मंदिरा ने रूहान की ओर देखकर कहा " आई थिंक यूं आर इंडियन । खैर तुम जो भी हो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता । मुझे तुमसे प्यार हो गया है आई लव यू । " उसके ये कहते ही वहां खड़े गार्डस हैरानी से एक दूसरे का चेहरा देखने लगते है । रूहान के चेहरे पर इस वक्त कोई एक्स्प्रेसन नही था ।
मंदिरा को जब रूहान का कोई जवाब नहीं मिला तो वो उसके करीब चली आई । उसने अपना एक हाथ रूहान के कंधे पर हाथ रखा और दूसरा हाथ उसके सीने पर रख उसके बेहद करीब आकर बोली " तुमहारी मर्जी जब चाहें तब शादी कर लेंगे । बट आई नीड यूं ......... राइट नाउ ....... इतना कहकर वो रूहान के होंठों के करीब बढ़ने लगी , तो रूहान ने उसे कंधे से पकड खुद से दूर किया और एक झन्नाटेदार थप्पड़ उसके गालों पर जड दिया । तमाचा इतना तेज़ था कि मंदिरा उसे संभाल नही पाई और जमीन पर मूंह के बल जा गिरी । उसके सारे बाल चेहरे के आगे आ चुके थे । उसने अपना एअ हाथ अपने गाल पर रख चेहरा घुमाकर हैरानी से रूहान की ओर देखा ।
रूहान उसकी ओर देखते हुए गुस्से से बोला " लगता है तुम्हारे जिस्म में बहुत ज्यादा गर्मी है , लेकिन तुम गलत जगह आ गई । मैं तुम्हारा खरीददार नही हूं जाकर अपने लिए किसी ओर को ढूंढ लो । ये तो मैंने तुम्हें अपने आप को छूने की सजा दी है । आइदा से मेरे रास्ते में कभी मत आना । रूहान सिंह शेखावत तुम जैसी लड़कियों से सख्त नफ़रत करता है । " रूहान कह ही रहा था कि तभी उसका एक गार्ड उसके पास आकर बोला " सर फ्लाइट टेक ऑफ के लिए रेडी है । " उसके इतना कहने पर रूहान गुस्से से मंदिरा को घूरते हुए वहां से निकल गया ।
श्रवण कब से साइड में खडा यहां का सारा तमाशा देख रहा था । वो अपने मन में बोला " इस लड़की का भी दिमाग खराब हो गया था , जो ज्वालामुखी के अंदर हाथ डालने चली आई । अरे ये वो विश्वामित्र है जिसकी तपस्या कोई मेनका भंग नही कर सकती । " ये सब सोचते हुए श्रवण भी वहां से चला गया । इधर मंदिरा के दोस्त भागते हुए उसके पास चले आए । उन्होंने उसे उठाया तो मंदिरा ने झटके से उन लोगों सहित से अपना हाथ छुडाया और दो कदम आगे लेकर बोली " बहुत बडी गलती कर दी रूहान सिंह शेखावत । मंदिरा पर तुम्हें हाथ नही उठाना चाहिए था । अब तुम्हें मुझसे कोई नही बचा सकता । "
" मंदिरा छोडो ये सब ...... चलों हमारी फ्लाइट का टाइम हो रहा है । " उसकी एक दोस्त ने कहा तो मंदिरा बोली " नो वे ........ मैं अब इंडिया नही जाऊगी । इस आदमी ने मेरा पूरा मूड खराब कर दिया । मैं वापस जेनेवा जाऊगी । जब मेरा मूड ठीक हो जाएगा तब इंडिया वापस आ जाऊगी । तुम लोगों को जाना है तो जाओ । " इतना कहकर मंदिरा वहां से चली गई ।
उसकी एक दोस्त ने कहा " अब ये नही जा रही तो हम इंडिया जाकर क्या करेंगे ? "
