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खुशी की शादी

24 जून 2022

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  खुशी  की    शादी के अब कुछ ही दिन बचे हुए थे, जिस कारण ख़ुशी को बहुत  चिंता थी कि बाकी काम कैसे होगा  खुशी के घर वाले भी शहर  ही आ गए थे क्योंकि   लड़का  भी शहरी ही था छवि को  समय मिलने पर  वो   खुशी का हाँथ  बाँट लेती ।

  छवि ने  देखा   जैकी अब उससे  कटने लगा है बात भी कम करने लगा है फोन भी  न के बराबर आते हैं  छवि को ज्यादा बुरा नहीं लगा क्योंकि उसे   ये ही  उम्मीद थी हां बुरा  जरूर लगा    ये प्यार का रिश्ता कमजोर क्यों होता है जहां  जरूरत न पूरी  होने पर   फीका पड़ने लगता है।

    एक रोज शॉपिंग  करके  ख़ुशी के साथ छवि  आ रही थी
तो छवि को जैकी  दिखाई दिया निधि के साथ था छवि की नजर सहसा ही  चली गई थी  देखकर कुछ  अजीब लगा  लेकिन मन को  समझाते  हुए वो आगे निकल गई    दुर्भाग्यवश    जैकी और छवि का   अपना-सामना हो गया ख़ुशी ने हैरानी के  साथ कहा"ये जैकी किस से साथ  है ये तो ....!!! जैकी  ने छवि को  इग्नोर किया,
ख़ुशी  कुछ कहती कि   छवि ने कह दिया" मैं उसकी केवल फ्रेंड हूँ और कुछ  नहीं छवि की बात  को सुनने के बाद ख़ुशी  ने भी भाव बदल लिये  और रास्ता भी।

छवि को   कुछ बेचैनी हुई  उसे लगा जैसे फिर से कुछ छूट गया, क्या जैकी  मेरे मौन  को समझ कर  मेरे  प्रेम को समझता ,  मुझे  सम्भलने  खुद को समझने का मौका देता , मैं भी कितनी पागल हूँ  अपने विचार किसी पर थोप   नहीं सकती  सभी का  अपना जीवन है कोई  कन्हि आये -जाए , क्या है पर फिर भी   मेरे जीवन में ऐसा क्यों  जो आता है कष्ट ही देकर जाता है  देखो न शिकायत होकर भी  किसी से कुछ नहीं कह सकते  छवि  के दिल का दर्द आँखों से  झलक गया।

   ऑफिस जाते हुए छवि ने फिर से जैकी को  देखा  वो  भी  ऑफिस  जा रहा  था चाहा कुछ  पूछ लूं लेकिन साहस नहीं था

छवि    आगे निकल गई  ऑफिस  के काम मे  दिन कहाँ बीत गया पता नहीं चला   शाम होते ही सभी  अपने घर की ओर चल दिये रास्ते मे  भारी भीड़  थी ट्रेफिक  में फसना तय था  छवि   ट्रेफिक खुलने  का इतंजार करने लगी।   ट्रेफिक खुलते ही  छवि आगे निकल गई   उसकी  नजर  फिर से  जैकी  पर पड़ गई थी । और फिर से नजरअंदाजी की गई
ठीक है जो हैं  लेकिन  मुझे कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिए,
घर आते ही   सूरज गायब हो गया था  

बस कृतिम    लाइटों का   समूह जग-मग हो रहा था,  कुछ  खा पीने के बाद  छवि  ग्रीन टी का कप लिए  शाम के   अनोखे दृश्य को देख रही  थी  

फोन   पास रखे स्टूल पर था   जिस में  कोई  मैसेज आया हुआ था छवि  भारी मन से देखती है    जैकी..!!एक बार के लिए छवि का उदास व चेहरा   खिल जाता है  लेकिन जब उस  मैसेज को पड़ती है

तो  अपने  मन के  सैलाब को रोक  नहीं  पाई  वो फोन को एक ओर रख देती है   कपड़े बदलकर  और  कुछ  कागज पर  लिखकर   छवि  बाहर की ओर निकल जाती है   इस बीच   छवि की  आँखों से  आँशु निकलने बन्द नहीं  हुए , एक सुनसान  रास्ते हो पड़कर कर  छवि  स्कूटी पर  सवार हो चली जा रही थी  एक ही बात गूँज रही थी छवि के मन में    "कि  सॉरी...!!  जैकी की कही ये बात  छवि को   लग गई  स्कूटी  से उतर कर  एक नदी के किनारे जा  रुकी  ज्यादा चहल -पहल नहीं थी  और  अंधेरा सा ज्यादा था,

"  क्या मैं जो क़रतीं हूँ वो गलत ही है और ये  दुँनिया सही है.?शायद हाँ तभी मुझे  ये सब सहना पड़ रहा है   एक सॉरी शब्द कहने  भर से उसने  अपना  पल्ला झाड़  लिया  , क्यों...?ये सब क्यों...??छवि के मन और मष्तिष्क में एक युद्ध छिड़ गया जिस में खुद को हारता देख छवि ने  नदी में  छलांग लगाने की  सोची।

