नई दिल्लीः बसपा में सतीश मिश्रा के बाद दूसरे नंबर के ब्राह्मण नेता और पूर्व सांसद ब्रजेश पाठक को आखिरकार हाथी की सवारी रास नहीं आई। दिल्ली पार्टी मुख्यालय में उन्होंने अमित शाह की मौजूदगी में कमल का फूल थाम लिया। खास बात है कि आगरा में रविवार को बतौर संयोजक बसपा की रैली कराने के 24 घंटे के भीतर ही पाठक ने निष्ठा बदल दी। नीले झंडे की छत्रछाया से निकलकर अब भगवा झंडे को लहराते दिखेंगे।
बसपा छोड़ने की पहले उड़ी चर्चा को किए थे खारिज, अब...
एक महीने पहले भी ब्रजेश पाठक के बसपा छोड़ने की बातें सियासी गलियारे में उड़ीं थीं। मगर, तब पाठक ने इसे अफवाह करार दिया था। अब जब उन्होंने अचानक भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली तो कहा जा रहा था कि पाठक के भाजपा में जाने की स्क्रिप्ट उसी समय तैयार हो गई थी, मगर डील के अंजाम तक न पहुंचने के कारण उस समय ब्रजेश ने पार्टी छोड़ने की बात स्वीकार नहीं की। अब जब सब कुछ भाजपा से अंदरखाने तय हो गया तो खुलेआम सदस्यता ग्रहण कर ली।
बाहुबली की है छवि
2004 के लोकसभा चुनाव में उन्नाव से बसपा के बैनर तले जीत मिली। इलाके में बाहुबली की छवि है। अपहरण के भी मुकदमे दर्ज हो चुके हैं। हालांकि दोष किसी मामले में साबित नहीं हुआ है। उन्नाव में काफी पकड़ बताई जाती है। इसी पकड़ का उन्नाव में फायदा लेने के लिए ब्रजेश पाठक को भाजपा ने पार्टी में लेने का फैसला किया।
बसपा की सोशल इंजीनियरिंग पर पड़ेगा असर
2007 के चुनाव में सतीश मिश्रा की अगुवाई में सोशल इंजीनियरिंग ने गुल खिलाया था तो बसपा की सरकार बनी थी। 2012 के चुनाव में भी ब्रजेश पाठक ने भी सोशल इंजीनियरिंग में अहम किरदार निभाया। पार्टी में बतौर ब्राह्मण चेहरा उनकी नंबर दो की हैसियत रही। ऐसे में चुनाव से पहले ब्रजेश का पार्टी से बाहर होना बसपा के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है।