" चलों फिर कुछ टाइम वेकेशन और मना लेंगे । " मंदिरा की दूसरी दोस्त ने कहा और वो तीनों उस ओर चल दिए जहां मंदिरा गई थी ।
इधर रूहान और श्रवण फ्लाइट में बैठ चुके थे । श्रवण ने रूहान की ओर देखकर कहा " तुझे उस लड़की को इतनी तेज थप्पड़ नहीं मारना चाहिए था । "
" तो क्या करता उसे खुद के करीब आने देता । तुझे अच्छे से पता है मुझे ये सब पसंद नहीं । " रूहान ने गुस्से से कहा ।
" कभी न कभी तो पसंद करना ही पडेगा । खुद की पत्नी को तो अपने पास आने से नहीं रोक सकता । " श्रवण ने पूछा तो रूहान अपना चेहरा दूसरी ओर कर बोला " मेरा शादी जैसे रिश्ते में कोई विश्वास नहीं । ऐसी लड़की इस दुनिया में है ही नही जो रूहान सिंह शेखावत के दिल को छू सके । "
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सुबह का वक्त , विजयवाड़ा , MVR Mall
रीत , विधी , अर्जुन और अश्वत्थ इस वक्त मॉल में आए हुए थे । अश्वत्थ ने ससकी ओर देखकर कहा " हमे अपने क्लाइंट से मिलना है आप सब जाकर शापिंग कीजिए । ........ और अर्जुन रीत और विधी का ख्याल रखना । "
' जी भैया ' अर्जुन ने जवाब दिया ।
अश्वत्थ रीत के गालों को छूकर बोला " लाड़ो आपको जो लेना हो लीजिए और यही सबके साथ रहिएगा । " इतना कहकर अश्वत्थ वहां से चला गया । विधी ने उन दोनों की ओर देखकर कहा " आप लोग इंतजार किस चीज का कर रहे है , चलिए न मॉल घूमते है । " उसके ये कहने पर रीत और अर्जुन उसके साथ चल दिए ।
वो लोग सबसे पहले कपड़ों के शो रूम में पहुंचे । रूद्र दूसरी ओर चला गया जहां जैंस के पकडे था । रीत और विधी लेडीस सेक्शन की ओर बढ गया । विधी का नया वहा की चीजों पर था लेकिन रीत कही खोई हुई थी । उसने अपने मन में कहा " हमारे पास तो पहले से ही इतना कुछ है हम और लेकर क्या करेंगे ? हम घूमना चाहतें थे , बाहर की दुनिया देखना चाहते थे । हमें यहां शापिंग थोडी न करनी है । " रीत ये सब सोच ही रही थी कि तभी उसे विधी की आवाज सुनकर दी " रीत कहा खोई हुई है कब से बुला रही हूं मैं तुझे । अच्छा चल ये बता ये रंग कैसा है ? " विधी ने उसके सिर पर हल्के गुलाबी रंग की चुनरी डालते हुए कहा ।
" अच्छा है " रीत ने फीकी सी स्माइल के साथ कहा ।
" रीत सब ठीक है न ' विधी ने उसके चेहरे की मायूसी भांपते हुए कहा ।
" कुछ नहीं हुआ तूं बेकार ही मेरी चिंता कर रही है । " रीत ने कहा और वहां रखे कपड़ों को छूकर देखने लगी । विधी भी उन्हें देखने में बिजी हो गई ।
रीत अपने मन में बोली " क्यों न मै यहां से बाहर चली जाऊ ? बाहर घूमकर जल्दी लौट आऊगी । लेकिन बाहर तो गार्डस खड़े हैं । " ये सोचते ही रीत का मन उदास हो गया । उसने एक नज़र आस पास देखा तो न ही वहां रूद्र था और न ही विधी । रीत हल्की मुस्कुराहट के साथ बोली " गार्डस को बेवकूफ बनाना कौन सी बडी बात है । ये तो हमारे बाए हाथ का काम है । " ये सोचते हुए रीत वहां से बाहर चली