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दग़ा की

11 अप्रैल 2022

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चेहरा पीला पड़ा ।

रीढ़ झुकी । हाथ जोड़े ।

आंख का अन्धेरा बढ़ा ।

सैकड़ों सदियां गुज़रीं ।

बड़े-बड़े ऋषि आए, मुनि आए, कवि आए,

तरह-तरह की वाणी जनता को दे गए ।

किसी ने कहा कि एक तीन हैं,

किसी ने कहा कि तीन तीन हैं ।

किसी ने नसें टोईं, किसी ने कमल देखे ।

किसी ने विहार किया, किसी ने अंगूठे चूमे ।

लोगों ने कहा कि धन्य हो गए ।

मगर खंजड़ी न गई ।

मृदंग तबला हुआ,

वीणा सुर-बहार हुई ।

आज पियानो के गीत सुनते हैं ।

पौ फटी ।

किरनों का जाल फैला ।

दिशाओं के होंठ रंगे ।

दिन में, वेश्याएं जैसे रात में ।

दग़ा की इस सभ्यता ने दग़ा की ।

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राजे ने अपनी रखवाली की-सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला बड़ी-बड़ी फ़ौजें रखीं । चापलूस कितने सामन्त आए । मतलब की लकड़ी पकड़े हुए । पोथियों में जनता को बाँधे हुए
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ख़ून की होली जो खेली

11 अप्रैल 2022
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रँग गये जैसे पलाश; कुसुम किंशुक के, सुहाए, कोकनद के पाए प्राण, ख़ून की होली जो खेली । निकले क्या कोंपल लाल, फाग की आग लगी है, फागुन की टेढ़ी तान, ख़ून की होली जो खेली । खुल गई गीतों की रात

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राजे ने अपनी रखवाली की

11 अप्रैल 2022
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राजे ने अपनी रखवाली की; किला बनाकर रहा; बड़ी-बड़ी फ़ौजें रखीं । चापलूस कितने सामन्त आए । मतलब की लकड़ी पकड़े हुए । कितने ब्राह्मण आए पोथियों में जनता को बाँधे हुए । कवियों ने उसकी बहादुरी के गी

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दग़ा की

11 अप्रैल 2022
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चेहरा पीला पड़ा । रीढ़ झुकी । हाथ जोड़े । आंख का अन्धेरा बढ़ा । सैकड़ों सदियां गुज़रीं । बड़े-बड़े ऋषि आए, मुनि आए, कवि आए, तरह-तरह की वाणी जनता को दे गए । किसी ने कहा कि एक तीन हैं, किसी ने कहा कि तीन

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झींगुर डटकर बोला

11 अप्रैल 2022
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गांधीवादी आये, कांग्रेस मैन टेढ़े के; देर तक, गांधीवाद क्या है, समझाते रहे । देश की भक्ती से, निर्विरोध शक्ती से, राज अपना होगा; ज़मींदार, साहूकार अपने कहलाएंगे शासन की सत्ता हिल जाएगी; हिन्दू औ

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चर्ख़ा चला

11 अप्रैल 2022
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वेदों का चर्ख़ा चला, सदियां गुज़रीं । लोग-बाग़ बसने लगे । फिर भी चलते रहे । गुफ़ायों से घर उठाये । भेड़ों से गायें रखीं । जंगल से बाग और उपवन तैयार किये । खुली ज़बां बंधने लगी । वैदिक से संवर दी भाषा

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