भाग (13)💞💞💞💞💞
सुबह जब आँख खुली तो देखा दिन बहुत ही चढ़ गया था रात को क्या हुआ ये छवि को याद ही नहीं लेकिन जैसे ही खिड़की की ओर झाँकी तो हैरान हो गई उसने देखा कि वैभव अभी भी वहीं ही था , वैभव ने भी छवि को देख लिया मुस्कुराते हुए बोला " गुड़ मॉर्निंग ..!!रात को नींद अच्छी आई?'
छवि हैरान थी कोई इतनी देर किसी की पहरेदारी कर सकता है ? हां पुलिस वाला है न शायद इस लिए पर न जाने क्यों एक शक सा बना हुआ है इस पर , लेकिन ये हो है कि ये साधारण नहीं , छवि ने नीचे जाकर उससे बात करनी चाही लेकिन तब तक वो जा चुका था अरे क्या बात पूरी भी नहीं हुई पूरी ,रात तो इतंजार किया और सुबह देखकर निकल भी गया ।
छवि आकर अपने ऑफिस जाने की तैयारी में जुट गई रात की बातें उसे याद आ रहीं थी खुद के किये पर उसे शर्मिंदगी हो रही थी सोचने लगी, मैं ने ये सब क्यों किया? अगर मुझे कुछ हो जाता तो क्या जैकी और कुनाल को फर्क पड़ता नहीं न, तो फिर ये सब क्यों?
आखिर मुझे क्या होजाता है ? मैं क्यों जल्दी हार मान बैठती हूँ, आज से मैं अपने लिए जीऊँगी लेकिन क्या मैं ऐसा कर पाऊँगी क्योंकि जरा अपना -पन मिलने पर मैं तो कलेजा ही रख देतीं हूँ।
छवि तैयार होकर ऑफिस निकल गई ऑफिस में आज ज्यादा काम नहीं था कोई गेस्ट आये हुए थे तो कुछ मीटिंग हुई जहां काम करने के जज्बे को बनाये रखने की बात हो रही थी
छवि को रात की बात फिर याद आ गई और वैभव की , काम खत्म होते ही छवि पुलिस स्टेशन गई जाकर देखा तो वो कन्हि नहीं था छवि हैरान हो गई,"उसने यहीँ पता बताया था रात को एक बार उससे मिल लेती तो......?
" हाँ क्या काम है"एक सिपाही ने माथे पर सिलवटें भरते हुए कहा,
"जी वो यहाँ वैभव नाम के एक ऑफिसर ....!छवि की बात पूरी भी नहीं हो पाई की उसने झल्लाते हुए कहा"यहाँ कोई नहीं है इस नाम का, छवि सोच मैं डूब गई क्या पागल -वागल हो क्या? उस सिपाही ने कहा
छवि सॉरी कहकर वहां निकल ली।
"उफ...;क्या मैं पागल हो गई हूँ मुझे किसी डॉक्टर से मिलना चाहिए , अब तो दूसरे भी पागल ही कहने लगे हैं छवि की बेचैनी में रात कटी , क्या मैं सच में पागल तो नहीं हो गई, घर पर काम चलाऊ बात होने के बाद छवि ने खुशी की नींद में खलल डालते हुए कहा" क्या तुम सो रही हो?
"खुशी ने घड़ी की ओर देखा जिसमें एक बजने वाला था" तुम को क्या लगता है ,छवि क्या इस समय नहीं सोना चाहिए, तुझे बात करनी है तो सुबह कर अभी नहीं छवि ख़ुशी ने जमाई लेते हुए कहा,
छवि ने भी गुड़ नाइट बोल फोन रख दिया,
अगले दिन छवि एक दोस्त की सलाह अनुसार एक सायक्लोजिस्ट के पास गई सन्डे था तो आज बहुत ज्यादा भीड़ थी काफी समय तक छवि को इतंजार करना पड़ा, छवि बहुत देर तक इतंजार क़रतीं रही मन किया अब मुझे चले जाना चाहिए जैसे छवि बाहर जाने वाली हुई कि अंदर से कोई बाहर निकल कर आया जिसे देख छवि हक्की-वक़्क़ी रह गई झूठ बेशक बोला था लेकिन सच पता पड़ने पर भी छवि को तनिक भी बुरा नहीं लगा वल्कि वो हैरानी के साथ उसे देखे जा रही थी शायद आँखे भी यही चाह रही थी।