नई दिल्ली : भले ही चीन भारत से आर्थिक और तकनीक के लिहाज से कितना की मजबूत क्यों न हो लेकिन चीन अंदर से घुट रहा है। इसके संकेत 11 अक्टूबर को हीं बीजिंग में दिखा जहाँ चीन के रक्षा मंत्रालय के सामने 1000 हजार से ज्यादा पूर्व सैनिक इकट्ठा हुए और विरोध प्रदर्शन किया।
इस विरोध प्रदर्शन में सैकड़ों पुलिसवाले और सादी वर्दी में सुरक्षाकर्मी भी मौजूद थे। अंतरराष्ट्रीय मीडिया की ख़बरों की माने तो चीनी सैनिकों का का विरोध अपनी पेंशन को लेकर था। चीनी सरकार ने इन सैनिकों को सोशल मीडिया पर भी प्रतिबंधित कर दिया है, इसलिए इन सैनिकों के पास अपनी बात पहुंचाने का यह आखिरी रास्ता था।
ख़बरों के अनुसार चीन में इसी साल 50 से ज्यादा बार सैनिक विरोध कर चुके हैं। चीन की मीडिया पर सरकार का नियंत्रण होने के कारण उनकी आवाज उठाने को कोई तैयार नही है। प्रदर्शन करने वाले सैनिकों में ऐसे भी लोग थे जिन्होंने सेना में लंबे समय तक काम किया लेकिन अब उनके पास कोई रोजगार नही है।
खुद चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने पिछले साल घोषणा की थी कि 23 लाख सैनिकों वाली चीनी सेना की संख्या घटाकर तीन लाख की जाएगी। हालांकि अभी तक चीनी सरकार ने ये नहीं बताया है कि सेना से निकाले गए सैनिकों को किस तरह नियोजित किया जाएगा।
विदेश मामलों के जानकारों की माने तो चीन भले भारत से जीडीपी में पांच गुना आगे जा चूका है लेकिन भारत की ताकत वहीं सामने सबसे बड़ी लोकतान्त्रिक शक्ति है। चीन में जी तरह मीडिया और सोशल मीडिया पर प्रतिबन्ध लगाया गया है उससे लोग घुट रहे हैं। अब देखना होगा की चीन इस मॉडल के साथ कब तक चल पाता है।
शरीफ भी जितने शरीफ दिखते हैं उतने हैं नही
चीन का साथी पाकिस्तान भी इसी राह पर चलता आया है। ताजा उदाहरण डॉन अख़बार के पत्रकार का है जिन पर प्रतिबन्ध काग दिया गया था क्योंकि उन्होंने सेना और सरकार की पोल खोलने वाली एक खबर लिखी थी। पकिस्तान में ऐसा पहली बार नही हुआ है। 1 992 में 'द न्यूज़ अख़बार की एक पत्रकार मलीहा लोधी पर नवाज शरीफ के खिलाफ लिखने पर प्रतिबद्ध लगाया गया था।
1999 में नवाज शरीफ के दौर में ही पाकिस्तानी पत्रकार नजम सेठी पर नवाज शरीफ ने ही शांति भंग करने के आरोप में गिरफ्तार किया था। साल 2014 में जिओ न्यूज़ के पत्रकार हामिद मेरे पर जानलेवा हमला हुआ था।