नई दिल्लीः देश के कई राज्यों में अगर आज महिलाएं मुख्यमंत्री बनीं हैं तो इसके पीछे उनका बड़ा संघर्ष है। तमिलानाडु में 'अम्मा' यानी जयललिता का राज चल रहा तो प. बंगाल में शेरनी व दीदी कही जाने वाली ममता का। मगर, राजस्थान में 2003 से 2008 और 2013 से अब तक बतौर मुख्यमंत्री सरकार चला रही वसुंधरा राजे का संघर्ष भी मिसाल है। यूं तो राजघराने में जन्म होने से विरासत में सियासत मिली, मगर, आगे विपरीत हालात में भी जनता में अपने दम पर पकड़ बनाने के लिए वसुंधरा राजे को कम संघर्ष नहीं करना पड़ा। आइए रूबरू कराते हैं वसुंधरा राजे के राजनीति क सफर के बारे में।
21 साल की उम्र में बेटे का जन्म की खुशी और पति के अलगाव का गम
सिंधिया राजघराने की बेटी के रूप में 8 मार्च 1953 को वसुंधरा राजे का जन्म मुंबई में हुआ। पिता जीवाजीराव सिंधिया तो मां विजायाराजे सिंधिया रहीं। करीब 20 साल की उम्र में
1972-73 में उनकी शादी धौलपुर राजघराने के हेमंत सिंह से हुई। शादी के बाद जब बेटे दुष्यंत का जन्म हुआ तो आपसी खटपट शुरू होने पर मियां-बीवी अलग हो गए।
मां की सियासी विरासत को संभाला
वसुंधरा की मां विजया राजे सिंधिया भाजपा की राजनीति में सक्रिय रहीं। जब पति से अलगाव हुआ तो खाली वक्त व इसी बहाने जनता से जुड़ाव रखने के लिए वसुंधरा राजे ने भी भाजपा का दामन थाम लिया। 1984 में वसुंधरा राजे भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में शामिल हुईं। इस बीच मध्य प्रदेश के भिंड से लोकसभा चुनाव लड़ीं मगर हार का सामना करना पड़ा। वसुंधरा को लगा कि मध्य प्रदेश में सियासत नहीं चमक सकती तो राजस्थान चलीं आईं। 1985 में ससुराल की धौलपुर सीट से विधानसभा चुनाव लडीं तो पहली बार विधायक बनीं। दो साल बाद राजस्थान का भाजपा ने प्रदेश उपाध्यक्ष बना दिया। जब 1998-99 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार रही तो वसुंधरा ने विदेश राज्यमंत्री का पद संभाला।
दो वरिष्ठ नेताओं के दिल्ली में फंसने से चमकी किस्मत, बनीं सीएम
वसुंधरा राजे के सियासी सफरनामे में किस्मत ने भी बहुत साथ दिया। 2003 में जब राजस्थान में विधानसभा चुनाव होने को हुए तो राज्य के दो शीर्ष नेता दिल्ली में स्थापित हो चुके थे। भैरो सिंह शेखावत जहां उप राष्ट्रपति बन चुके थे तो जसवंत सिंह केंद्रीय मंत्री रहे। ऐसे में भाजपा ने वसुंधरा को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर उनकी अगुवाई में राजस्थान में चुनाव लड़ने का फैसला किया। वसुंधरा का मतदाताओं पर जादू दिखा। चुनाव परिणाम आया तो भाजपा ने 110 सीटें जीतकर पहली बार अपने दम पर राजस्थान में सरकार बनाई। इसी के साथ वे राजस्थान की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं।
29 साल तक पति से चली हवेली पर मालिकाने की लड़ाई
1978 में दुष्यंत की नानी विजयाराजे सिंधिया ने नाती के नाम पर स धौलपुर घराने की संपत्ति को लेकर महाराजा हेमंत सिंह पर मामला दर्ज कराया। इसके बाद 29 साल तक मुकदमा चला। इस बीच वसुंधरा के पूर्व पति हेमंत सिंह के रिश्तेदार भरतपुर के महाराजा विश्वेंद्र सिंह ने पिता-पुत्र के बीच समझौता कराया। समझौते के बाद दुष्यंत को धौलपुर का महल, शिमला का घर, धौलपुर घराने के जवाहरात व एक दर्जन विंटेज कारें मिलीं। जबकि हेमंत सिंह को दिल्ली में पंचशील मार्ग का घर व अन्य संपत्तियां मिलीं। इस घर में ही वे दूसरी पत्नी इंद्राणी सिंह के साथ रहते हैं।
फाइल फोटो-दाएं पूर्व पति हेमंत सिंह के साथ वसुंधरा राजे।