आई । वो सीढ़ियां उतर नीचे वाले फ्लोर पर आई और बाहर की ओर जाने लगी कि तभी उसके कदम रुक गए । बाहर उनके आदमी हथियार लिए अभी भी पहरा दे रहे थे । " अब क्या करेगी रीत ? " रीत ये सोच ही रही थी कि तभी उसकी नज़र एक औरत पर गई जिसने एक हाथ से अपनी बेटी को गोद में लिया हुआ था और दूसरे हाथ से कैरी बैग संभालने की कोशिश कर रही थी । उसके एअ दो बैग जमीन पर गिरे पड़े थे जिसे संभालने में उसे परेशानी हो रही थी । रीत के होंठों पर मुस्कुराहट तैर गई । उसने अपना दुपट्टा अपने सिर पर रखा और उस औरत के पास चली आई । उसने उसका कैरी बैग उठाकर उसे देखते हुए पूछा " अगर आपको बुरा न लगे तो क्या मैं आपको बाहर तक छोड दूं । '
उस औरत ने मुस्कुराते हुए कहा " जी बहुत बहुत मेहरबानी होगी अगर आप मुझे गाडी तक छोड देंगी तो । "
" लाइए बच्ची को हम संभालते है आप बैग्स संभालिए । " रीत ने कहा तो उस औरत ने अपनी बच्ची को रीत की गोद में दे दिया । रीत ने अपना घूंघट ठीक किया और उस औरत के साथ आगे बढ़ गई । उसके आदमी बाहर ही खड़े थे जिससे रीत के पैर कांपने लगे थे लेकिन उसकी खुशकिस्मती थी की उसे कोई पकड नही पाया । उस औरत ने अपना सामान गाडी में रखा और रीत से बोली " आपका बहुत बहुत शुक्रिया आपने मेरी मदद कि । "
" अरे नहीं ...... शुक्रिया तो मुझे आपका करना चाहिए , आपने मेरी बहुत बडी मदद की । " रीत ने मुस्कुराते हुए कहा और बिना उसके जवाब का इंतजार किए वहा से चली गई । वो औरत अपनी गाडी के पास खडी होकर हैरानी से जाती हुई रीत को ही देख रही थी ।
इधर रीत के चेहरे पर खुशी देखने लायक थी जैसे पंछी खुले गगन में आजाद होकर महसूस करते हैं । " दिन भर बंदिशें । जब देखो तक रोक टोक । अगर कही भी जाना हो तो अपने साथ एक फौज लेकर चलो । " ये सब कहते हुए रीत आगे बढ रही थी । ऊंची ऊंची इमारतें , सडको पर भीड़ और आस पास ढेर सारे लोग जिन्हें रीत या तो टीवी में देखती या फिर गाडी में बैठकर कभी कभार इन नज़ारों का आनंद उठा पाती । उसे ये सारी चीजें बहुत अच्छी लग रही थी । तभी रीत की नज़र सडक किनारे भीड पर पडी । वो भी वहां चली आई और भीड को चीरती हुई अंदर पहुंची । यहा बंदर और मदारी का खेल चल रहा था । मदारी जैसा कहता बंदर वैसा करतव करता । सचमुच वो दृश्य मनमोहक था । रीत तो उन्हें देखने में इतना खो गई कि उसे वक्त का अंदाजा ही नही लगा ।
वहां दूसरी तरफ मॉल में विधी कब से रीत को ही ढूंढ रही थी । वो उसे ढूंढ़ते हुए अर्जुन के पास चली आई । " अर्जुन भैया आपने रीत को देखा । " विधी के पूछने पर अर्जुन उसकी ओर देखकर बोला " वो तो तुम्हारे साथ थी न । "
