नई दिल्ली : पिछले 27 सालों से सत्ता से नदारद कांग्रेस ने पहले तो ब्राह्मण वोट हथियाने को लेकर शीला दीक्षित को CM का चेहरा बताकर यूपी में पेश किया. बात नहीं बनी तो अब सूबे में खाट सभा कर रहे पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गाँधी के नाम के आगे पंडित राहुल गाँधी लिखकर पोस्टर चिपकाये जा रहे हैं. जिसके चलते अगले साल यूपी में होने जा रहे विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ ब्राह्मण वोट जुड़ सके.
यूपी की 1 / 3 सीटों पर ब्राह्मण वोट बैंक की निर्णायक भूमिका
सूत्रों के मुताबिक देश का सबसे बड़ा राज्य कहे जाने वाले यूपी की 403 विधानसभा सीटों में से करीब एक बटे तीन सीटों पर ब्राह्मण वोट बैंक ही चुनाव में अपनी निर्णायक भूमिका अदा करता है. इसलिए सूबे के चुनाव की बागडोर संभालने वाले कांग्रेस के प्रशान्त किशोर इस बात पर पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं को जोर देने पर लगे हैं कि अगर कांग्रेस को दोबारा से अपनी खोई हुई सियासत का सिंहासन हासिल करना है तो उन्हें घर-घर जाकर ब्राह्मण वोट बैंक को कांग्रेस से जोड़ना पड़ेगा,तभी उन्हें अपने मकसद में कामयाबी हासिल हो सकेगी.
शीला ब्राह्मणों को नहीं जोड़ सकीं
हालांकि दिल्ली कि पूर्व सीएम शीला दीक्षित को इसीलिए यूपी भेजा गया था ताकि कांग्रेस के खेमे से बाहर गया ब्राह्मण वोट बैंक फिर से पार्टी से जुड़ सके. लेकिन शीला के यूपी में आने के बाद भी कांग्रेस के ब्राह्मण वोट बैंक में कोई इजाफा नहीं हो सका. जिसके चलते अब कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की मथुरा में होने वाली सभा में राहुल गांधी के नाम के आगे पं राहुल गांधी के नाम से कांग्रेसी कार्यकर्ता पोस्टर लगा रहे है.
कांग्रेस भी जुटी जातिपात की सियासत करने में
राहुल गांधी के यूपी दौरे को लेकर राज्य कांग्रेस के महामंत्री उमेश पंडित ने मथुरा में ऐसे पोस्टर लगवाये हैं, जिसमें राहुल गांधी को बड़े-बड़े अक्षरों में पंडित राहुल गांधी बताया गया है. ये पोस्टर पार्टी के आधिकारिक तौर पर डिजाइन किए गए पोस्टर की तरह ही हैं, बस राहुल के नाम के आगे 'पं'.जोड़ दिया गया है.
जाति कार्ड खेल ने का कोई मौका गंवाना नहीं चाहती कांग्रेस
बहरहाल जाति की राजनीति करने वाली विपक्षी पार्टियों के जवाब में तैयार किया गया नारा 'न जात पर, न पात पर, बटन दबाओ हाथ पर' कांग्रेस के इस नारे की पोल खोलता है की अब यूपी में अपनी वापसी करने के लिए अन्य पार्टियों की तरह कांग्रेस भी जातिवाद की राजनीति करती नजर आ रही है. वह भी उस वोट बैंक के लिए जो हमेशा मौका परस्त रहा है. हालांकि कांग्रेस जब सत्ता में थी तो सूबे के ब्राह्मण उसके साथ जुड़े थे, लेकिन जब यूपी में बीजेपी आयी तो वह उसके साथ. इसके बाद बसपा का पलड़ा भारी दिखा तो वह उसके साथ चला गया. फिलहाल 27 साल से यूपी में सत्ता से बाहर पार्टी जाति कार्ड खेलने का कोई मौका नहीं छोड़ रही. ब्राह्मण कार्ड के जरिये वह यूपी की सियासत में वापसी करने की पूरी कोशिश कर रही है.'