उना : देश जहाँ आज़ादी की 70वीं साल गिरह मना रहा है वहीँ अपने खिलाफ छुआछूत से दलितों ने भी आज़ादी की शपथ ले ली है। दलितों के आंदोलन का गढ़ बन रहे गुजरात के ऊना में स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर हैदराबाद यूनिवर्सिटी में आत्महत्या करने वाले दलित छात्र रोहित वेमुला की माँ ने झंडा फहराया। इस मौके पर उन्हें विशेष सम्मान दिया गया। एक रिपोर्ट के मुताबिक़ ऊना में 10 हजार दलितों ने जिग्नेश मेवाणी की अगुवाई में शपथ ली कि दलित अब मैला ढोने और जानवरों को दफनाने जैसे काम नहीं करेंगे।
क्या कहते हैं दलित समाजसेवी बेजवाड़ा विल्सन
रेमैन मेग्सेसे अवार्ड विजेता दलित समाजसेवी बेजवाड़ा विल्सन का कहना है कि जो नेता आज भी दलितों के साथ खाना खाने का प्रचार करते हैं वे अपनी सोच का नमूना सामने रख देते हैं। उन्होंने कहा, वह भी एक आदमी ही तो है जिसके साथ आप खाना खाते हैं। विल्सन कहते हैं कि भारत का एक हिस्सा तो हर तरह का लाभ पा रहा है लेकिन उदारीकरण के बावजूद दलितों, आदिवासियों और महिलाओं का बुरा हाल हैं। उन्होंने कहा एक ऐसा समाज जहाँ एक आदमी दूसरे आदमी का मल साफ़ करता हो वहां समाज की सामंती सोच के और क्या सबूत चाहिए।
बेजवाड़ा विल्सन एक कहानी सुनाते हुए कहते हैं कि बात 1986 की है जब मेरी मुलाकात कुछ युवाओं से हुई जो मेरे घर के पास इकट्ठा हुआ करते थे। वो बहुत शराब पिया करते थे। मैं उनसे शराब छोड़ने को कहता था। मैं उन सब में छोटा था इसलिए वो मेरी बात गंभीरता से सुना करते थे। एक दिन उनमे से एक दोस्त ने मुझसे पूछा कि ''तू जनता है मैं क्या करता हूँ'', मैंने कहा.. 'हाँ .. 'तू गू साफ़ करता है।' उसने कहा 'यह काम बिना पिए नहीं हो सकता''। मैंने कहा, ''यह सब बकवास है,'' महिलायें भी तो यह काम करती हैं लेकिन वह तो नहीं पीती। उसने कहा, ''पीती हैं लेकिन छिपकर।''
क्या कहते हैं कांचा इलैया
जाने माने दलित लेख क और सामाजिक कार्यकर्ता कांचा इलैया कहते हैं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जितना ध्यान सफाई अभियान को दे रहे हैं उतना ही उन्हें छुआछूत विरोधी अभियान पर भी देना चाहिए। वह गाय, बैल, भैंस को गांवों की आर्थिक आज़ादी से जोड़ते हैं और कहते हैं कि गो रक्षा का भारतीय परंपरा से कोई लेना देना नहीं है। अगर इसे परंपरा की तरह देखा जाता है तो यह अमानवीय और विकास विरोधी है। कांचा कहते हैं कि नरेन्द्र मोदी खुद को ओबीसी पीएम कहते हैं, उन्हें गौरक्षा कानून पास नहीं करना चाहिए था। ऐसे कानून समाज में बेरोजगारी को जन्म देते हैं।