली बात रही । लोक समाज , मान सम्मान इन सबको देखकर चलना पडता है । कन्यादान बहुत बडी जिम्मेदारी होती है जितना जल्दी इससे निजात पा लिया जाए उतना अच्छा । " प्रमाद जी कह ही रहे थे कि तभी अभय जी बोले " भाई सा जमाई सा बिल्कुल ठीक कह रहे है । अब हमें रीत के हाथ पीले करने के बारे में सोचना चाहिए । ......... जमाई सा आपकी नज़र में कोई लडका हो तो बताओं । "
" अरे भाई सा लड़के तो बहुत हैं और सब एक से बढ़कर एक , लेकिन अपनी रीत बिटिया के लिए हम ऐसे ही तो किसी को भी नही चुन लेंगे । उसके लिए लडका लाखों में नही करोड़ों में एक होना चाहिए । मेरी नज़र में ऐसा ही एक लडका है । राजस्थान के हुकुम सा विजय सिंह शेखावत का भतीजा रूहान सिंह शेखावत । "
राजस्थान का नाम सुनते ही देवेंद्र जी हैरानी से अभय जी की ओर देखने लगे । प्रमाद जी अपनी बात जारी रखते हुए आगे बोले " काफी ऊंचा घराना है । प्रतापगढ़ में बहुत बडी हवेली है उनकि । कुछ दिन पहले ही लडका न्यूयोर्क से पढाई कर लौटा है । दो दो फैक्ट्रिया है । नाम , पैसा , शोहरत किसी भी चीज की कमी नही है ।"
" वो सब तो ठीक है जमाई सा लेकिन राजस्थान .......... देवेन्द्र जी कह ही रहे थे , कि तभी प्रमाद जी उनकी बात बीच में काटते हुए बोला " समझ सकता हूं भाई सा आपकी चिंता की वजह । लेकिन उस बात को तो लगभग अठारह साल बीत चुके हैं । अब परिस्थितिया बदल गई है । जिस परिवार को लेकर आप चिंतित हो रहे है वो तो सालों पहले बिखर चुका है । आखिर कार संभालने के लिए बचा ही कौन था । अब अगर लडका वहा से है तो इसमें उसका क्या दोष ? वैसे भी मैंने सुना है विवाह के बाद लडके को हुकुम सा के पद पर बिठाया जाएगा । अब इतना अच्छा रिश्ता बार बार नही मिलता । लड़का अपने किसी जरूरी काम से तीन दिन बाद हैदराबाद आ रहा है । आप कहे तो मैं उन लोगों से बात कर लेता हूं । एक बार आकर लडके वाले आप लोगों से मिल लेंगे तो बाते आमने सामने हो जाएगी । "
" आपके पास लडके की कोई तस्वीर है । " अभय जी ने पूछा तो प्रमाद जी मुस्कुराते हुए बोला " हां क्यों नहीं मैं अपने साथ लेकर ही आया हूं । इतना कहकर उन्होंने अपने बैग से एक तस्वीर निकाली और उन दोनों की ओर बढा दी । ये तस्वीर रुहान की थी । देवेन्द्र जी और अभय जी दोनों को ही ये तस्वीर पसंद आई । अभय जी देवेंद्र जी की ओर देखकर बोले " भाई सा लडके से मिलने मे कौन सी बुराई है और अगर सब कुछ ठीक रहा तो हम बात आगे बढा देंगे । वैसे भी हमें तस्वीर में लडका पसंद आया । "
देवेंद्र जी कुछ सोचते हुए बोलें " ठीक है फिर सबकी राय यही है तो हमें क्या ऐतराज़ हो सकता है । जमाई सा आप लडके वालो से बात कीजिए । हम उनसे मिलने के लिए तैयार है । " देवेन्द्र जी के ये कहते ही उनके होंठों पर मुस्कुराहट तैर गई । वो अपने मन में बोला " चलो यहा का पहला पड़ाव तो मैंने पार कर लिया । हुकुम की रजामंदी के बाद तो किसी की हिम्मत ही नहीं है कि वो इस रिश्ते से इंकार कर दे । शारदा जी और अवंतिका ने उन तीनों की बातें सुन ली थी । अवंतिका शारदा जी की ओर देखकर बोली " मां ये सब क्या हो रहा है ? लाड़ो के लिए अभी रिश्ते की क्या जरूरत ? आपकों तो पता हैं न वो आगे पढना चाहती है । कितने सपने सजा रखे है उसने । हम ऐसे ही उसके सपनों को कैसे तोंड सकते हैं । "
शारदा जी के पास इस वक्त अवंतिका के सवालों का कोई जवाब नहीं था । उन्होंने अवंतिका की ओर देखकर कहा " बेटा तुम चाय लेकर जाओ मुझे कुछ काम याद आ गया तो अपने कमरे में जा रही हूं । " इतना कहकर शारदा जी अपने कमरे की ओर बढ गई ।
' लेकिन मां ......... अवंतिका इससे आगे और कुछ न कह पाई । उसने सिर का पल्लू ठीक किया और किचन से चाय लेकर उन लोगों की ओर बढ गई ।
.................
