चेहरा पीला पड़ा ।
रीढ़ झुकी । हाथ जोड़े ।
आंख का अन्धेरा बढ़ा ।
सैकड़ों सदियां गुज़रीं ।
बड़े-बड़े ऋषि आए, मुनि आए, कवि आए,
तरह-तरह की वाणी जनता को दे गए ।
किसी ने कहा कि एक तीन हैं,
किसी ने कहा कि तीन तीन हैं ।
किसी ने नसें टोईं, किसी ने कमल देखे ।
किसी ने विहार किया, किसी ने अंगूठे चूमे ।
लोगों ने कहा कि धन्य हो गए ।
मगर खंजड़ी न गई ।
मृदंग तबला हुआ,
वीणा सुर-बहार हुई ।
आज पियानो के गीत सुनते हैं ।
पौ फटी ।
किरनों का जाल फैला ।
दिशाओं के होंठ रंगे ।
दिन में, वेश्याएं जैसे रात में ।
दग़ा की इस सभ्यता ने दग़ा की ।