" छवि  जैसे कि  पानी मे कूदने वाली थी कि  किसी ने उसका  हाँथ थाम लिया,   छवि ने  गुस्से से उसकि ओर देखा ,   उसने देखा एक  भरे और   उभरे शरीर का नवयुवक  चेहरे पर  गम्भीरता लिए उसका हाथ थामे  हुए हैं उसने छवि  से कहा"पागल हो क्या...?क्या कर रहीं थी  तुम..?
छवि  को  उसके  द्वारा  पूछे गए सवालों से  चिढ़ हो रही थी , कौन हो तुम मुझे सही और गलत सीखने वाले, मेरी  जिंदगी..?कुछ भी करूँ तुम को क्या..?
"   वो समझ गया कि कुछ तो गड़बड़ है उसने शालीनता  से कहा मेरा नाम   वैभव है  और  मैं एक   पुलिस  ऑफिसर हूँ  !!! परिचय  सुनने के    बाद   छवि का मांथा फिर गया मन की पीड़ा  डर में बदल गई ।

"क्या कर रहीं थीं तुम  यहॉं..?कुछ प्रॉब्लम है तो  किसी की सलाह  लो शक्ल -अक्ल से ठीक   जान पड़ती हो,फिर भी ये सब ...??
छवि अपने किए पर पछताने लगती है। वैभव  उसे बहुत  समझता  है छवि  पर उसकी बातों का गहरा प्रभाव पड़ता है,
"सॉरी सर..!!  मुझे नहीं पता कि मुझे क्या हो गया था बस  बहुत बुरा फील हुआ तो...?
तो मरने  चलीं आईं...?देखो  इस दुँनिया मे  कोई न कोई किसी न किसी चीज को लेकर  परेशान हैं तो क्या सभी   तुम्हारी तरह मर जाए,  समझ नहीं आता  तुम जैसे  पढ़े लिखे लोग भी ये   सब करना  चाहते हैं।

छवि  ये सुनकर ग्लानि महसूस करती है, मैं अब घर  जाना  चाहती हूँ
"ठीक है चलो,,, मैं तुम को तुम्हारें घर तक  छोड़ दूं ।
  नहीं , नहीं सर मैं चली   जाऊँगी!!
पर मुझे तुम पर अभी   भरोसा नहीं है इस लिए  तुम को  सुरक्षित घर   छोड़ दूं   ।

छवि  मान जाती है छवि की स्कूटी पर वैभव भी बैठ लेता है  वैभव  का आकर्षक  व्यक्तित्व  देखकर  कोई भी   उस पर  विश्वास कर सकता है घर आते ही  छवि  ने  इजाजत  मांगते हुए कहा"सर  अब मैं सुरक्षित हूँ  अब ऐसा नहीं होगा,
"ओह ठीक है   अंदर  जाओ और  एक अच्छी नींद  लो।
वैभव की बातों में  एक अपना पन था   जिसने  बेचैन छवि को   स्थिर कर  दिया था।

छवि   अंदर जाकर   फ्रेस होकर    अपनी गलती पर सोचने लगती है  

उसे  फील होता है कि अगर वो इंसान नहीं आया होता तो आज मैं....!! छवि  ने   उत्सुकता से खिड़की की ओर झांका तो  दंग रह गई , क्योंकि  वैभव अभी भी  बाहर  बैठा था उनकी नजर भी  छवि  से मिली तो  उसने सोने का इशारा किया ,  तो छवि को अपने  -पन   सा लगा  छवि     खिड़की को बन्द करके   लेट जाती है , ये क्या  है ...?वो क्या था? ये  कौन है?   छवि बहुत से सवालों से घिर जाती है अपने    द्वारा लिखा लेटर फाड़ देती है हकीकत की दुँनिया से निकल कर छवि  सपनों की दुनियाँ  में चली जाती है।





   

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  नमस्कार 🙏   मित्रों      इस  शब्दडॉट इन पर मेरी ये  पहली   कहानी है    इस कहानी का आधार   रोमांटिक ,और सामाजिक, प्रेम   है     प्रिय पाठकों को समझ आने वाली  सीधी-सरल  भाषा का  प्रयोग किया गया है   ताकि  वे   कहानी से जुड़ाव  महसूस कर सकें,  कहानी(लव  लाइफ)   आधुनिक आधार पर लिखी गई  है  इस कहानी के पात्र कन्हि न कन्हि  निजी जीवन  से जुड़े हुए लगते हैं  इस कहानी के  मुख्य  पात्र  छवि और  वैभव है  वैभव छवि के बिखरे  जीवन  को  समेटने का काम करता है   जीवन से निराश हो चुकी छवि   वैभव की बातों से  एक   नए जीवन की शुरुआत क़रतीं है   कहानी   कई उतार चढ़ाव से आगे   चली है   कहानी की रोचकता के लिए  पढ़िए  लव लाइफ💖✍️           आप सभी का बहुत धन्यबाद 🙏
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