इधर दूसरी तरफ बाग में विधी और रीत टहल रहे थे । विधी ने चलते हुए कहा " पता है रीत मामाजी और मामीजी मेरे लिए रिश्ता ढूंढ रहे हैं । " विधी के ये कहते ही रीत के कदम रूक गए ।
" क्या कहा तूने रिश्ता ....... ? " रीत ने कहा ।
विधि भी रूकी और उसकी तरफ पलटकर बोली " हां रिश्ता ....... आय दिन लड़कों की तस्वीरें आती रहती थी । इस बार उन्हें एक लडका पसंद भी आ गया । बहुत जल्द उसके घरवाले मुझे देखने के लिए आने वाले हैं । "
रीत विधी की बांह पकड़ते हुए बोली " ये तूं क्या कह रही है विधी । अभी हमारी उमर ही कितनी है सिर्फ अठारह साल । लगता है तेरे मामा जी का दिमाग खराब हो गया है । इतनी कम उम्र में कोई शादी करवाता है क्या ? तूं एक काम कर उनके पास जाकर साफ साफ न कर दे । तूं मुझे छोड़कर कही नहीं जा सकती । "
" रीत तूं अच्छे से जानती है कि मेरे माता पिता बचपन में ही मुझे छोड़कर चले गए । मामाजी और मामीजी ने ही मुझे अपने बच्चे की तरह पाला । मैं कैसे उनका दिल तोड सकती । वैसे भी वो लोग मेरे लिए कोई गलत फैसला थोडी न लेंगे । वो जहा कहेंगे जिससे कहेंगे मैं शादी के लिए हां कर दूगी । ........ और एक बात बता अगर तेरे पापा और बडे पापा ने तेरे लिए कोई लडका पसंद किया तो तूं क्या करेगी ? " विधी के ये कहने पर रीत झट से बोली " मैं साफ इंकार कर दूगी । मुझे कोई शादी वादी नही करनी । मैं अपने परिवार को छोड़कर कभी कही नहीं जाऊगी । मुझे अभी पढ़ना है बहुत बडी लायर बनना है । मुझे इस काबिल बनना हे कि दुनिया मेरा नाम ले और मेरा पापा सबके सामने सर उठाकर फक्र से कह सके हां ' रीत प्रताप सिंह मेरी बेटी है । अभय प्रताप सिंह की बेटी है । " ये सब कहते हुए रीत का गला भर आया था । उसके आंखों से आंसू की एअ उसके गालों तक खिंच गई । विधी ने आगे बढ़कर उसके आंसू पोंछत हुए कहा पगली कही की ऐसे कोई रोता है क्या ? चुप हो जा सब अच्छा होगा । जो तूं चाहती है वो एक दिन जरूर पूरा होगा । " ये कहते हुए विधी उसके गले लग गई । विधी को कुछ न सूझा तो वो उसका मूड ठीक करने के लिए बोली " अच्छा अगर तुझे किसी से प्यार हो गया तो ......