" हां मेरे साथ ही थी लेकिन पता नहीं कहां चली गई । मैं कब से ढूंढ रही हूं वो कही दिखाई ही नही दे रही । " विधि ने परेशान होते हुए कहा । परेशानी की बात तो अर्जुन के लिए भी थी । उसने विधी की ओर देखकर कहा " एक काम करते है तुम उस तरफ ढूंढो मैं इस तरफ देखता हूं । " विधि ने हां में सिर हिलाया और दोनों रीत को ढूंढने लगे । रीत तो उन्हें तब मिलती जब वो यहां होती । अश्वत्थ अपनी मीटिंग खत्म कर चुका था । वो लास्ट टाइम अपने क्लाइंट से हाथ मिला रहा था कि इसी बीच उसकी नज़र अर्जुन पर पडी जो परेशान सा इधर उधर किसी को ढूंढने की कोशिश कर रहा था ।
अश्वत्थ अपने क्लाइंट से मिलकर उसके पास चला आया । " क्या बात है अर्जुन तुम किसे ढूंढ रहे हो ? " अर्जुन आवाज की ओर पलटा तो सामने अश्वत्थ खडा था । अर्जुन ने अपनी नजरें झुका ली और डरतें हुए बोला " बड़े भैया हम रीत को ढूढ रहे है काफी देर से वो हमें दिखाई नहीं दी । "
अर्जुन के ये कहते ही अश्वत्थ गुस्से से बोला " क्या मतलब दिखाई नहीं दी । लाड़ो को हम तुम्हारी जिम्मेदारी पर छोड़कर गए थे और तुम कह रहे हो दिखाई नहीं दी । ये कैसी लापरवाही है अर्जुन । "
" सॉरी भैया लेकिन समझ नही आ रहा वो कहां गई । मैंने गार्डस से पूछा लेकिन उन्होंने कहां की रीत को बाहर निकलते हुए उन्होंने देखा ही नहीं । "
" अगर रीत बाहर नही निकली तो इसका मतलब वो यही कही होगी । तुम उस तरफ देखो मैं इधर देखता हूं । " अश्वत्थ ने कहा और दोनों भाई रीत को ढूंढने लगे ।
उधर खेल भी खत्म हो चुका था और सब लोग धीरे धीरे कर वहा से जा रहे थे । रीत ने देखा लोग उस आदमी को पैसे दे रहे थे । रीत ने भी देना चाहा लेकिन उसे ध्यान आया वो तो अपना पर्स गाडी में ही छोड आई । उसने अपने हाथों में से दो सोने की चूड़ियां निकाली और आदमी को देकर वहां से जाने लगी । वो आदमी हैरानी से रीत को देखने लगा तो रीत बोली " ऐसे मत देखिए इस वक्त इनकी जरूरत मुझसे ज्यादा आपको है । हो सके तो कोई दूसरा काम कीजिए और इस बंदर को आजाद कर दीजीए क्योंकि बंधन बहुत कष्टदायक होता है जाहे वो इंसानो के लिए हो या जानवरों के लिए । " इतना कहकर रीत वहां से चली गई ।
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रूहान ने मंदिरा को साफ साफ इंकार कर दिया और वही सही आइना दिखाकर । उसके लिए सचमुच ये थप्पड़ भूल पाना मुश्किल होगा ? क्या वो रूहान से बदला लेगी ?
रूहान ने साफ कह दिया की शादी जैसे रिश्ते में उसे कोई विश्वास नहीं । क्या वो इस बात पर हमेशा कायम रहेगा ? या कोई ऐसा भी उसके जिंदगी में आएगा जो उसकी राय को बदल सके ।
रीत ने ये बात बिल्कुल सही कही बंदिशें इंसान की खुशियों को बांधकर रख देती है । आजादी सबको पसंद है चाहो वो इंसान हो या जानवर । रीत के इस तरह बिना बताए आने से सब लोग मॉल में परेशान है । क्या रीत वक्त रहते वहां पहुंच पाएगी । आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी नोवल
सागर से गहरा इश्क पियाजी
( अंजलि झा )
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