उसके ये कहते ही रीत उससे अलग हुई और आंखें छोटी कर बोली " क्या कहा तूने प्यार और मुझे नो चांश । ये सब प्यार व्यार सिर्फ किस्सो और कहानियों में ही अच्छे लगते है या फिर मेरी कविताओं मे हकिकत में ये सिर्फ दर्द देना जानतें हैं । इस प्यार वाले भूत से जितना दूर रहो उतना अच्छा है । चल अब दोबारा कभी मुझसे इस बारे में मत पूछियो ।काफी देर हो गई है घर चलतें है बडी मां इंतजार कर रही होगी । " ये कहते हुए रीत विधी का हाथ पकड़ आगे बढ गई ।
वो दोनों जब हवेली पहुंचे तो उन्हें देवेंद्र जी और अभय जी हवेली के बाहर प्रमाद जी से बात करते हुए नज़र आए । दरअसल प्रमाद जी अब निकलने की तैयारी में थे । इसी बीच देवेंद्र जी की नज़र रीत पर पडी तो उन्होंने उसे अपने पास बुलाते हुए कहा " रीत बेटा जरा यहां आओ । "
रीत अपने घाघरे को संभालते हुए उनके पास चली आई । उसने नीचे झुककर प्रमाद जी के पांव छुए तो विनीत जी बोले " अरे वाह हमारी रीत बिटिया अब कितनी बडी हो गई है । इसे तो लडके वाले देखते ही पसंद कर लेंगे । "
जो मुस्कुराहट अभी रीत के होंठों पर थी वो प्रमाद जी की बातों से अचानक गायब हो गई । देवेन्द्र जी ने रीत की ओर देखकर कहा " रीत बेटा आप अंदर जाइए । ........ विधी बेटा रीत को अंदर लेकर जाओ । "
उनके ये कहने पर विधी ने हां में सिर हिलाया और रीत के पास चली आई । वो रीत की बांह पकड अपने साथ ले जाने लगी । रीत अभी भी धीमें क़दमों से हवेली की ओर बढ रही थी ।
उधर प्रमाद जी देवेंद्र जी की ओर देखकर बोले " पता नही भाई सा देवी मां की क्या मर्जी है , लेकिन मैं तो उनसे यही प्रार्थना करूगा कि ये रिश्ता हो जाए । हमारे रीत के लिए इससे अच्छा रिश्ता मिल ही नही सकता । "
रीत और विधी दोनों ने ही उनकी ये बात सुनी । उन दोनों के ही कदम रुक गए । दोनों ही हैरानी से एक दूसरे की ओर देख रही थी । बात तो बिलकुल साफ़ था समझने में देर कैसे लगती । रीत गुस्से से महल के अंदर चली आई । विधी भी उसके पीछे पीछे चली आई ।
' रीत .. रीत..... मेरी बात सुन ' विधी उसे पुकारते हुए उसके पीछे पीछे चली आ रही थी । रीत बिना उसे कोई जवाब दिए सीढ़ियों की ओर बढ गई । वो दोनों ही अब छत पर आ चुके थे ।
" रीत मेरी बात सुन ' ये कहते हुए विधी ने उसकी बांह पकड़ अपनी ओर घुमाया । रीत इस वक्त बहुत गुस्से में नजर आ रही थी । उसने नम आंखों से विधी की ओर देखकर कहा " जिसका डर था वही हुआ । क्या मैं बोझ हूं अपने घरवालों पर ? मुझे एक बात समझ नही आती जितनी फ़िक्र हमारे घरवालों को नही होती उससे कही ज्यादा फ़िक्र हमारे पड़ोसियों को और हमारे रिश्तेदारों को होती है । आपकी बेटी तो बडी हो गई ब्याह कब करेंगे आप ? ........कन्यादान कर अब गंगा नहा लीजिए । ...... समाज को देखकर चलना पडता है । ........ जवान बेटियों को ज्यादा दिन घर में नही रखना चाहिए । ........ और न जाने क्या कया ? यही सब कहकर वो हमारे घरवालों का ब्रेन वाश करते हैं । अगर आतंकवादियों की कोई कैटिगरी बने न तो मैं उन्हें भी उस कैटिगरी में डाल दूं । ....... और हमारे लाडले फूफा जी तीन साल से तो इन्हें हमारी कोई याद नही आई और आज मूंह उठाकर मेरा रिश्ता लेकर चले आए । इन्हें तो मैं छोडूगी नही । "
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ये बात तो सच कही रीत ने जितना फ़िक्र हमारे मां पापा को नही होती उससे ज्यादा चिंता तो हमारे पड़ोसियों को होती है । कभी आकर ये नही पूछेगी की आपकी बेटी क्या पढ रही है । आगे क्या बनना चाहति है । वो तो बस एक ही संवाल करते है लडकी बडी हो गई हैं शादी कब करेंगे । वैसे इस बारे में आप लोगो की क्या राय है कमेंट करके जरूर बताइएगा । बाकी रीत कल फूफा जी का क्या हाल करेगी ये हम आगे जानेंगे ।
सागर से गहरा इश्क पियाजी
( अंजलि झा )
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